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UP के इस किसान को लोग कहते हैं बड़े भैया, लड़कियों की शादी में करते हैं मदद, युवाओं को देते हैं रोजगार, सीएम योगी तक कर चुके हैं सम्मानित

Lakhimpur Kheri के अचल मिश्रा को पिता के देहांत के बाद शहर से गांव लौटना पड़ा. इससे शहर में कुछ बड़ा करने का सपना टूट गया. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. आज वह खेती में नई तकनीक का उपयोग कर न केवल अपनी फसल की उपज बढ़ा रहे हैं बल्कि क्षेत्र के किसानों को भी जागरूक कर रहे हैं. 

अचल कुमार मिश्रा को सम्मानित करते सीएम योगी (फोटो सोशल मीडिया) अचल कुमार मिश्रा को सम्मानित करते सीएम योगी (फोटो सोशल मीडिया)
हाइलाइट्स
  • लखीमपुर खीरी के अचल मिश्रा किसानों को कर रहे जागरूक

  • कई संस्थाएं कर चुकी हैं सम्मानित

उत्तर प्रदेश के एक किसान को लोग सम्मान से बड़े भैया कहते हैं. यह किसान लड़कियों की शादी हो या युवाओं को रोजगार देने का मामला सब में मदद करते हैं. सीएम योगी आदित्यनाथ भी इन्हें सम्मानित कर चुके हैं. जी हां, हम बात कर रहे हैं लखीमपुर खीरी के मेदईपुरवा गांव के रहने वाले अचल कुमार मिश्रा की, जो जन्म से किसान, डिग्री से वकील, पेशे से उद्यमी और दिल से एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं.

शहर से लौटना पड़ा था गांव
अचल मिश्रा ने जब कानून में स्नातकोत्तर की पढ़ाई पूरी की थी, तभी उनके पिता का देहांत हो गया. उन्हें अपनी कृषि भूमि की देखभाल के लिए शहर से गांव लौटना पड़ा. इससे उनका शहर में कुछ बड़ा करने का सपना टूट गया. इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी. कृषि भूमि की उपज बढ़ाने के लिए अपनी शिक्षा का लाभ उठाया और देखते ही देखते क्षेत्र के किसानों में खास जगह बना ली.

रासायनिक की जगह जैविक खाद का उपयोग
परिवार के विरोध के बावजूद मिश्रा ने इनोवेटिव ट्रेंच ओपनर और फिर ट्रेंच रिंग ओपनर पद्धति का उपयोग करना शुरू किया, जिससे पानी का उपयोग कम हो गया. उन्होंने ऐसे समय में जैविक खाद की ओर रुख किया जब हर कोई रासायनिक उर्वरकों पर निर्भर था. कड़ी मेहनत से मिश्रा अपनी भूमि की प्रति एकड़ उपज को दोगुना से अधिक करने में सक्षम हुए. जहां पहले एक बार में गन्ने की उपज प्रति एकड़ 700-800 क्विंटल होती थी, वह देखते ही देखते 1,800-2,000 क्विंटल हो गई. यह ब्राजील (350 क्विंटल) और संयुक्त राज्य अमेरिका (365 क्विंटल) में प्रति एकड़ औसत उपज से काफी अधिक है.

15-16 प्रकार की फसलें उगाते हैं
मिश्रा कहते हैं कि हमारी प्राथमिक फसल गन्ना है, लेकिन हम धान, गेहूं, ब्रोकोली, शिमला मिर्च, सरसो, लहसुन, प्याज, अदरक और अन्य सब्जियों सहित लगभग 15-16 प्रकार की अन्य फसलें भी उगाते हैं. मैं फसलों के साथ प्रयोग करता हूं और उपज को अधिकतम करने के नए तरीके सीखता हूं. उनके नवीन तरीकों ने गन्ने की खेती को इतना लाभदायक बना दिया कि मिश्रा अधिक जमीन और यहां तक ​​कि एक मध्यम आकार का रिसॉर्ट भी खरीदने में कामयाब रहे. इससे उन्हें अधिक स्थानीय लोगों को रोजगार देने और ग्रामीण पर्यटन को बढ़ावा देने में मदद मिली. 

पीएम मोदी से भी मिल चुके हैं
अचल कुमार मिश्रा की उपलब्धियों को देखते हुए, उन्हें हाल ही में राष्ट्रीय कृषि विकास कार्यक्रम के तहत भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान की ओर से सम्मानित किया गया है. मिश्रा 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात के लिए ले जाए गए किसानों के समूह में भी शामिल थे. मिश्रा को एसबीआई करनाल (हरियाणा) की ओर से इनोवेटिव फार्मर अवार्ड भी दिया गया. उन्होंने पिछले दो दशकों में कई बार जिले में सबसे अधिक गन्ना उत्पादन के लिए पुरस्कार जीता है. उन्हें योगी सरकार भी कई बार सम्मानित कर चुकी है. 

किसानों को कर रहे जागरूक
40 वर्षीय अचल मिश्रा पौधरोपण अभियान में बढ़चढ़कर भाग लेते हैं. गरीब लड़कियों की शादी के लिए आर्थिक मदद करते हैं. वह क्षेत्र के किसानों को नवीन तकनीकी का ज्ञान देकर खेती में उनकी इनपुट लागत कम करने में मदद करते हैं. इसके साथ ही अपने गन्ने के खेत और पर्यटक रिसॉर्ट क्षेत्र के लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार प्रदान करते हैं. लखीमपुर खीरी के कृषि उप निदेशक अरविंद मोहन मिश्रा ने कहा कि अचल अपने किसान उत्पादक संगठन के माध्यम से अन्य किसानों को प्रेरित करते हैं. मिश्रा ने कहा कि वह अपने गांव सहित क्षेत्र के अन्य किसानों के लिए औषधीय पौधों पर ध्यान केंद्रित करके अन्य लाभदायक फसलों की ओर जाने का मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं, जिनकी उच्च मांग है. मिश्रा गन्ने की खेती में पानी के उपयोग को कम करने के बारे में भी जागरूकता फैला रहे हैं, जिसे पानी की अधिक खपत वाली फसल माना जाता है. क्षेत्र के लोगों का कहना है कि अचल अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यों पर खर्च करते हैं. 

पूर्वजों की शिक्षाओं का कर रहा हूं पालन 
मिश्रा ने कहा कि हमारे धार्मिक ग्रंथ हमें प्रकृति के साथ तालमेल बिठाकर रहना और जरूरतमंद लोगों की मदद करना सिखाते हैं. मैं बस अपने पूर्वजों की शिक्षाओं का पालन कर रहा हूं. क्षेत्र के लोगों का कहना है कि बड़े भैया को अक्सर सार्वजनिक स्थानों पर पौधे लगाते या पौधों और पेड़ों की देखभाल करते देखा जाता है. वह अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा सामाजिक कार्यों पर खर्च करते हैं.