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Indian Air Force Day: जब चीन से मिली हार के बाद बदली थी भारतीय वायु सेना की सूरत... फिर पाकिस्तान को दो बार दी थी मात, जानिए वायुसेना के कायापलट की कहानी

Indian Air Force Day: भारतीय वायुसेना की स्थापना आठ अक्टूबर 1932 को हुई थी. आज भले ही भारतीय वायुसेना दुनिया की सबसे ताकतवर एयरफोर्सेज में से एक है, कभी इसकी कमी की वजह से भारत को युद्ध में नुकसान सहना पड़ा था. आइए जानते हैं चीन के खिलाफ युद्ध से सीखकर भारत ने कैसे बदली वायुसेना की सूरत.

भारतीय वायुसेना दिवस (Photo/Wikimedia Commons) भारतीय वायुसेना दिवस (Photo/Wikimedia Commons)
हाइलाइट्स
  • आठ अक्टूबर को मनाया जाता है वायुसेना दिवस

  • 92 साल पहले हुई थी वायुसेना की स्थापना

भारतीय वायुसेना की स्थापना यूं तो आठ अक्टूबर 1932 को हुई थी. लेकिन 15 अगस्त 1947 को भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद इस एयरफोर्स के दो टुकड़े हो गए. भारतीय वायुसेना की ताकत आधी हो गई थी. इस समस्या से निपटने के लिए आजाद भारत की नई सरकार ने वायुसेना के आधुनिकीकरण की कई कोशिशें कीं. लेकिन 1962 में चीन के खिलाफ हुए युद्ध में भारतीय वायुसेना की कमियां बुरी तरह जाहिर हो गईं. 
भारतीय वायुसेना के पास सैनिकों के शौर्य की बराबरी के फाइटर जेट नहीं थे. चीन के खिलाफ मुश्किल युद्ध में भारतीय वायुसेना परिवहन से ज्यादा योगदान नहीं दे सकी. कई राजनीतिक और सैन्य विशेषज्ञों ने यह माना कि अगर भारत अपनी वायुसेना का इस्तेमाल युद्ध के लिए कर सकता तो नतीजा उसके पक्ष में भी रह सकता था. आखिरकार भारत ने इस युद्ध से सीख लेते हुए वायुसेना में बदलाव किए. जिसका नतीजा आने वाली दो जंगों में दिखा.

भारत-चीन युद्ध में क्यों नहीं हुआ वायुसेना का इस्तेमाल?
साल 1962 में भारतीय सेना के पास लगभग 22 लड़ाकू स्क्वाड्रन और 500 से ज्यादा फाइटर जेट मौजूद थे. भारत के पास हंटर एमके-56 लड़ाकू-बमवर्षक विमान, ग्नैट इंटरसेप्टर, मिस्टीरे और तूफ़ानी जैसे फ्रांसीसी-निर्मित ग्राउंड-अटैक विमान थे. चीन के पास मिग-15, मिग-17, मिग-19 और मध्यम दूरी के आईएल-28 बॉम्बर थे. 

चीन के एयरक्राफ्ट ज्यादा आधुनिक थे. द हिन्दू की एक रिपोर्ट बताती है कि इंटेलिजेंस ब्यूरो ने भारत सरकार को चेतावनी दी थी कि अगर वह हवाई हमलों का सहारा लेती है तो चीन भी इसके जवाब में कलकत्ता जैसे शहरों पर हमला कर सकता है. साथ ही अगर युद्ध लंबा चलता है तो भारत नैतिकता का दावा भी खो देगा. 

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द टाइम्स (लंदन) के संवाददाता नेविल मैक्सवेल ने 1962 में अपनी पुस्तक 'इंडियाज चाइना वॉर' (India's China War) में लिखा था, "सरकार ने फैसला किया था कि भारतीय शहरों, खासकर कलकत्ता के खिलाफ चीनी प्रतिशोध के डर से जमीनी हमले पर बॉम्बर्स के साथ सामरिक हवाई समर्थन को खारिज कर दिया जाना चाहिए. पूर्वोत्तर के इलाके और भारतीय वायुसेना की सीमा को देखते हुए, यह कहना मुश्किल है कि इसके हस्तक्षेत का युद्ध पर बहुत असर पड़ेगा."

फिर हुआ वायुसेना का कायापलट
भारत चीन का मुकाबला करने के लिए अमेरिका से हवाई मदद लेने पर विचार कर ही रहा था कि तभी चीन ने पूर्वोत्तर से अपनी सेना को वापस ले लिया और लद्दाख को भी लगभग छोड़ दिया. यह युद्ध खत्म हो गया था लेकिन भारत के लिए इस हार से सीख लेना जरूरी था. इस मौके पर भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की गुट-निरपेक्षता नीति भारत के काम आई. भारत ने सोवियत रूस से मिग-21 जेट खरीदे.

ये जेट लंबे समय तक भारतीय वायुसेना की रीढ़ की हड्डी बने रहे. साल 1965 में जब भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ तो वायुसेना ने इस युद्ध में आगे बढ़कर हिस्सा लिया. पाकिस्तान की मजबूत वायु सेना का सामना करने के बावजूद भारत प्रमुख क्षेत्रों में अपने मुकाबिल पर हावी ही रहा. इस युद्ध के भारत ने आधुनिकीकरण की रफ्तार कम नहीं होने दी. 

आने वाले छह सालों में 1966 और 1971 के बीच, भारतीय वायु सेना आधुनिकीकरण और रणनीतिक विस्तार के एक दौर से गुजरी. सैनिकों की ट्रेनिंग पर जोर देने के अलावा भारत ने जो एक महत्वपूर्ण काम किया वह था मिग-21एफएल (Mig-21FL) खरीदना. यह मिग-21 का एक उन्नत रूप था जो कई स्क्वाड्रनों की शान था. 

Mig-21
मिग-21 2013 तक भारतीय वायुसेना के जखीरे में शामिल रहा.

पाकिस्तान के खिलाफ 1965 की जंग में अपनी उपयोगिता साबित करने वाले नैट (Gnat) की बहाली हुई. जबकि सुखोई एसयू-7बीएम (Sukhoi SU-7BM) को भी वायुसेना के जखीरे में शामिल किया गया. भारतीय वायुसेना ने 1970 की ओर बढ़ते हुए अपनी प्रभावशीलता बढ़ाने पर जोर दिया. और पुराने लड़ाकु विमानों की जगह धीरे-धीरे एचएफ-24, मिग-21एफएल और सुखोई एसयू-7बीएम की संख्या भारतीय इन्वेंट्री में बढ़ती गई. 

1971 में साबित हुआ वायुसेना का लोहा
जब 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध शुरू हुआ तो पिछले एक दशक में किए गए आधुनिकीकरण के प्रयासों का फल दिखने लगा. यह जंग भारतीय वायु सेना के इतिहास में सबसे निर्णायक मौकों में से एक साबित हुई. जैसे ही पूर्वी पाकिस्तान (आधुनिक बांग्लादेश) के मुद्दे पर भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ा, भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तानी हवाई क्षेत्रों के खिलाफ एहतियाती हमले शुरू किए.

वायुसेना ने पूर्वी और पश्चिमी दोनों मोर्चों पर भारतीय सेना का समर्थन किया. भारतीय सेनाओं की आसान जीत और बांग्लादेश के निर्माण में भारतीय वायुसेना के ऑपरेशन खास तौर पर अहम साबित हुए. इस संघर्ष ने भारतीय वायुसेना की निरंतर आक्रामक अभियान चलाने की काबिलियत का प्रदर्शन किया और आधुनिक युद्ध में एयरफोर्स के महत्व पर एक बार फिर रोशनी डाल दी.