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रंगमंच प्रेमियों ने पेश की दोस्ती की मिसाल, साथी कलाकार की बेटी की शादी के लिए नाटक आयोजित कर जुटाए पैसे

शिवराज की बेटी की शादी के लिए धन जुटाने के लिए ग्रामीण 'मैदुना टांडा मंगलया' नामक एक नाटक को प्रायोजित करने के लिए आगे आए. यह नाटक 7 दिसंबर की रात को आयोजित किया गया था. हालांकि नाटक में प्रवेश निःशुल्क था, आयोजकों ने इस नाटक के जरिए लोगों से इस उद्देश्य के लिए योगदान देने की अपील की.

हाइलाइट्स
  • ग्रामीणों ने मदद करने के लिए आयोजित किया नाटक

  • आस-पास के जिलों से भी आए लोग 

दो लॉकडाउन के दौरान ग्रामीण लोगों को गहरे संकट में धकेलने वाले कोविड-19 महामारी के बावजूद, वडगनल गांव ने अपने संकटों को दूर करने का उपाय ढूंढ निकाला है. बता दें, लॉकडाउन ने थिएटर सहित कई सेक्टर्स को बंद करने के लिए मजबूर कर दिया था, अधिकांश नाटक कंपनियों को गंभीर कठिनाई का सामना करना पड़ा. पिछले दो दशकों से उत्तरी कर्नाटक क्षेत्र के ग्रामीण क्षेत्रों में नाटकों की पटकथा लिखने के अलावा हारमोनियम बजाने वाले वडगनल गांव के शिवराज हुगर को लॉकडाउन के बाद अपनी बेटी की शादी करने के लिए पैसों की कमी का सामना करना पड़ा था.

ग्रामीणों ने मदद करने के लिए आयोजित किया नाटक

शिवराज की बेटी की शादी के लिए धन जुटाने के लिए ग्रामीण 'मैदुना टांडा मंगलया' नामक एक नाटक को प्रायोजित करने के लिए आगे आए. यह नाटक 7 दिसंबर की रात को आयोजित किया गया था. हालांकि नाटक में प्रवेश निःशुल्क था, आयोजकों ने इस नाटक के जरिए लोगों से इस उद्देश्य के लिए योगदान देने की अपील की और परोपकारी लोगों को भी आमंत्रित किया. आयोजकों ने कहा कि नाटककार बसवराज सावदत्ती द्वारा लिखित नाटक को भारी प्रतिक्रिया मिली और एक ही शो में लगभग 11 लाख रुपये का योगदान मिला, जिसमें नाटक में भूमिका निभाने वाले सभी 12 थिएटर कलाकारों ने 3,000 रुपये का योगदान दिया.

आस-पास के जिलों से भी आए लोग 

स्थानीय जीपी सदस्य तोम्मनगौड़ा ने कहा कि शिवानंद हुगर गांव और आसपास के क्षेत्रों में एक जाना-पहचाना नाम है. वास्तव में, दर्शक पड़ोसी गडग और बल्लारी जिले से भी आए क्योंकि इस ऑफ़लाइन शो के लिए अच्छा खासा ऑनलाइन प्रचार किया गया था. इस नाटक को देखने के बाद उन्होंने अपने-अपने जिलों में भी शो की मांग की है. ग्रामीण शिवराज को महामारी के संकट से उबारना चाहते थे और उनकी बेटी की शादी कराना चाहते थे. उन्होंने कहा कि यह उदारता का एक उदाहरण है जो उत्तरी कर्नाटक के रंगमंच प्रेमियों में अभी भी जीवित है.