यह कहावत तो हर एक फूड लवर ने सुनी होगी कि जो आंख को भाता है, वह पैलेट यानी तालू को पसंद आता है. अगर इस एपिक्यूरियन ज्ञान को किसी गार्डन के हिसाब से देखा जाए तो कहावत होगी कि जो 'आंखों को ठंडक देता है, वह आत्मा को संतुष्ट करता है.' और अगर इस कहावत को सच होते देखना हो तो आपको जूनागढ़ जिले के सासन गिर में एक अनोखे आम के बाग की सैर जरूर करनी चाहिए.
यह बगीचा है सुमित झारिया का. उनके खेत में सभी तरह के रंगों के जैसे नारंगी, हल्के पीले, गहरे पीले, से लेकर लाल, हरे आम मिल जाएंगे. वह भी भीनी-भीनी मीठी-महक के साथ. सुमित अपने परिवार में तीसरी पीढ़ी के किसान हैं और उन्होंने पिछले दो दशकों में कुछ देशी किस्मों के साथ कई एग्जोटिक किस्मों के आम लगाए हैं. सुमित और उनके पिता समसुद्दीन आम की किस्में अमेरिका, जापान, थाईलैंड और इस्राइल से लाए और अपने केसर मैंगो फार्म में इन्हें लगाया.
सालों की मेहनत रंग लाई
टाइम्स ऑफ इंडिया के मुताबिक, यह बगीचा सुमित और उनके पिता की सालों की मेहनत का नतीजा है. यह उनकी कड़ी मेहनत और अथाह धैर्य है जो केसर हब में उन्होंने और भी कई रंग जोड़ दिए. उनके पिता ने टीओआई को बताया, "विदेशी आमों में टीएसएस (चीनी) की मात्रा लगभग 15 है. भारतीय उपमहाद्वीप के आमों में यह 18 से 22 तक जाता है. किसान आमों की विदेशी किस्मों को उगाएं क्योंकि डायबिटीज के मरीजों के बीच इनकी मांग अधिक है. भविष्य में अपने देश से ऐसे विदेशी आमों को उन जगहों पर भी निर्यात कर सकते हैं जहां लोग कम मीठे वाले पसंद करते हैं.
बना दिया आम का संग्रहालय
सबसे दिलचस्प बात है कि बाप- बेटे की यह जोड़ी अपने खेत में आम का संग्रहालय बनाना चाहती है. आज उनके इस म्यूजियम में 230 किस्म के आम है. अमेरिकी आम जैसे टोमी एटकिंस, कीट, ओस्टीन और जापान के मियाज़ाकी आम, जिसे दुनिया के सबसे महंगे आमों में से एक माना जाता है, से लेकर थाइलैंड का डोक माई आम (1.5 किलो वजन का एक टुकड़ा) और इज़राइल की माया किस्म तक, झारिया सब कुछ यहां गुजरात में उगा रहे हैं. उनका कहना है कि वे चाहते हैं कि लोग उनके फार्म पर दुनिया भर के आमों का स्वाद चखें. वे एग्रो-टूरिज्म विकसित करना चाहते हैं और, इसलिए वे पिछले कुछ समय से अपने लक्ष्य की ओर काम कर रहे हैं.