उत्तरकाशी टनल में फंसे 41 मजदूरों के नजदीक बचावदल पहुंच गया है. पता चला कि है कि इनमें से कुछ को बुखार, बदहजमी की दिक्कत है. इन लोगों को दवाई दी गई है और मनोचिकित्सकों से भी बात कराई गई. घुप्प अंधेरे में 60 मीटर पाइप के सहारे 12 दिनों से ज्यादा रहते हुए स्वस्थ इंसान शारीरिक ही नहीं बल्कि कई मानसिक स्थितियों से गुजरता है. यह एक तरीके का ट्रॉमा है. व्यक्ति को कभी ना भूल पाने वाला मंजर रह रहकर याद आता है. इतना बड़ा ट्रामा, इतना खौफनाक मंजर, निकलने के बाद अगले एक महीने 41 मजदूरों के लिए कैसे होगा? और बचने के लिए क्या करना चाहिए इसके बारे में हमने विशेषज्ञ से बात की.
मोटीवेशन है बेहद जरूरी
शुरुआती दिनों में उन्हें बहुत परेशानी और टेंशन रही होगी क्योंकि टनल के अंदर अनिश्चितता सबसे ज्यादा परेशान करती है. 41 मजदूरों के ऑडियो विजुअल कांटेक्ट इस्टैबलिश्ड होने के बाद सपोर्टिव काउंसलिंग बहुत जरूरी है. व्यक्ति और समूह का मनोबल भले ही काम कर रहा हो लेकिन बाहरी मदद की जरूरत होती है. एक्स्ट्रा सपोर्टिव काउंसलिंग की जरूरत है. सभी मजदूर एडल्ट हैं एक दूसरे को जानते और समझते हैं और सेम हालात में काम करते हैं. लिहाजा मिलजुलकर सबकी मनोस्थिति बहुत अच्छी होगी यह उम्मीद की जा सकती है. मनसा ग्लोबल फाउंडेन फॉर मैडिकल हेल्थ की फाउंडर क्लीनिकल साइकोलॉजिस्ट श्वेता शर्मा ने कहा कि मजदूरों को मोटीवेशन और विलपावर ही सरवाइवल पावर देगा. खास ध्यान रखा जाए कि उम्मीद जो हम उनको दे रहे हैं वो 100 फीसदी होनी चाहिए. इसमें आशंका ना हो. ये उम्मीद ही विलपावर और क्षमता को बढ़ाने में मदद करेगी.
4 तरीके की समस्या देख रहे मनोचिकित्सक
मनोचिकित्सक ने हमें बताया कि जब इन मजदूरों को बाहर निकाला जाएगा तो उनकी मनः स्थिती वैसी नहीं होगी जैसी तब थी जब वो काम कर रहे थे. इन लोगों तो 4 तरीके की समस्या हो सकती है.
डिप्रेशन- बहुत लंबे समय तक ऐसी जगह पर रहे जहां पर उम्मीद लगभग ना थी.
एंजाइटी- समझ पा रहे थे कि निकल पाएंगे या नही ये लंबे समय तक दिमाग में होने पर तनाव की स्थिति हो जाती है.
पैनिक अटैक- एंजाइटी का लेवल हाइ होने पर शरीर पर दिमाग का नियंत्रण खत्म हो जाता है. इसे ही पैनिक एंगजाइटी डिसऑर्डर कहते हैं.
पीटीएसडी- post traumatic stress disorder
ये लंबे समय तक अवसाद के तौर पर दिमाग पर असर करता है. बाहर आने पर उसे सही होने में समय लगेगा. एंगजाइटी भी फैलेगी क्योंकि कई लोग पैनिक कर रहे हैं. ये एंग्जाइटी बाहर आकर पैनिक अटैक में कन्वर्ट हो सकती है. कई लोगों को पैनिक अटैक का सामना करना पड़ सकता है.
श्वेता शर्मा का कहना है कि प्राइमरी फर्स्ट एड के बाद काउंसिलिंग और कुछ केसो में दवाओं की जरूरत पड़ती है. साइकेट्रिस्ट और क्लीनिकल साइकॉलॉजिस्ट की मौजूदगी में एंग्जाइटी है या पीटीएसडी है सभी तरह की साइकोथेरेपी तकनीक लगाई जाएगी जो तीन से लेकर 6 महीने तक चल सकता है. इस पर सरकार की तरफ से ध्यान देना जरूरी है तभी वो ट्रामा से बाहर आ सकेंगे. भूकंप पर की गई स्टडी ने पीटीएसडी post traumatic stress disorder को खत्म करने का सबसे इफैक्टिव तरीका बताया.
क्या कहती है रिसर्च?
वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉ Dr Nimesh G Desai ने कहा कि उत्तरकाशी की घुप्प अंधेरी सुरंग से 41 मजदूर जब बाहर आएंगे तो उनकी ट्रॉमा काउंसलिंग या डीप ब्रीफिंग बहुत जरूरी है. उनको अपने वेंटिलेशन और अनुभव बयां करने का मौका दिया जाए जिससे लंबे अरसे की कॉम्प्लिकेशन कम हो जाएगी. निमेष ने पीटीएसटडी को वैज्ञानिक रूप से संभव बताया. दरअसल गुजरात में भूकंप के बाद दशकों तक रिसर्च हुई और पता लगा कि भारत में अगर पीटीएसडी के क्लीनिकल पिक्चर या लक्षण नजर आते हैं तो आसानी से रिकवर कर जाते हैं जबकि वियतनाम कोरिया और गल्फ वार के वक्त में अमेरिका में पीटीएसडी के मामले बहुत देखे गए.
क्या होता है वेंटिलेशन
गुजरात के भूकंप के बाद आईसीएमआर और गुजरात सरकार की मदद से 2001 की भूकंप पर स्टडी की गई. कक्ष एरिया में 35000 व्यक्तियों की शॉर्ट या लॉन्ग टर्म में पीटीएसडी के मामले पर रिसर्च हुई लेकिन किसी में भी लांग या शॉर्ट टर्म मेमरी नही देखी गई. निमेष का कहना है कि कल्चरल वेरिएशन भारत में बहुत है, लिहाजा डीप काउंसलिंग और डीप ब्रीफींग पर जोर दिया जाना चाहिए. मजदूरों का ढ़ाढस बढ़ाना है reassure करना है ताकि वो बाहर निकलने पर अपने अनुभवों को व्यक्त कर सकें. इस प्रोसेस को वेंटिलेशन कहते हैं और फैमिली से मिलने के बाद री एश्योरेंस हो जाएगी.
(राम किंकर सिंह की रिपोर्ट)