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Uttarakhand Foundation day: उत्तराखंड बनने में अहम भूमिका निभाने वाले 5 आंदोलनकारियों को जानिए

9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य बना था. इसके लिए कई सालों तक आंदोलन चला था. इस आंदोलन में कई लोगों को अपनी जान भी गंवानी पड़ी थी. वैसे तो लाखों लोगों ने इस आंदोलन में हिस्सा लिया था. लेकिन कई आंदोलनकारी ऐसे थे, जिनके बिना राज्य बनने का सपना शायद ही पूरा हो पाता.

उत्तराखंड राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारी उत्तराखंड राज्य बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले आंदोलनकारी

23 साल पहले 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आया था. राज्य के लिए लोगों ने कई सालों तक संघर्ष किया था. इस इलाके के लोगों ने राज्य आंदोलन में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. कई लोगों ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया था. चलिए आपको उत्तराखंड राज्य बनने में अहम भूमिका निभाने वाले 5 क्रांतिकारियों के बारे में बताते हैं.

इंद्रमणि बडोनी-
इंद्रमणि बडोनी को उत्तराखंड के गांधी के नाम से जाना जाता है. इद्रमणि राज्य बनाने के शुरुआती आंदोलनकारियों में से एक थे. उनका जन्म 24 सितंबर 1925 को टिहरी के अखोड़ी गांव में हुआ था. परिवार की आर्थिक हालत अच्छी नहीं थी. उन्होंने 1980 में उत्तराखंड क्रांति दल की सदस्यता ग्रहण की. साल 1988 में बडोनी ने तवाघाट से देहरादून तक 5 दिनों की पैदल जन संपर्क यात्रा निकाली. इसके बाद वो इलाके में गांधी के नाम से फेमस हुए. 72 साल की उम्र में इंद्रमणि ने 7 अगस्त 1994 को आमरण अनशन पर बैठ गए. ये अनशन 30 दिन तक चला. इंद्रमणि की शर्तों पर अनशन खत्म हुआ. अलग राज्य के लिए आंदोलन चलता रहा. इंद्रमणि बीमार हो गए. अस्पताल में भर्ती हुए और 18 अगस्त 1999 को उनका निधन हो गया. उनके निधन के बाद 9 नवंबर 2000 को अलग उत्तराखंड राज्य बना.

रंजीत सिंह वर्मा-
उत्तराखंड राज्य बनाने में रंजीत सिंह वर्मा का भी अहम योगदान रहा. साल 1991 में उन्होंने राजनीति से संन्यास ले लिया और उत्तराखंड आंदोलन में कूद पड़े. उनको कई बार पुलिस अत्याचार का सामना करना पड़ा. चाहे रामपुर तिराहा कांड हो या मुजफ्फरनगर कांड, रंजीत सिंह को पुलिस अत्याचार का सामना करना पड़ा. उनको चोटें भी आई. इन संघर्षों के चलते उनको उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति देहरादून जिले के अध्यक्ष बनाए गए थे. उनका मानना था कि आंदोलन जरूरी है, लेकिन हिंसा नहीं होनी चाहिए. आंदोलन में उनकी अहम भूमिका का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सबसे पहले इस मुद्दे पर सरकार से बातचीत करने का मौका उनको ही मिला. उस समय देश के प्रधानमंत्री देवगौड़ा थे. उन्होंने उत्तराखंड संयुक्त संघर्ष समिति को बातचीत के लिए बुलाया गया था. हालांकि किसी भी नतीजे से पहले देवगौड़ा की सरकार गिर गई. उत्तराखंड राज्य अस्तित्व में आने तक वो संघर्ष करते रहे. उनकी आंखों के सामने उत्तराखंड राज्य का जन्म हुआ.

हंसा धनाई-
उत्तराखंड को राज्य बनाने में हंसा धनाई का भी अहम योगदान था. हंसा ने साल 1994 के आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. 2 सितंबर 1994 को मसूरी में गोली कांड हुआ. पुलिस ने आंदोलनकारियों पर गोली चलाई. जिसमें 6 आंदोलनकारियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा. इसमें हंसा धनाई भी थीं. 

हंसा तीन बेटों और 12 साल की बेटी के साथ मसूरी के कुलडी बाजार में रहती थीं. उनके पति भगवान धनाई आंदोलन में बड़ी भूमिका निभा रहे थे. मसूरी कांड से एक दिन पहले उनके पति को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था.
मसूरी में आंदोलनकारी प्रदर्शन कर रहे थे. इसमें हंसा भी महिलाओं के साथ शामिल थीं. तभी पुलिस ने फायरिंग शुरू कर दी. जिसमें 6 लोगों की मौत हो गई.

विवेकानंद खंडूडी-
उत्तराखंड राज्य आंदोलन में कांग्रेस नेता विवेकानंद खंडूडी ने भी अहम भूमिका निभाई थी. इस आंदोलन की वजह से उनको एक महीने तक बरेली सेंट्रल जेल में रखा गया था. जब आंदोलन चरम पर था तो खंडूडी अंडरग्राउंड हो गए थे, क्योंकि आंदोलन के दौरान वो पुलिस की रडार पर रहते थे.

महावीर शर्मा-
उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान रामपुर तिराहा कांड हुआ था. जिसमें 7 लोगों की मौत हुई थी. इस पूरी घटना के चश्मदीद गवाह महावीर शर्मा थे. इस मामले में सीबीआई जांच हुई. कई गवाह अपने बयान से पलट गए. लेकिन महावीर शर्मा ने सीबीआई और कोर्ट में अपने बयान पर कायम रहे. उन्होंने कहा कि बेकसूरों पर गोली चलाई गई थी. इस दौरान कई बार उनपर दबाव भी बनाया गया. लेकिन महावीर शर्मा किसी के सामने झुके नहीं. महावीर शर्मा सीबीआई के इकलौते गवाह थे, जो आखिरी तक अपने बयान पर कायम रहे थे.

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