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BJP Muslim Founders: बीजेपी की स्थापना में रही थी इन मुस्लिम नेताओं की अहम भूमिका, वाजपेयी के थे करीबी... जानिए क्या है इनसाइड स्टोरी

केवल चार दशक पहले शुरू हुई भारतीय जनता पार्टी आज पूरे देश में फैली हुई है. यह बात और है कि बीजेपी के पास एक भी मुस्लिम सांसद या विधायक नहीं है. हालांकि हमेशा से ऐसा नहीं था. बीजेपी में मुसलमानों ने अहम भूमिका निभाई है. इसकी स्थापना करने वालों में भी कुछ अहम मुस्लिम नाम थे.

बीजेपी की स्थापना छह अप्रैल 1982 को हुई थी. बीजेपी की स्थापना छह अप्रैल 1982 को हुई थी.
हाइलाइट्स
  • बीजेपी की स्थापना को पूरे हुए 42 साल

  • वाजपेयी थे बीजेपी के पहले अध्यक्ष

भारतीय जनता पार्टी की स्थापना को 42 साल का समय बीत चुका है. छह अप्रैल 1982 को अस्तित्व में आई इस पार्टी ने उतार-चढ़ाव का दौर देखा है. और अब यह पिछले 10 साल से ज्यादा समय से सत्ता में है. यह और बात है कि बीजेपी के पास एक भी सांसद मुस्लिम नहीं है. लोकसभा चुनाव में मुसलमान कैंडिडेट को टिकट न देने के लिए बीजेपी की आलोचना भी होती रही है.

ऐसा नहीं है कि भगवा पार्टी में कभी भी कोई मुस्लिम नेता नहीं था. या बड़ा मुस्लिम चेहरा नहीं था. आपको शायद जानकर हैरानी हो लेकिन बीजेपी की स्थापना में दो मुस्लिम नेताओं की बड़ी भूमिका रही थी. और वह पार्टी में बड़े पद पर भी रहे. आइए जानते हैं बीजेपी के उदय की कहानी और उसमें भूमिका निभाने वाले मुस्लिम नेताओं के बारे में.

जब मुस्लिम नेताओं से दूर रहता था संघ
श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में भारतीय जनसंघ की स्थापना कांग्रेस के एक विकल्प के तौर पर की थी. उस वक्त पार्टी में मुस्लिम नेताओं को शामिल नहीं किया गया था. मुसलमानों को लेकर जनसंघ का रवैया 70 का दशक आते-आते बदला. आरिफ बेग बीजेपी में शामिल होने वाले पहले मुस्लिम नेता थे. वह 1973 में बीजेपी का हिस्सा बने थे. 

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आरिफ मध्य प्रदेश के इंदौर के रहने वाले थे. उनके पिता करामत 'पहलवान' बेग अफगानिस्तान से इंदौर आए थे. राजनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि जनसंघ की कमान अटल बिहारी वाजपेयी के हाथ में आने के बाद पार्टी का रुख मुसलमानों के लिए लचीला हुआ. और आरिफ जैसे मुस्लिम चेहरों के लिए जनसंघ के रास्ते खुल गए. 

जब जनसंघ के लिए 'अछूत' नहीं रहे मुसलमान
बेग के जनसंघ में शामिल होने के दो साल बाद ही देशभर में आपातकाल लग गया. इंदिरा गांधी ने जनसंघ और जमात-ए-इस्लामी हिंद सहित कई हिन्दू-मुस्लिम संगठनों पर प्रतिबंध लगा दिया और उन्होंने जेल में डाल दिया. यही वह समय था जब सारे बड़े संगठनों के नेता एक साथ जेल में बंद रहे. नतीजा यह हुआ कि पंडित जवाहरलाल नेहरू के खास सिकंदर बख्त अटल बिहारी वाजपेयी के करीबी बनकर जनसंघ में शामिल हो गए.

फिर बीजेपी की स्थापना में रहा मुस्लिम नेताओं का हाथ
आपातकाल के बाद भारतीय जनसंघ का विलय जनता पार्टी में हो गया. जनता पार्टी ने 1977 में सरकार भी बना ली. हालांकि जयप्रकाश नारायण ने अटल बिहारी वाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी जैसे नेताओं के सामने यह शर्त रखी थी कि उन्हें जनता पार्टी में बने रहने के लिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सदस्यता छोड़नी होगी. जब इस शर्त पर बात नहीं बनी तो 1979 में जनता पार्टी की सरकार गिर गई. 

आखिर 1982 में बीजेपी की स्थापना हुई. इस समय वाजपेयी की अगुवाई में आरिफ बेग और बख्त पार्टी के प्रमुख चेहरे थे. राजस्थान से रमज़ान खान ने भी पार्टी की सदस्यता ली. आरिफ मध्य प्रदेश की बैतूल सीट से सांसद बने जबकि रमज़ान भी राजस्थान विधानसभा में बतौर विधायक पहुंचे. बख्त को राज्यसभा भेजा गया. 

पार्टी में उस समय मुसलमानों की स्थिति अच्छी थी. बख्त को भाजपा के गठन के समय महासचिव बनाया गया और 1984 में उन्हें पार्टी उपाध्यक्ष चुन लिया गया. हालांकि वाजपेयी के बाद बीजेपी की कमान लालकृष्ण आडवाणी के हाथ आ गई. उन्होंने 90 के दशक तक राम मंदिर को अपना मुद्दा बना लिया. हिन्दुत्व भी फ्रंट फुट पर आ गया. 

21वीं सदी में बीजेपी को भाए पसमांदा
मोदी सरकार ने 2019 में दूसरी बार सत्ता में आने के बाद पसमांदा मुस्लिम समाज के वोटों को लामबंद करने की पूरी कोशिश की है. बीजेपी की कई नीतियां अब पसमांदा उर्फ ओबीसी मुसलमानों पर केंद्रित हैं. दानिश आज़ाद अंसारी, गुलाम अली खटानी, प्रोफेसर तारिक मंसूर और आतिफ रशीद जैसे नेता बीजेपी की मुस्लिम वोटरों को लुभाने की कोशिश में उसका साथ दे रहे हैं.