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Uttarakhand में बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदना नामुमकिन! जानें J&K से लेकर Sikkim तक किन जगहों पर आप नहीं ले सकते लैंड और क्यों?

इन राज्यों और क्षेत्रों में बाहरी लोगों पर भूमि खरीदने के प्रतिबंध लगाने के कई महत्वपूर्ण कारण हैं. जैसे कई राज्य और जनजातीय क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं की रक्षा के लिए भूमि सुरक्षा कानून लागू करते हैं. साथ ही, स्थानीय निवासियों को भूमि खरीद में बाहरी लोगों से होने वाली प्रतिस्पर्धा से बचाना भी एक कारण है. इसके अलावा, कुछ राज्यों में जनसांख्यिकीय बदलाव के डर से भी बाहरी लोगों पर पाबंदी लगाई जाती है.

उत्तराखंड जमीन खरीदने की पाबंदी उत्तराखंड जमीन खरीदने की पाबंदी
हाइलाइट्स
  • बाहरी लोगों के लिए जमीन खरीदना नामुमकिन

  • J&K से लेकर सिक्किम तक कई जगह हैं ऐसे ही नियम

उत्तराखंड सरकार ने बुधवार को एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए एक नया विधेयक मंजूर किया है, जिसके तहत राज्य के 13 में से 11 जिलों में बाहरी लोगों के लिए कृषि और बागवानी भूमि खरीदने पर प्रतिबंध लगाया जाएगा. यह विधेयक राज्य विधानसभा के बजट सत्र में पेश किया जाएगा. इस कदम का उद्देश्य राज्य के प्राकृतिक संसाधनों, सांस्कृतिक धरोहर और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना है.

विधेयक का उद्देश्य और प्रावधान
इस विधेयक के तहत, जो भूमि नगरपालिका सीमा के अंदर आती है, उसका इस्तेमाल केवल उसी उद्देश्य के लिए किया जा सकेगा, जो सरकार ने तय किया है. अगर कोई व्यक्ति इस नियम का उल्लंघन करता है, तो उस भूमि को राज्य सरकार के पास भेज दिया जाएगा. इसके अलावा, पहाड़ी इलाकों में भूमि को सही तरीके से इस्तेमाल करने के लिए जमीन को एकजुट करने और समझौते करने पर जोर दिया जाएगा. इससे भूमि का सही उपयोग सुनिश्चित किया जाएगा और अतिक्रमण की समस्या को रोका जाएगा. 

इस विधेयक का उद्देश्य 2017 में त्रिवेंद्र सिंह रावत सरकार द्वारा किए गए बदलावों को रद्द करना है. 2017 में, उत्तराखंड (पहले उत्तर प्रदेश) में जमींदारी उन्मूलन और भूमि सुधार कानून में बदलाव किया गया था, जिसके तहत पहाड़ी क्षेत्रों में भूमि खरीदने की सीमा को 12.5 एकड़ से बढ़ाकर 30 एकड़ कर दिया गया था. इसके अलावा, पर्यटन, ऊर्जा, उद्योग, कृषि और बागवानी के लिए इस सीमा को और भी बढ़ाया गया था. इन बदलावों के बाद, भूमि के लेन-देन के अधिकार जिला मजिस्ट्रेटों को दे दिए गए थे. 

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नए विधेयक में क्या होगा?
नए विधेयक के तहत, ये अधिकार जिला मजिस्ट्रेटों से वापस लिए जाएंगे और बाहरी लोग जब भूमि खरीदेंगे, तो उन्हें एक समर्पित पोर्टल पर अपना लेन-देन रिकॉर्ड करवाना होगा. इसके साथ ही, बाहरी निवासियों को भूमि खरीदने से पहले एक शपथ पत्र देना होगा, ताकि धोखाधड़ी और अनियमितताओं को रोका जा सके. आखिर में, भूमि की खरीद और बिक्री की अंतिम मंजूरी राज्य प्रशासन ही देगा. 

इस विधेयक में भूमि अधिकारों को लेकर कुछ बदलाव भी किए गए हैं. अभी, बाहरी लोग नगरपालिका क्षेत्रों के बाहर 250 वर्ग मीटर भूमि रहने के उद्देश्य से खरीद सकते हैं. यह प्रावधान बरकरार रहेगा, लेकिन कृषि और बागवानी भूमि की जमा करने पर रोक लगाई जाएगी. ये पाबंदियां पहले कांग्रेस सरकार (2002-2007) के दौरान लागू की गई थीं, जब बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीद की सीमा 500 वर्ग मीटर तक सीमित कर दी गई थी. बाद में बीजेपी सरकार ने इसे घटाकर 250 वर्ग मीटर कर दिया था. 2017 में, रावत सरकार ने इन पाबंदियों को हटा दिया था. 

भू-अधिग्रहण के कुछ विवादास्पद मामले भी सामने आ चुके 
भू-अधिग्रहण के कुछ विवादास्पद मामलों पर भी चर्चा हो रही है. 2024 में, उत्तराखंड सरकार ने कृषि भूमि के उपयोग पर सख्त कदम उठाए थे. कई लोग जिन्होंने कृषि भूमि खरीदी थी, लेकिन उसका उपयोग नहीं किया, उनके खिलाफ कार्रवाई की गई. उदाहरण के लिए, 2024 में नैनीताल जिले में एक आधा हेक्टेयर भूमि को जब्त किया गया, जो उत्तर प्रदेश के विधायक रघुराज प्रताप सिंह (राजा भैया) की पत्नी के नाम पर थी. इस भूमि का कोई उपयोग नहीं किया गया था. इसी तरह, अभिनेता मनोज बाजपेयी द्वारा अल्मोड़ा जिले में खरीदी गई भूमि को भी जांच के दायरे में लिया गया था.

राज्यभर में सख्त भूमि कानूनों की मांग को लेकर पिछले कुछ समय में विरोध प्रदर्शन बढ़ गए थे. मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस विधेयक को एक ऐतिहासिक कदम बताते हुए कहा कि यह राज्य के संसाधनों, सांस्कृतिक धरोहर और नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करेगा, और राज्य की मूल पहचान को बनाए रखेगा. 

कई और राज्यों में भी हैं ऐसी पाबंदियां 
इस फैसले के बाद उत्तराखंड उन राज्यों की श्रेणी में शामिल हो गया है जहां बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीदने पर सख्त पाबंदियां हैं. ऐसे कई राज्य और हैं जिनमें बाहरी लोग आसानी से भूमि नहीं खरीद सकते हैं और इन पाबंदियों के पीछे के कारण जानते हैं.

1. जम्मू-कश्मीर में भूमि खरीद पर बदलाव
26 अक्टूबर 2020 को केंद्र सरकार ने जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम 2019 के तहत कई कानूनों में बदलाव किए. इन संशोधनों का सबसे बड़ा असर यह हुआ कि अब जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासियों की परिभाषा हटा दी गई और बाहरी लोग भी वहां जमीन खरीद सकते हैं.

पहले अनुच्छेद 35A के तहत जम्मू-कश्मीर को यह अधिकार था कि वह अपने स्थायी निवासियों को परिभाषित कर सके और उनकी विशेष सुरक्षा कर सके. अनुच्छेद 370 के हटने के बाद यह प्रावधान समाप्त हो गया. इसके बाद जम्मू-कश्मीर में शहरी और गैर-कृषि भूमि को बाहरी लोगों के लिए खोल दिया गया है.

हालांकि, जम्मू-कश्मीर भूमि राजस्व अधिनियम के तहत अभी भी कृषि भूमि खरीदने के लिए ‘कृषक’ होने की शर्त रखी गई है. कृषि भूमि को गैर-कृषि भूमि में बदलने के लिए अब जिला कलेक्टर की अनुमति ली जा सकती है, जबकि पहले इसके लिए राजस्व मंत्री की मंजूरी जरूरी थी.
बता दें, ये बदलाव लद्दाख में लागू नहीं होते.

2. हिमाचल प्रदेश में भूमि खरीद पर पाबंदी
हिमाचल प्रदेश उन राज्यों में सबसे ज्यादा जाना जाता है जहां बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीदना आसान नहीं है. हिमाचल प्रदेश टेनेंसी एंड लैंड रिफॉर्म्स एक्ट की धारा 118 के तहत केवल राज्य के ‘बोनाफाइड निवासी’ ही भूमि खरीद सकते हैं. बोनाफाइड निवासी बनने के लिए व्यक्ति को कम से कम 20 वर्षों तक राज्य में रहना अनिवार्य है.

कृषि भूमि खरीदने के लिए व्यक्ति का कृषि कार्य से जुड़ा होना भी ज़रूरी है. हालांकि, राज्य के कुछ शहरी इलाकों में मकान या दुकानों के लिए बाहरी लोग 500 वर्ग मीटर तक जमीन खरीद सकते हैं, बशर्ते उन्हें राज्य सरकार से मंजूरी मिल जाए.

कुछ विशेष मामलों में राज्य सरकार बाहरी लोगों को भूमि खरीदने की अनुमति दे सकती है, जैसे कि इंडस्ट्रियल प्रोजेक्ट्स के लिए.

3. सिक्किम में भूमि खरीद पर सख्ती 
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 371F के तहत सिक्किम को अपने पुराने कानूनों को बनाए रखने की अनुमति दी गई है. इसके तहत केवल सिक्किमी निवासियों को ही भूमि खरीदने का अधिकार है.

ट्राइबल इलाकों में तो केवल स्थानीय आदिवासी समुदाय ही जमीन खरीद सकते हैं. हालांकि, औद्योगिक विकास के लिए अब कुछ अपवाद बनाए गए हैं जिनके तहत बाहरी लोग भी जमीन खरीद सकते हैं.

4. नागालैंड में भूमि खरीदने के नियम
संविधान के अनुच्छेद 371A के तहत केंद्र सरकार नागालैंड में भूमि स्वामित्व और हस्तांतरण से जुड़े कानून नहीं बना सकती है. नागालैंड में केवल ‘स्थानीय निवासी’ ही भूमि खरीद सकते हैं.

हाल के वर्षों में कर्ज न चुका पाने की स्थिति में कुछ बाहरी लोगों ने जमीन हासिल की है, जिससे राज्य में विरोध प्रदर्शन भी हुए हैं.

5. असम, मेघालय, त्रिपुरा, मिजोरम और दार्जिलिंग (पश्चिम बंगाल) के छठे अनुसूची वाले क्षेत्र
संविधान की छठी अनुसूची के तहत कुछ राज्यों के आदिवासी इलाकों में खास स्वायत्त परिषदों को भूमि पर अधिकार दिए गए हैं. इन इलाकों में बाहरी लोग भूमि नहीं खरीद सकते हैं, और इसके लिए कड़े नियम बनाए गए हैं.

मिजोरम राज्य को भी एक खास अधिकार मिला है, जो अनुच्छेद 371G के तहत है. इसके अनुसार, मिजोरम की राज्य विधानसभा खुद तय कर सकती है कि राज्य में भूमि का मालिक कौन हो सकता है और इसके नियम क्या होंगे. 

6. अरुणाचल प्रदेश में जमीन खरीदने की परंपराएं
अरुणाचल प्रदेश में बाहरी लोगों के लिए भूमि खरीदना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. यहां परंपरागत नियमों के तहत बाहरी व्यक्ति तो दूर, राज्य के निवासियों को भी निजी जमीन रखने का अधिकार नहीं था. 2018 में एक नया कानून लाकर आदिवासियों के व्यक्तिगत भूमि स्वामित्व के अधिकार को मान्यता दी गई.

हालांकि, अभी भी बाहरी लोग यहां जमीन नहीं खरीद सकते हैं.

7. झारखंड, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में पाबंदी
इन राज्यों में भी जनजातीय भूमि को गैर-जनजातीय लोगों को बेचने पर प्रतिबंध है. यह प्रतिबंध न केवल बाहरी लोगों पर, बल्कि राज्य के गैर-जनजातीय निवासियों पर भी लागू होता है.

हालांकि, इन राज्यों और क्षेत्रों में बाहरी लोगों पर भूमि खरीदने के प्रतिबंध लगाने के कई महत्वपूर्ण कारण हैं. जैसे कई राज्य और जनजातीय क्षेत्र अपनी सांस्कृतिक पहचान और परंपराओं की रक्षा के लिए भूमि सुरक्षा कानून लागू करते हैं. साथ ही, स्थानीय निवासियों को भूमि खरीद में बाहरी लोगों से होने वाली प्रतिस्पर्धा से बचाना भी एक कारण है. इसके अलावा, कुछ राज्यों में जनसांख्यिकीय बदलाव के डर से भी बाहरी लोगों पर पाबंदी लगाई जाती है.