मणिपुर में स्थाई शांति की कोशिशों में जुटी केंद्र सरकार को बड़ी सफलता मिली है. मणिपुर के सबसे बड़े उग्रवादी संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट के साथ शांति समझौता हो गया है. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने इस ऐतिहासिक मील पत्थर बताया और कहा कि इससे घाटी में दूसरे विद्रोही ग्रुपों को शांति प्रोसेस में शामिल होने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा. चलिए आपको इस इस मैतेई विद्रोही संगठन के बारे में सबकुछ बताते हैं.
क्या है UNLF संगठन-
यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट यानी यूएनएलएफ का गठन 24 नवंबर 1964 को हुआ था. इसकी स्थापना अरेंबम समरेंद्र सिंह की अगुवाई में किया गया था. ये ग्रुप के महासचिव थे. उसके अलावा खलालुंग कामेई और थांगखोपाओ सिंगसिट संगठन के बड़े लीडर थे. यह घाटी में 59 सालों से सक्रिय पुराना विद्रोही गुट है. इसका मकसद एक संप्रभु और समाजवादी राज्य की स्थापना था. यूएनएलएफ संगठन नागा और कुकी-जोमी प्रभुत्व वाली पहाड़ियों में एक्टिव ग्रुपों से अलग है.
म्यांमार से मिलती है मदद-
माना जाता है कि यूएनएलएफ ग्रुप को नागा विद्रोही ग्रुप एनएससीएन (आईएम) से शुरुआती ट्रेनिंग मिली थी. इसकी आर्म्ड विंग मणिपुर पीपुल्स आर्मी का गठन साल 1990 में किया गया था और पिछले कुछ सालों में इसने भारतीय सुरक्षा बलों पर कई हमले किए थे.
अभी यूएनएलएफ के दो गुटे हैं. सरकार के अनुमान के मुताबिक इनके कैडरों की संख्या 400 से 500 है. इस ग्रुप का प्रभाव घाटी इलाकों के अलावा कुकी-जोमी हिल्स के कुछ गांवों में भी है. इस ग्रुप पर गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम के तहत बैन किया गया है.
यूएनएलएफ संगठन के लड़ाके म्यांमार में आर्मी की निगरानी में सागांग, चिन स्टेट और राखाइन स्टेट के शिविरों में ट्रेनिंग ले रहे हैं. लेकिन एथनिक आर्म्ड ऑर्गनाइजेशन्स और दूसरे डिफेंस फोर्सेस के बढ़ते के जुंटा के खिलाफ बढ़ते हमलों की वजह से ये संगठन कमजोर पड़े हैं. बताया जा रहा है कि इस गुट ने पिछले कुछ महीनों में 500 नए लड़ाकों को प्रशिक्षित किया है.
गुटों में बंट गया यूएनएलएफ-
1990 के दशक में यूएनएलएफ में विभाजन हुआ. एन ओकेन ने कांगलेई यावोल कन्ना लुप (KYKL) नाम से अलग गुट बना लिया. साल 2000 में समरेंद्र की हत्या हो गई. उसके बाद यूएनएलएफ की अगुवाई आरके मेघेन के हाथों में आ गई. मेघेन को साल 2010 में गिरफ्तार कर लिया गया और जेल में डाल दिया गया. इसके बाद खुंडोंगबाम पामबेई ने मोर्चा संभाला. साल 2021 में यूएनएलएफ में एक और विभाजन हुआ. पाम्बेई संगठन से अलग हो गए.
नाराज लोगों ने बनाया था संगठन-
ब्रिटिश इंडिया के समय मणिपुर एक रियासत था. आजादी के बाद मणिपुर के राजा को कार्यकारी प्रमुख बनाकर एक सरकार बनाई गई. साल 1972 में मणिपुर को पूर्ण राज्य बनाया गया. पूर्ण राज्य बनने से पहले मैतेई समुदाय के लोग भारत में विलय से नाराज थे. उन लोगों ने यूएनएलएफ का गठन किया था. जब इस ग्रुप की गतिविधियां बढ़ने लगी तो साल 1980 में केंद्र ने मणिपुर को अशांत क्षेत्र घोषित कर दिया. इसके बाद 90 के दशक में कुकी समुदाय ने अपना संगठन बना लिया. इसके बाद मणिपुर में जातीय संघर्ष शुरू हो गया. यूएनएलएफ ग्रुप के हथियार छोड़ने से पूर्वोत्तर क राज्यों में शांति की उम्मीद है.
दूसरे ग्रुप भी एक्टिव-
यूएनएलएफ इस तरह के ग्रुपों में सबसे पुराना है. इसके बाद कई मैतेई विद्रोही ग्रुप बने. केंद्र सरकार ने 7 मैतेई चरमपंथी गुटों पर बैन लगाया है, जिसमें से एक यूएनएलएफ भी है. कोइरेंग की अगुवाई वाला यूएनएलएफ गुट लगातार बातचीत का विरोध कर रहा है.
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