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One Nation One Election: संसद के विशेष सत्र में वन नेशन, वन इलेक्शन बिल ला सकती है सरकार, देश के चुनावी सिस्टम में क्या होगा बदलाव

वन नेशन, वन इलेक्शन पॉलिसी पर मोदी सरकार आगे बढ़ रही है. पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में कमेटी बनाई गई है. इसको लेकर जल्द ही नोटिफिकेशन भी जारी हो सकता है. वन नेशन, वन इलेक्शन को समर्थकों का कहना है कि ये देशहित में है और इससे करोड़ रुपए की बचत हो सकती है. जबकि इसके विरोधियों का कहना है कि इससे राष्ट्रीय मुद्दे क्षेत्रीय मुद्दों पर हावी हो जाएगे.

वन नेशन, वन इलेक्शन की दिशा में आगे बढ़ रही है मोदी सरकार वन नेशन, वन इलेक्शन की दिशा में आगे बढ़ रही है मोदी सरकार

देश में 'वन नेशन, वन इलेक्शन' पॉलिसी लागू हो सकती है. मोदी सरकार इसपर काम कर रही है. सरकार ने इसके लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अगुवाई में एक कमेटी बनाई है. कमेटी को लेकर आज यानी 1 सिंतबर को नोटिफिकेशन जारी हो सकता है. दरअसल सरकार ने 18 से 22 सिंतबर तक के लिए संसद का विशेष सत्र बुलाया है. हालांकि अभी तक ये नहीं बताया गया है कि विशेष सत्र का एजेंडा क्या है. लेकिन कयास लगाए जा रहे हैं कि वन नेशन, वन इलेक्शन बिल पेश किया जा सकता है.

क्या है वन नेशन, वन इलेक्शन बिल-
वन नेशन, वन इलेक्शन का मतलब है कि एक देश में एक साथ सारे चुनाव कराए जाएं. इसके देश को कई फायदे होंगे, लेकिन इसको लेकर कई तरह की दिक्कतें भी आ सकती हैं. आपको बता दें कि आजादी के बाद शुरुआती कुछ सालों तक लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ-साथ होते थे. लेकिन समय से पहले कई राज्यों में विधानसभा भंग होने या सरकार गिर जाने की वजह से ये परंपरा टूट गई. अभी भी कई राज्यों के चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ होते हैं. लेकिन पूरे देश में एक साथ चुनाव कराने में कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है.

वन नेशन, वन इलेक्शन के फायदे-
काफी समय से देश में वन नेशन, वन इलेक्शन की चर्चा चल रही है. पीएम मोदी से लेकर तमाम नेता इसकी वकालत कर चुके हैं. चलिए आपको बताते हैं कि वन नेशन, वन इलेक्शन से देश को क्या-क्या फायदा होगा.

  • देश में सारे चुनाव एक साथ होने से करोड़ों रुपए की बचत हो सकती है. 1951-52 में लोकसभा चुनाव पर 11 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. जबकि 2019 चुनाव में 60 हजार रुपए खर्च हुए.
  • देश में एक साथ चुनाव कराने से देश के संसाधन बचेंगे और विकास की रफ्तार भी तेज होगी.
  • वन नेशन, वन इलेक्शन लागू होने से बार-बार होने वाले चुनावों से छुटकारा मिल जाएगा.
  • हर बार चुनाव में पूरी स्टेट मशीनरी और संसाधनों का इस्तेमाल किया जाता है. ऐसे में अगर एक साथ चुनाव होंगे तो एक बार ही इनका इस्तेमाल होगा. जिससे पैसे के साथ संसाधनों की भी बचत होगी.
  • बार-बार चुनाव होने से बार-बार आदर्श आचार संहिता लागू होती है. इस दौरान सरकार कोई नीतिगत फैसला नहीं ले पाती. ऐसे में योजनाएं लागू करने में दिक्कत आती है. एक बार में चुनाव होने से इस समस्या से छुटकारा मिल सकता है.
  • अक्सर कहा जाता है कि चुनाव में काले धन का खूब इस्तेमाल होता है. ऐसे में एक साथ चुनाव कराने से चुनाव में कालेधन और करप्शन की समस्या से छुटकारा मिल सकता है.
  • एक साथ चुनाव कराने से वोटर्स की संख्या पर भी इसका पॉजिटिव असर पड़ेगा. बार-बार चुनाव से वोटर्स उदासीन हो जाते हैं. लेकिन जब 5 साल में एक बार चुनाव होगा तो वोटर उत्साह में वोट डालने जाएंगे.

वन नेशन, वन इलेक्शन में क्या है दिक्कत-
वन नेशन, वन इलेक्शन लागू करके पैसों के साथ देश के संसाधनों की बचत की जा सकती है. लेकिन पूरे देश में एक साथ चुनाव कराए जाने पर कई दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है. चलिए आपको बताते हैं वन नेशन, वन इलेक्शन लागू करने में क्या दिक्कत हो सकती है.

  • वन नेशन, वन इलेक्शन पॉलिसी लागू करने के लिए सबसे पहले संविधान में संशोधन करना होगा.
  • लोकसभा और विधानसभाओं के कार्यकाल को एक साथ लाना होगा. इसके लिए संविधान में कई संशोधनों की जरूरत पड़ेगी.
  • वन नेशन, वन इलेक्शन की सबसे बड़ी दिक्कत ये है कि अगर किसी राज्य में चुनाव में किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है. अगर उस राज्य में सरकार नहीं बन पाती है तो क्या होगा? क्या अगले 5 साल तक चुनाव के लिए इंतजार करना पड़ेगा या कोई दूसरा विकल्प है?
  • अगर किसी राज्य में 5 साल के भीतर सरकार गिर जाती है तो क्या होगा? उस दौरान सरकार कौन चलाएगा? ऐसे में राज्य में लोकतंत्रिक सिस्टम पर क्या असर पड़ेगा? ये सवाल बना हुआ है.
  • वन नेशन, वन इलेक्शन के खिलाफ एक तर्क ये भी दिया जाता है कि इससे क्षेत्रीय मुद्दे दब जाएंगे और चुनाव में राष्ट्रीय मुद्दे हावी रहेंगे.

आजादी के बाद 20 साल तक एक साथ हुए चुनाव-
वन नेशन, वन इलेक्शन की बात चल रही है. लेकिन ऐसा नहीं है कि इसे लागू नहीं किया जा सकता है. भले ही कानून के तहत ऐसा नहीं किया गया है, लेकिन आजादी के शुरुआती 20 सालों तक देश में पूरे देश में एक साथ चुनाव होते थे. शुरुआत के 4 लोकसभा चुनाव और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ हुए थे. साल 1952, 1957, 1962 और 1967 में देश में लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए गए थे. लेकिन इसके बाद ये परंपरा टूट गई. साल 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले भंग हो गई. इसके बाद चुनाव अलग-अलग होने लगे.

दो फेज में चुनाव का सुझाव-
साल 2018 में वन नेशन, वन इलेक्शन पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट आई थी. इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देश में दो फेज में चुनाव हो सकते हैं. पहले फेज में लोकसभा के साथ कुछ राज्यों के चुनाव कराए जाएं और दूसरे फेज में बाकी राज्यों के विधानसभाओं के चुनाव कराए जाएं. इसके लिए संविधान में संशोधन करना पड़ेगा और कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना पड़ेगा और कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल घटाना पड़ेगा.

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