
मणिपुर में अब उग्रवादी संगठन खून-खराबा नहीं करेगा. राज्य को लोग सुकून से जिंदगी जी सकेंगे. जी हां, सबसे बड़ा उग्रवादी संगठन यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (UNLF) ने सरकार के सामने बुधवार को हथियार डाल दिया. प्रदेश में शांति स्थापित करने के लिए राज्य और केंद्र सरकार कई दिनों से कोशिशें कर रही थी. अब जाकर इस दिशा में कामयाबी मिली है. गृहमंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर पोस्ट करके इसकी जानकारी दी.
गृह मंत्रालय की ओर से कई अन्य चरमपंथी संगठनों के साथ यूएनएलएफ पर प्रतिबंध लगाए जाने के कुछ दिनों बाद यह शांति समझौता हुआ है. ये संगठन मणिपुर में सुरक्षा बलों, पुलिस और नागरिकों पर हमलों और हत्याओं के साथ-साथ भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए हानिकारक गतिविधियों में शामिल रहे हैं.
यूएनएलएफ क्या है?
यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट (यूएनएलएफ) को यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ऑफ मणिपुर के नाम से भी जाना जाता है. ये पूर्वोत्तर भारत के मणिपुर राज्य में सक्रिय एक अलगाववादी विद्रोही समूह है. इसका मकसद एक संप्रभु और समाजवादी मणिपुर की स्थापना करना है. यूएनएलएफ की स्थापना 24 नवंबर 1964 को एरियाबम समरेंद्र सिंह के नेतृत्व में हुई थी. यूएनएलएफ उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर में सबसे पुराना मैतेई विद्रोही समूह है.
सशस्त्र विंग का गठन किया
70 और 80 के दशक में, समूह ने मुख्य रूप से लामबंदी और भर्ती पर ध्यान केंद्रित किया. 1990 में, इसने भारत से मणिपुर की 'मुक्ति' के लिए एक सशस्त्र संघर्ष शुरू करने का निर्णय लिया. उसी वर्ष, इसने मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए) नामक एक सशस्त्र विंग का गठन किया. यूएनएलएफ और इसकी सशस्त्र शाखा, मणिपुर पीपुल्स आर्मी (एमपीए), मणिपुर में कई मैतेई चरमपंथी संगठनों में से एक थे, जिन पर इस महीने की शुरुआत में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने प्रतिबंध लगा दिया था.
राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) ने सितंबर 2012 में स्वीकार किया कि यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट की गतिविधियां मणिपुर राज्य में संप्रभुता लाने के लिए हैं. यूएनएलएफ के चीफ सना याइमा का मानना है कि मणिपुर मार्शल लॉ के तहत है. उन्होंने मणिपुर में हुए चुनावों के चरित्र और योग्यता पर सवाल उठाया था. उनका मानना है कि इस संघर्ष को सुलझाने का सबसे लोकतांत्रिक साधन जनमत संग्रह है.
गृहमंत्री ने लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में शामिल होने के लिए किया स्वागत
गृहमंत्री ने X पर लिखा, एक ऐतिहासिक मील का पत्थर. पूर्वोत्तर में स्थायी शांति स्थापित करने के लिए मोदी सरकार के अथक प्रयासों ने पूर्ति का एक नया अध्याय जोड़ा है क्योंकि यूनाइटेड नेशनल लिबरेशन फ्रंट ने आज नई दिल्ली में एक शांति समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं. मणिपुर का सबसे पुराना घाटी स्थित सशस्त्र समूह यूएनएलएफ, हिंसा छोड़ने और मुख्यधारा में शामिल होने के लिए सहमत हो गया है.
मैं लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में उनका स्वागत करता हूं और शांति और प्रगति के पथ पर उनकी यात्रा के लिए शुभकामनाएं देता हूं. शाह ने आगे कहा कि भारत सरकार और मणिपुर सरकार की ओर से यूएनएलएफ के साथ शांति समझौता छह दशक लंबे सशस्त्र आंदोलन के अंत का प्रतीक है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के सर्वसमावेशी विकास के दृष्टिकोण को साकार करने और पूर्वोत्तर भारत में युवाओं को बेहतर भविष्य प्रदान करने की दिशा में यह एक ऐतिहासिक उपलब्धि है.
A historic milestone achieved!!!
— Amit Shah (@AmitShah) November 29, 2023
Modi govt’s relentless efforts to establish permanent peace in the Northeast have added a new chapter of fulfilment as the United National Liberation Front (UNLF) signed a peace agreement, today in New Delhi.
UNLF, the oldest valley-based armed… pic.twitter.com/AiAHCRIavy
सीएम हिमंता बिस्वा सरमा ने केंद्र को दी बधाई
इस समझौते पर असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा ने केंद्र सरकार को बधाई दी. उन्होंने एक्स पर पोस्ट में लिखा, यूएनएलएफ शांति समझौता एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है, जो उत्तर पूर्व में शांति और प्रगति को बढ़ावा देने के लिए तैयार है. यह माननीय गृहमंत्री को दर्शाता है. माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व द्वारा निर्देशित, क्षेत्र में पूर्ण स्थिरता क बढ़ावा देने के लिए ये अटूट प्रतिबद्धता है.
3 मई से भड़की थी हिंसा
अनुसूचित जनजाति (ST) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में 3 मई 2023 को आयोजित 'आदिवासी एकजुटता मार्च' के बाद भड़की हिंसा के बाद से 180 से अधिक लोग मारे गए हैं. बता दें कि 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद यह पहली बार है जब घाटी में किसी प्रतिबंधित संगठन ने सरकार के साथ शांति वार्ता की है.
13 नवंबर को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत आठ मैतेई चरमपंथी संगठनों पर लगे प्रतिबंध को बढ़ा दिया था और उन्हें गैरकानूनी संगठन घोषित किया था. इन प्रतिबंधित समूहों में यूएनएलएफ भी शामिल था. मणिपुर की आबादी में मैतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इम्फाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नागा और कुकी शामिल हैं, उनकी आबादी 40 प्रतिशत हैं और मुख्य रूप से पहाड़ी जिलों में रहते हैं।
उग्रवादी समूहों पर प्रतिबंध को लेकर ट्रिब्यूनल करेगी फैसला
हालांकि, इसके कुछ दिनों बाद 26 नवंबर को मणिपुर के मुख्यमंत्री बीरेन सिंह ने घोषणा की कि राज्य सरकार यूएनएलएफ के साथ एक ऐतिहासिक शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने की कगार पर है. मंगलवार को, गृह मंत्रालय ने घोषणा की कि यह तय करने के लिए एक ट्रिब्यूनल का गठन किया गया है कि क्या मणिपुर के मैतेई उग्रवादी समूहों पर प्रतिबंध लागू करने के लिए पर्याप्त आधार है और क्या प्रतिबंध जारी रहना चाहिए. इस समिति में गुवाहाटी हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति संजय कुमार मेधी शामिल हैं. जो फैसला देंगे कि क्या समूहों को गैरकानूनी संघ घोषित करने और उन पर प्रतिबंध लगाने के लिए पर्याप्त कारण हैं.