उत्तराखंड का माणा गांव, जिसे पहले भारत का अंतिम गांव कहा जाता था, अब भारत के पहले गांव के तौर पर जाना जाएगा. सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) ने सोमवार को सीमावर्ती गांव की सीमा पर एक साइन बोर्ड भी लगा दिया. यह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पिछले साल अक्टूबर में माणा का दौरा करने और मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की टिप्पणी के लिए समर्थन दिखाने के कुछ महीने बाद आया है. जहां सीएम ने कहा था कि यह देश का पहला गांव है और हर सीमावर्ती गांव पहला गांव होना चाहिए. पीएम मोदी ने कहा था, 'जिन इलाकों को पहले देश की सीमा का अंत मानकर नजरअंदाज किया जाता था, हम उन्हें देश की समृद्धि की शुरुआत मानने लगे.' प्रधानमंत्री ने आगे कहा था कि लोग माणा आएं, यहां डिजिटल टेक्नोलॉजी का प्रयोग किया जा रहा है.
सीएम धामी ने कहा कि पीएम मोदी के शासन में देश के सीमावर्ती इलाके और जीवंत हो रहे हैं. धामी ने कहा, 'इसके लिए वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम शुरू किया गया था.'
क्या है उद्देश्य?
वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम निर्दिष्ट सीमा समुदायों में रहने वालों के जीवन स्तर को बढ़ाने में सहायता करेगा. इसका लक्ष्य अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश और केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख सहित उत्तर की सीमा से लगे 19 जिलों के 46 ब्लॉकों में 2967 गांवों को विकसित करना है.उन्होंने कहा कि 'वाइब्रेंट विलेज' कार्यक्रम का उद्देश्य सीमावर्ती गांवों का विकास करना, ग्रामीणों के जीवन की गुणवत्ता में सुधार करना, स्थानीय संस्कृति, पारंपरिक ज्ञान और विरासत को बढ़ावा देकर पर्यटन क्षमता का दोहन करना और समुदाय आधारित संगठनों, सहकारी समितियों और गैर सरकारी संगठनों को बढ़ावा देना है.
धामी ने आगे कहा,''कार्यक्रम का उद्देश्य 'वन विलेज, वन प्रोडक्ट' की अवधारणा पर इको-सस्टेनेबल इको-एग्री-बिजनेस को विकसित करना भी है." उन्होंने कहा कि ग्राम पंचायतों के सहयोग से जिला प्रशासन द्वारा वाइब्रेंट विलेज एक्शन प्लान तैयार किया गया है. सीएम ने कहा कि यह योजना सीमावर्ती क्षेत्रों से पलायन को रोकने में मददगार होगी, पीएम मोदी ने एक बयान में कहा "21 वीं सदी का तीसरा दशक उत्तराखंड का है, हमें नए उत्साह और ऊर्जा से भर देता है. यह हमें गर्व से भरता है और हमें अपने कर्तव्यों के बारे में अगाह करता है."
कहां है माणा ?
माणा गांव उत्तराखंड के चमोली जिले का एक छोटा सा गांव है, पहले इसे भारत का आखिरी गांव कहा जाता था लेकिन अब इसे देश का पहला गांव कहा जाएगा. पीएम मोदी का मानना है कि सीमाओं पर बसा हर गांव देश का पहला गांव ही है,अब इसे नजरअंदाज नहीं किया जाएगा. ऐसा इसलिए क्योंकि ये गांव भारत-तिब्बत सीमा से बिल्कुल सटा हुआ है. कहा जाता है कि माणा में व्यास और गणेश गुफा भी हैं. कहा जाता है कि यही बैठकर वेद व्यास ने गणेश जी को महाभारत बोलकर सुनाई थी, जिसे गणेश जी ने अपने हाथों से लिखा था.
गांव के आसपास क्या है
माणा के आसपास कई देखने लायक जगह मौजूद हैं. यहां सरस्वती और अलकनंदा नदियों का संगम होता है. साथ ही यहां कई प्राचीन मंदिर और गुफाएं भी हैं, जिन्हें देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा होती है. गांव की ऊंचाई समुद्र तल से 18,000 फुट ऊंची है, जहां से वादियों की खूबसूरती देखने लायक है. यह गांव बद्रीनाथ से मात्र तीन किमी दूर है. माणा में आप वेद व्यास की गुफा, भीम पुल, बद्रीनाथ मंदिर और तप्त कुंड घूमने लायक जगह हैं. भीम पुल से थोड़ा आगे पांच किलोमीटर बढ़ने पर आपको वसुधारा मिलेगी. यह एक झरना है जोकि लगभग 400 फीट ऊंचाई से गिरता इस वाटर फॉल का पानी देखने में मोतियों की बौछार सा लगता है. ऐसा कहा जाता है कि इस पानी की बूंदें पापियों के तन पर नहीं पड़तीं हैं.
माणा गांव से थोड़ा आगे बनें भीम पुल की कहानी बड़ी दिलचस्प है. कहा जाता है कि पांडव अपना राज-पाठ छोड़ कर जब स्वर्ग की ओर जा रहे थे तो वे माणा गांव से होकर गुजरे थे. रास्ते के एक झरने को पार करने के लिए पांडवों में सबसे ताकतवर भाई भीम ने चट्टान फेंक कर पुल बनाया था इसलिए इसे भीम पुल कहा जाता है. बगल में स्थानीय लोगों ने भीम का मंदिर भी बना रखा है।
माणा के बारे में रोचक तथ्य
- इस गांव का नाम मणिभद्र देव के नाम पर माणा पड़ा था.
- पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, यह भारत का एकमात्र ऐसा गांव है, जो धरती पर मौजूद चारों धामों में भी सबसे पवित्र माना जाता है. इस गांव को शापमुक्त और पापमुक्त भी माना जाता है.
- कहते हैं कि इस गांव में जो भी आता है उसकी गरीबी दूर हो जाती है क्योंकि इस गांव को शिव जी से आशीर्वाद मिला हुआ है. इस वजह से हर साल लोग बड़ी संख्या में यहां घूमने आते हैं.
- यहां भोजपत्र भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं, जिन पर हमारे महापुरुषों ने अपने ग्रंथों की रचना की थी.
- यहां पर कई सारी जड़ी बूटियां भी मिलती हैं. जड़ी-बूटियों में बालछड़ी के नाम से जानी जाने वाली बूटी बालों को लंबा घना करने और रूसी खत्म करने के लिए जानी जाती है.
- शराब के बाद चाय यहां के लोगों का प्रमुख पेय पदार्थ है. यहां चावल से शराब बनाई जाती है और यह घर-घर में बनती है. हिमालयी क्षेत्र और जनजाति होने के कारण सरकार ने इन्हें शराब बनाने की छूट दे रखी है.