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Birthday Special: आवारा मसीहा जैसी कालजयी रचना लिखने वाले विष्णु प्रभाकर के बारे में जानिए अनसुनी बातें

Happy Birthday Vishnu Prabhakar: विष्णु प्रभाकर ने हिंदी की प्रायः सभी विधाओं कहानी, नाटक, उपन्यास, यात्रावृत, रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध, अनुवाद, बाल साहित्य आदि में प्रचुर लेखन किया. फिर भी वे स्वयं को कहानीकार ही मानते थे. 

Vishnu Prabhakar (file photo) Vishnu Prabhakar (file photo)
हाइलाइट्स
  • विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून 1912 को हुआ था

  • आवारा मसीहा लिखने के लिए अपने जीवन के 14 वर्ष लगाए थे

विष्णु प्रभाकर हिन्दी के उन विरले साहित्याकरों में से एक हैं, जिन्होंने कहानियां लिखीं, उपन्यास, नाटक और यात्रा वृतांत लिखे. आवारा मसीहा जैसी कालजयी रचना लिखने वाले विष्णु प्रभाकर का जन्म 21 जून 1912 को उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर स्थित ग्राम मीरापुर में हुआ था. विष्णु प्रभाकर के पिता का नाम दुर्गा प्रसाद और माता का नाम महादेवी था. विष्णु प्रभाकर का असली नाम विष्णु दयाल था.

प्रारंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई
विष्णु प्रभाकर की प्रारंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई. इसके बाद वह अपनी नानी के घर हरियाणा स्थित हिसार आ गए. प्रभाकर की घर की स्थिति ठीक-ठाक नहीं थी इसीलिए आगे की शिक्षा के लिए नानी के घर जाना पड़ा था. विष्णु प्रभाकर ने वर्ष 1929 में हिसार से मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की. इसके बाद वे नौकरी करने लगे. इसके साथ ही उन्होंने पंजाब विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में बीए की डिग्री प्राप्त की. पंजाब विश्वविद्यालय से ही उन्होंने हिंदी भूषण,  प्राज्ञ, हिंदी प्रभाकर किया. 1944 में वे दिल्ली आ गए. कुछ समय अखिल भारतीय आयुर्वेद महामंडल और आकाशवाणी में काम किया. 

स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान गिरफ्तार भी हुए 
वह स्वतंत्रता आंदोलन में 1940 और 42 में गिरफ्तार हुए और शासनादेश के कारण उन्हें पंजाब छोड़ना पड़ा. उन्हीं दिनों उन्होंने खादी पहनने का संकल्प लिया और उसे जीवनभर निभाया. उन्होंने हिंदी की प्रायः सभी विधाओं कहानी, नाटक, उपन्यास, यात्रावृत, रेखाचित्र, संस्मरण, निबंध, अनुवाद, बाल साहित्य आदि में प्रचुर लेखन किया. फिर भी वे स्वयं को कहानीकार ही मानते थे. वह अपने प्रारंभिक जीवन में रंगमंच से भी संबद्ध रहे. उन्होंने अनेक पुस्तकों का सम्पादन किया. 

बांग्ला भाषा सीखकर शरद चंद्र के समय के सैकड़ों लोगों से बात की
आवारा मसीहा उनकी सर्वाधिक चर्चित रचना है. इसके लिए उन्होंने जीवन के 14 वर्ष लगाए. उन्होंने बांग्ला भाषा सीखकर शरद चंद्र के समय के सैकड़ों समकालीन लोगों से बात की. बिहार, बंगाल और बर्मा (म्यांमार) का व्यापक भ्रमण किया. इससे पूर्व शरद चंद्र की कोई प्रामाणिक जीवनी नहीं थी. विष्णु प्रभाकर का निधन 11 अप्रैल 2009 को नई दिल्ली में हुआ था. उनकी इच्छानुसार मृत्यु के बाद उनका शरीर चिकित्सा विज्ञान के विद्यार्थियों के उपयोग के लिए अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) को दान कर दिया गया.

प्रमुख रचनाएं
कहानी संग्रह: एक आसमान के नीचे, मेरा वतन, संघर्ष के बाद, आदि और अंत, अधूरी कहानी, धरती अब भी घूम रही है, पाप का घड़ा, कौन जीता कौन हारा, तपोवन की कहानियां और मोती किसके. 
नाटक: सत्ता के आर पार, हत्या के बाद, बारह एकांकी, नवप्रभात, प्रकाश और परछाई, अब और नहीं, डॉक्टर, टूटते परिवेश, गांधार की भिक्षुणी और अशोक.
उपन्यास: अर्धनारीश्वर, स्वपनमय, होरी, कोई तो, तट का बंधन, स्वराज्य की कहानी और ढलती रात. 
जीवनी: आवारा मसीहा और अमर शहीद भगत सिंह.
संस्मरण: हमसफर मिलते रहे.
यात्रा वृतांत: जमुना गंगा के नहर में, ज्योतिपुंज, हंसते निर्झर दहकती भट्ठी.
आत्मकथा: और पंछी उड़ गया, मुक्त गगन में, क्षमादान और पंखहीन.
कविता संग्रह: चलता चला जाऊंगा.

मिले पुरस्कार
विष्णु प्रभाकर को आवारा मसीहा के लिए कई विदेशी पुरस्कार मिले. उपन्यास अर्धनारीश्वर के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार, नाटक सत्ता के आरपार के लिए मूर्ति देवी पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ की ओर दिया गया. शलाका सम्मान भी मिला. भारत सरकार ने पद्म विभूषण से सम्मानित किया.