मुद्दतों बाद मयस्सर हुआ, मां का आँचल. मुद्दतों बाद हमें नींद सुहानी आई... उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली दिव्या को अपनी मां से दूर रहना गंवारा नहीं था. छह साल दिल्ली में नौकरी करने के दौरान एक भी दिन ऐसा नहीं था जब उन्हें मां की फिक्र न सताई हो. पिता के निधन के बाद उनकी चिंताएं और बढ़ गई और उन्होंने मां के साथ रहने की ठान ली. कुछ ही समय बाद वह घर लौटीं और अपनी मां के साथ मिलकर फार्मिंग करने लगीं.
GNT Digital ने दिव्या से बात की और उनके अब तक के सफर के बारे में जाना. दिव्या बताती हैं कि वह हमेशा से मां के साथ ही रहना चाहती थीं लेकिन, जॉब के चलते उनके लिए यह थोड़ा मुश्किल हो रहा था. पिता की डेथ के बाद मां के पास जाना उनके लिए और ज्यादा जरूरी हो गया था. अच्छी बात ये रही की उस दौरान दिव्या फ्रीलांसर के तौर पर काम कर रही थीं. तब दिव्या ने फैसला लिया कि वो और उनके पति अब मां के साथ ही रहेंगे.
हालांकि, कुछ मजबूरियों के कारण शुरुआत में उन्हें आधा महीना दिल्ली और आधा महीना घर पर रहना पड़ता था लेकिन, कुछ समय बाद वह पूरी तरह मां के साथ शिफ्ट हो गए और नए सिरे से अपनी जिंदगी की शुरुआत की.
पिता की कमी हमेशा रहेगी
"मां और मैं पापा के काम को आगे बढ़ा रहे हैं. मैं और मेरी मां हमेशा यही बात करते हैं कि पापा होते तो वो इस काम को किस तरह करते. केवल मैं और मां ही नहीं मेरे पति भी हमारा इस काम में पूरा साथ देते हैं. बहुत सारी चीजें हमारे लिए अकेले संभालना मुश्किल हो जाती हैं लेकिन, एक-दूसरे की मदद से हम इसे आसान बनाने की कोशिश करते हैं"
रंग लाया मां के हाथ का जादू
किस्मत और मां के हाथ का जादू दोनों ही रंग लाए और आज मां-बेटी मिलकर सलाना 25 से 30 लाख रुपये कमा रहे हैं. वह खेत में जो भी उगा रहे हैं उसका इस्तेमाल कर उससे स्वादिष्ट फूड प्रोडक्ट बनाकर बेचते हैं.
बेटी ने पहचाना मां का हुनर
दरअसल, दिव्या की मां अक्सर दिल्ली में जॉब करने के दौरान उन्हें तरह-तरह के जेली और सॉस बनाकर भेजती थीं, जिसे वह और उनके सभी दोस्त बहुत चाव से खाते थे और इसकी डिमांड भी करते थे. जब वह घर लौटी तो उन्होंने अपनी मां के हुनर को पहचाना और उन्हें इसी में कुछ काम शुरू करने के लिए प्रोत्साहित किया.
मां के बारे में बहुत कुछ अलग जाना
दिव्या बताती हैं कि उनकी रिटायर्ड टीचर मां एक बिंदास नानी, फार्म ऑनर और एक बहुत शानदार कुक हैं. इसके अलावा दिव्या ने जो अपनी मां के बारे में काम के दौरान जाना वह ये कि उनकी मां के अंदर सीखने की ललक है. दिव्या की मां 73 साल में भी पूरे जुनून के साथ अपना काम करती हैं. वह एक टीचर रह चुकी हैं, यही कारण है कि उनमें आस-पास की महिलाओं को सिखाने की भावना भी हमेशा से रही है, ताकि वह भी आगे बढ़ सकें और आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बन सकें. .
दिव्या की मां इंदिरा और उनकी पहाड़ी महिलाओं की टीम अपने काम से बेहद प्रेम करते हैं. वह खेत में जो कुछ भी उगता है, उसका इस्तेमाल कर उससे स्वादिष्ट चीजें बनाती हैं. दिव्या और उनकी मां हिमालयन हाट के नाम से अपना कारोबार करती हैं.
शिपिंग की परेशानी
मां-बेटी ने 2014 में अपना ये काम शुरू किया था. दिव्या बताती हैं कि पौड़ी गढ़वाल में ट्रांसपोर्टेशन की अच्छी व्यवस्था नहीं है. इसलिए हमने दिल्ली में एक जगह किराए पर लेकर डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर बनाया है. प्रोडक्ट्स को पैक करके हम अपनी गाड़ी से इसे डिस्ट्रीब्यूशन सेंटर तक लेकर जाते हैं और फिर आगे शिप किया जाता है.
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