हर साल 14 जून को विश्व रक्तदाता दिवस मनाया जाता है. इसे कई जगहों पर विश्व रक्तदान दिवस के नाम से भी जाना जाता है. इस दिन का महत्व है कि यह रक्त उत्पादों और सुरक्षित रक्त की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास किया जाता है. इसे के बारे में रक्तदान के बारे में जागरूकता फैलाने के लिए किरण वर्मा ने अनोखा कदम उठाया है. वह 21,000 किलोमीटर की पैदल यात्रा पर निकले हैं कि इसके बारे में जागरुकता फैला सकें.
किरण ने एक न्यूज वेबसाइट के हवाले से कहा,"रक्तदान हमारी समस्या है और केवल हम ही समाधान हैं." दिल्ली के रहने वाले 38 साल के एक्टिविस्ट ने 2016 में हुई एक घटना के बाद इस नेक काम के लिए अपनी नौकरी छोड़ दी.
खून के बदले लोग लेते थे पैसे
उन्हें छत्तीसगढ़ के एक व्यक्ति ने फोन किया जो बहुत ही निम्न-आय वाले परिवार से ताल्लुक रखते थे. उस व्यक्ति ने उन्हें ब्लड मांगने के लिए फोन किया था. किरण वर्मा, जिन्होंने स्वेच्छा से रक्तदान किया था को बाद में पता चला कि इसे कुछ हजार रुपये में फोन करने वाले व्यक्ति के परिवार को बेच दिया गया था. वर्मा ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया “मरीज की पत्नी से मिलने पर, मुझे यह जानकर निराशा हुई कि उसने मेरे द्वारा दान किए गए रक्त के लिए 1,500 रुपये का भुगतान किया था. इतना ही नहीं, उसने अपने पति के इलाज का खर्च वहन करने के लिए वेश्यावृत्ति का सहारा लिया था. उसकी दुर्दशा ने मुझे बहुत दुखी किया. मैंने उस दिन अपनी नौकरी छोड़ दी और मुफ्त रक्तदान के लिए काम करने का फैसला किया. ”
कक्षा 10वीं के स्नातक वर्मा को जीवन बदल देने वाली इस घटना के दो दिन बाद अपनी नौकरी से फुल और फाइनल पेमेंट मिली. इसके बाद उन्होंने सिंपली ब्लड, एक एंड्रॉइड ऐप और एक वेबसाइट लॉन्च की, यह सुनिश्चित करने के लिए कि 'खून के इंतजार में कोई नहीं मरता, खून को जीवन देने के लिए इंतजार करना चाहिए.'
किस घटना के बाद लिया फैसला
12 जून 2017 को वर्मा ने एम्स में मयंक नाम के एक युवा मरीज को रक्तदान किया. यूपी के रामपुर का लड़का इंजीनियरिंग करने का सपना देखता था. मैंने उनके साथ कुछ तस्वीरें क्लिक कीं, एक छोटा सा वीडियो बनाया और रक्तदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए उनका इस्तेमाल किया. दो महीने बाद, उनके पिता ने उन्हीं तस्वीरों के लिए मुझसे संपर्क किया. जब मैंने पूछा कि क्या हुआ, तो उन्होंने बताया कि प्लेटलेट्स की कमी के कारण मयंक का निधन हो गया था और ये उसकी आखिरी तस्वीरें थीं. इस घटना ने मुझ पर गहरा प्रभाव डाला और मुझे यह सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया कि मयंक की तरह किसी और का भी हश्र न हो.
पैदल चल चुके हैं 21,000 किमी
जनवरी 2018 में, अपने बेटे के जन्म के तुरंत बाद, वर्मा ने रक्तदान को बढ़ावा देने के लिए एक मिशन पर निकल पड़े. इस दौरान उन्होंने 16,000 किमी की दूरी तय की, जिसमें 6,000 किमी से अधिक की पैदल यात्रा भी शामिल थी. हालांकि, वह अपना चलना पूरा नहीं कर सके और घर लौट आए. इसके बाद एक और ऐसा समय आया जब किरण को झटका लगा. पूरी दुनिया में कोरोना फैला हुआ था. लोग खून के लिए उन्हें कॉल कर रहे थे. खून की कमी से होने वाली मौतों और पैदल चलने के अपराध बोध ने उसके दिल पर भारी बोझ डाला. रक्तदान के प्रति अपने जुनून से प्रेरित और बदलाव लाने का दृढ़ संकल्प ले चुके वर्मा ने एक नई यात्रा शुरू की.वर्मा ने 2021 में विश्व रक्तदाता दिवस पर अपनी 21,000 किलोमीटर की पैदल यात्रा शुरू की. उन्होंने अब तक 12 राज्यों, 169 जिलों और दो देशों, भारत और बांग्लादेश की दूरी तय की है. वर्मा के इस काम में उनकी पत्नी का भी समर्थन हैं जिन्होंने उन्हें इसके लिए प्रेरित किया. रक्तदान कार्यकर्ता ने अब तक 12,000 किलोमीटर से अधिक पैदल दूरी तय की है. इस दौरान उन्हें कई सारी चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा.