सत्यजीत अग्रवाल सिर्फ कला प्रेमी नहीं हैं. बल्कि वह पुदुचेरी में सैकड़ों युवाओं और महिलाओं के लिए एक गुरु हैं जो उन्हें प्लास्टिक कचरे को उपयोगी उत्पादों में बदलने की कला सिखा रहे हैं. 48 वर्षीय सत्यजीत केंद्र शासित प्रदेश को एक स्वच्छ शहर बनाने के मिशन पर हैं. और आपको यह जानकर हैरानी होगी कि वह कभी ऑस्ट्रेलिया में एक टैक्स अफसर थे.
सत्यजीत ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस को कहते हैं कि वह पुदुचेरी में पले-बढ़े हैं और इस शहर को हमेशा एक साफ-सुथरी जगह के रूप में याद करते हैं. लेकिन जब वह 2014 में ऑस्ट्रेलिया से वापस आया, तो उन्होंने अलग ही तस्वीर देखी. हर जगह कूड़ा-कचरा फैला हुआ था. तब उन्होंने कुछ करने का फैसला किया.
श्री अरबिंदो आश्रम से की पढ़ाई
दिल्ली में एक हरियाणा-पंजाबी परिवार में जन्मे सत्यजीत जब 11 साल के थे, तब उन्हें श्री अरबिंदो आश्रम भेज दिया गया था. बाद में, उन्होंने श्री अरबिंदो इंटरनेशनल सेंटर ऑफ एजुकेशन, पुदुचेरी से स्नातक की उपाधि प्राप्त की और ऑस्ट्रेलिया में तस्मानिया विश्वविद्यालय से प्रोफेशनल अकाउंटिंग में मास्टर डिग्री पूरी की. इसके बाद उन्होंने टैक्स अफसर के रूप में काम करना शुरू किया.
ऑस्ट्रेलिया से लौटने के बाद उन्होंने समुद्र तटों की सफाई शुरू की. लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि सिर्फ कचरा इकट्ठा करना समाधान नहीं है. इसके बाद उन्होंने बेस्ट आउट ऑफ वेस्ट पर काम करना शुरू किया. उन्होंने प्लास्टिक से फूल, टोकरी और यहां तक कि चप्पल बनाना शुरू किया. उन्होंने प्लास्टिक की थैलियों को काटा, धोया और सुखाया. फिर इन्हें लंबी पट्टियों में काटकर इनसे अलग-अलग चीजें बनाईं.
दूसरों लोगों को भी सिखा रहे
सत्यजीत के लिए, यह सफर उतार-चढ़ाव भरा रहा. टोकरियां, लैंपशेड और पॉकेटबुक बनाने से लेकर बाल्टियां, चप्पल आदि बनाने तक, सत्यजीत का उद्देश्य क्रिएटिविटी के जरिए बदलाव लाना है. यह पहल उनके अकेले के लिए आसान नहीं थी. इसलिए अपनी 80 वर्षीय मां और बहन के साथ मिलकर, उन्होंने इलाके के इच्छुक लोगों को प्लास्टिक वेस्ट को आर्ट में बदलना सिखाया. धीरे-धीरे उन्होंने इसी उद्देश्य से स्कूलों और अन्य शैक्षणिक संस्थानों का दौरा करना शुरू किया और प्लास्टिक कचरे की रिसायक्लिंग के बारे में जागरूकता फैलाना शुरू किया.
उन्होंने दो गांवों - पनैयुर और कुरुम्बापेट - को भी गोद लिया है और वहां के निवासियों को रीसाइक्लिंग की प्रक्रिया सिखा रहे हैं. इसके अलावा, वह इन गांवों में एक शिक्षक के रूप में स्वयंसेवा करते हैं और बच्चों को मुफ्त में अंग्रेजी, फ्रेंच और हिंदी सीखने में मदद करते हैं. वह स्थानीय लोगों के लिए फ्री वर्कशॉप भी आयोजित करते हैं. सत्यजीत को अपनी कलाकृतियों बेचने में कोई दिलचस्पी नहीं है. वह जागरूकता फैलाने पर ध्यान दे रहे हैं.
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