कोई साथ दे ना दे, तू चलना सीख ले, हर आग से हो जा वाकिफ तू जलना सीख ले, कोई रोक नहीं पायेगा बढ़ने से तुझे मंजिल की तरफ, हर मुश्किल का सामना करना तू सीख लें. ये पंक्तियां उन तीन लड़कियों की जिंदगी पर बखूबी बैठती हैं, जिन्होंने सोलह साल पहले अपने गांव के बाहर पढ़ने के लिए कदम रखा था. पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के दो गावों की तीन आदिवासी लड़कियों ने अपने क्षेत्र की पहली पीढ़ी की शिक्षार्थी बनाने के लिए एक स्थानीय प्राथमिक विद्यालय में दाखिला लिया था
सोलह साल पहले शुरू हुआ था सफर
इन लड़कियों के नाम हैं मोयना माजी, रेबती मुर्मू और कृष्णा माजी. ये लड़कियां अब 19 साल की हो गई हैं, और इन्होंने बीए में प्रवेश लिया है. राज्य सरकार की कन्याश्री योजना की बदौलत ये लड़कियां कॉलेज जाने वाले अपने-अपने गाँव के पहले छात्र बने. इन लड़कियों के साथ उसी गांव के चार लड़के ने 2006 में तीन लड़कियों के साथ गोविंदपुर प्राथमिक विद्यालय में भी प्रवेश लिया था. प्रवासी मजदूरों के रूप में काम करना पसंद करते हुए उन्होंने माध्यमिक के बाद पढ़ाई छोड़ दी. हालांकि, लड़कियों ने बारहवीं कक्षा मनबाजार गर्ल्स हाई स्कूल से पूरी की.
प्रधानाध्यापक ने किया प्रेरित
मोयना, रेबती और कृष्णा की इस सफलता का श्रेय उनके उनके प्राथमिक विद्यालय के प्रधानाध्यापक अमिताभ मिश्रा को भी जाता है. अमिताभ मिश्रा को एक राष्ट्रपति पुरस्कार विजेता हैं और उन्होंने ही इन लड़कियों को बारहवीं कक्षा के बाद मनबाजार में मानभूम कॉलेज में जाने के लिए प्रेरित किया.
शिक्षा पाकर काफी खुश है बच्चियां
माओवादियों के गढ़ रहे शीतलतार गांव की रेबती कहती हैं, "मुझे अब भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मैं एक कॉलेज का छात्र हूं. हमारे अलावा, हमारे गांव का कोई भी व्यक्ति कभी स्कूल नहीं गया, कॉलेज या उच्च शिक्षा के बारे में तो बात ही छोड़ दें." रेबती पुलिस बल में शामिल होना चाहती हैं और इसके लिए वो "शारीरिक शिक्षा और फिटनेस" पर भी ध्यान दे रही हैं. शीतलतार की रहने वाली मोयना कहती हैं, "हम आमतौर पर बचपन से ही अपने माता-पिता के साथ मजदूर के रूप में काम करते हैं।.हमारे जैसे गरीब परिवारों के लिए, आय शिक्षा से ज्यादा महत्वपूर्ण है. लेकिन अब मैं एक शिक्षक बनने का सपना देखती हूं." तीसरी कन्या कृष्णा गोविंदपुर की रहने वाली है.
पुरुलिया जिले में कम है महिला साक्षरता
2011 की जनगणना के अनुसार पुरुलिया जिले में महिला साक्षरता दर लगभग 37.15 प्रतिशत है और औसत ग्रामीण साक्षरता दर (पुरुष और महिला) 53.82 है. अधिकांश गरीब माता-पिता अपने बच्चों को कुछ आय के लिए काम पर भेजना पसंद करते हैं.
प्रधानाध्यापक ने शुरू की पहल
प्रधानाध्यापक अमिताभ मिश्रा का कहना है कि कि 2006 में गोविंदपुर स्कूल में शामिल होने पर बच्चों को पढ़ना आसान नहीं था. "जब मैंने ज्वाइन किया, तो कोई कक्षा या उचित इमारत नहीं थी. कोई छात्र भी नहीं थे. मैंने गांवों का दौरा करना शुरू कर दिया और माता-पिता को भेजने के लिए राजी करना शुरू कर दिया. उनके बच्चे स्कूल जाते हैं. ज्यादातर बच्चे मिड-डे मील के लिए स्कूल आते थे." शुरूआती दिनों में उन्हें केवल 7 छात्र मिले, जिसमें वो चार लड़के और ये तीन लड़कियां शामिल थीं. यह मिश्रा ही थे जिन्होंने प्राथमिक विद्यालय पूरा करने के बाद लड़कियों को पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया. मिश्रा ने कहा, "उनके माता-पिता चाहते थे कि या तो उनकी शादी कर दी जाए या उन्हें ईंट भट्टों में काम करने के लिए भेज दिया जाए. स्थानीय प्रशासन की मदद से मैंने माता-पिता को कारण बताया."
राज्य सरकार की योजना से मिली मदद
एक और चीज जिसने तीन लड़कियों को अपनी पढ़ाई जारी रखने में मदद की, वह थी राज्य सरकार की कन्याश्री योजना. मिश्रा ने नौवीं कक्षा से मासिक वजीफे का जिक्र करते हुए कहा कि, "मैंने उनके माता-पिता से कहा कि उन्हें लड़कियों को शिक्षित करने के लिए पैसे खर्च नहीं करने होंगे." लड़कियों को 18 साल के बाद अपनी पढ़ाई जारी रखने के लिए हाल ही में कन्याश्री के तहत 25,000 रुपये मिले हैं."