चाहे किसी तूफान के आगमन से पहले स्थानीय लोगों को सुरक्षित जगह पहुंचाना हो या हीटवेव की चेतावनी देनी हो, मौसम विभाग भारत के लोगों को मौसम की मार से बचाने में अहम भूमिका निभाता है. मौसम विभाग के सटीक आंकलन जान-माल की हानि को रोकने और उसे कम करने में बेहद अहम साबित होते हैं, लेकिन ऐसा हमेशा से नहीं था.
पांच अक्टूबर 1864 को कलकत्ता में एक ऐसा तूफान आया जिसने पूरे शहर को तबाह कर दिया. दस्तावेज बताते हैं कि 160 साल पहले आए इस चक्रवाती तूफान ने शहर के 60,000 लोगों की जान ले ली. कोलकाता साइक्लोन 1964 को इसलिए तो याद रखा ही जाएगा कि इसने शहर को बुरी तरह तबाह कर दिया था, लेकिन इसलिए भी याद रखा जाएगा कि इसने भारतीय मौसम विभाग की स्थापना में अहम भूमिका निभाई थी.
...जब बनीं मौसम विभाग की परिस्थितियां
मौसम विभाग (Meteorological Department) की स्थापना से पहले भी भारत पर शासन कर रही अंग्रेज सरकार करीब 1850 के दशक से मौसम संबंधी अवलोकन करती आ रही थी. यह काम बड़े पैमाने पर या तो नौसिखिये करते थे या सैन्य और सर्वेक्षण कार्यालय सहित ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रणाली के अलग-अलग विंग. दो अक्टूबर 1864 को भी इसी तरह का एक अवलोकन किया गया.
दस्तावेज बताते हैं कि इसी दिन पहली बार अंडमान द्वीप-समूह के पश्चिम में यह चक्रवात (Calcutta Cyclone 1964) देखा गया था. आखिरकार पांच अक्टूबर को यह चक्रवाती तूफान कलकत्ता पहुंचा जहां इसने खजूरी और कौखाली सहित कई इलाकों में तबाही मचाई. जिला पुलिस अधीक्षक आरडब्ल्यू किंग ने दो नवंबर 1864 को हावड़ा के मजिस्ट्रेट संख्या 524 को लिखे गए एक पत्र में कहा:
"चक्रवात शुरू होने के बाद महिलाओं, बच्चों और कई पुरुषों ने अपने घरों में शरण ली. लेकिन पलक झपकते ही बिना किसी चेतावनी के, पानी गांव के ऊपर था. ठीक उसी समय हवा का सबसे तेज़ झोंका आया जिसने सभी झोपड़ियों को गिरा दिया. भले ही इससे पहले वे डूबे न हों लेकिन इसके बाद वह वहीं फंस गए. घरों के मलबे पर कई बड़े पीपल और दूसरे पेड़ गिर गए. इससे इंसानों और जानवरों दोनों का विनाश हुआ."
सिर्फ कलकत्ता ही नहीं, इस साल एक तूफान आंध्र प्रदेश के मच्छलीपट्टनम (Machilipatnam cyclone 1864) से भी टकराया जिसमें करीब 30,000 लोगों की जान गई. दो साल बाद भारत में सूखे और भुखमरी ने दस्तक दी और कई लोगों की जानें लीं. ऐसा ही एक सूखा 1873 में भी पड़ा. इन घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या इतनी ज्यादा थी कि मौसमी अनहोनियों को आंकने की ब्रिटिश सरकार की कमी जाहिर हो गई. लिहाजा 1864 के चक्रवात के नौ साल बाद भारतीय मौसम विभाग की स्थापना की गई.
...फिर हुई मौसम विभाग की स्थापना
आईएमडी (Indian Meteorological Department) ने 15 जनवरी 1875 को आधिकारिक तौर पर काम करना शुरू किया. इस विभाग में सिर्फ एक व्यक्ति काम करता था जिसका नाम था हेनरी एफ ब्लैनफोर्ड. ब्लैनफोर्ड को इंपीरियल मौसम विज्ञान रिपोर्टर कहा जाता था. उनका काम भारत की जलवायु और मौसम विज्ञान का व्यवस्थित रूप से अध्ययन करना और इस ज्ञान का इस्तेमाल मौसम पूर्वानुमान लगाना था. ब्लैनफोर्ड की नौकरी का एक अहम हिस्सा चक्रवात की जानकारी देना भी था.
तब से अब तक मौसम विभाग लंबा सफर तय कर चुका है. मौसम विभाग की कमान फिलहाल महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के हाथ में है. चेन्नई, गुवाहाटी, कोलकाता, मुंबई, नागपुर और नई दिल्ली सहित आईएमडी के छह क्षेत्रीय मौसम विज्ञान केंद्र हैं. हर राज्य की राजधानी में एक मौसम विज्ञान केंद्र भी है.