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Wayanad Landslide Rescue: कैसे वायनाड में बचाव कार्य का चेहरा बन गई यह तस्वीर, जानिए क्या है इसके पीछे की कहानी

Wayanad Rescue Operation: इस तस्वीर में एक डरा हुआ बच्चा दिख रहा है. जो एक सुरक्षाकर्मी से लिपटा हुआ है. तस्वीर में देखा जा सकता है कि इस बच्चे की पीठ पर एक कपड़ा बंधा हुआ है ताकि वह बचाव कर रहे ऑफिसर की पकड़ से न निकले. आइए जानते हैं क्या है इस बचाव कार्य के पीछे की पूरी कहानी.

हाइलाइट्स
  • वन अधिकारियों ने शनिवार को बचाया परिवार

  • प्रभावित क्षेत्र से दूर एक जंगल में फंसे थे लोग

वायनाड में प्रशासन और सुरक्षाबल लगातार जिन्दगी को पटरी पर लौटाने की कोशिश कर रहे हैं. लैंडस्लाइड से प्रभावित इलाके से सामने आई एक तस्वीर इन्हीं कोशिशों की बानगी बन गई है. इस तस्वीर में वन विभाग के एक अधिकारी ने राहत कार्य में बचाए गए एक बच्चे को अपने सीने से लगा रखा है. 

तस्वीर में डरा हुआ दिख रहा बच्चा उस छह सदस्यीय आदिवासी परिवार का हिस्सा है, जो त्रासदी प्रभावित अट्टामाला के करीब सोचीपारा झरने के नीचे एक गुफा में भूख से मरता हुआ पाया गया था. यह परिवार इसी गुफा में रहता था. पांच साल से कम उम्र के चार बच्चों वाले इस परिवार को बचाने के लिए वन विभाग की टीम को आठ घंटे का समय लगा. 

कैसे मिली जानकारी?
द इंडियन एक्सप्रेस ने कलपेट्टा वन रेंज अधिकारी के आसिफ के हवाले से बताया कि इस मिशन के लिए उन्हें चट्टानी इलाके को पार करना था. उनके सामने एक चुनौती यह भी थी कि वह परिवार को गुफा छोड़ने के लिए किसी तरह मनाएं. आसिफ के साथ इस मिशन पर अनुभाग वन अधिकारी जयचंद्रन, बीट वन अधिकारी के अनिल कुमार और वन रैपिड रिस्पांस टीम के सदस्य अनूप थॉमस भी थे. 

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आसिफ ने बताया कि त्रासदी के पहले दिन जब बचाव दल चूरलमाला में नदी के उस पार रस्सी से एक रास्ता बनाने में कामयाब रहा तो वह जयचंद्रन के साथ यह जांचने के लिए दूसरी तरफ गए कि अट्टामाला में एक आदिवासी कॉलोनी के निवासी क्या कर रहे हैं. 

रिपोर्ट आसिफ के हवाले से बताती है, “अट्टामाला और मुंडक्कई क्षेत्रों से घायलों और मृतकों को लाने के लिए रस्सी बांधी गई थी. अट्टामाला की कॉलोनी में पहुंचने पर हमने एक महिला को पांच साल के लड़के के साथ पाया. कॉलोनी की दूसरी महिलाएं उसे अपने घर लौटने के लिए मना रही थीं, जो कॉलोनी से दूर (कुछ किलोमीटर दूर एक गुफा में) था. हम उसी शाम चूरलमाला लौट आए." 

इसके बाद वन विभाग के अधिकारियों ने बुधवार को अट्टामाला के सभी निवासियों को गांव से निकालकर सुरक्षित क्षेत्र पहुंचा दिया. फिर जब टीम गुरुवार को गांव की स्थिति का जायजा लेने पहुंची, तो जयचंद्रन ने पाया कि वह महिला अपने सबसे बड़े बच्चे (जिसकी उम्र महज पांच साल थी) के साथ जंगल में परेशान घूम रही थी. शुरुआत में वह महिला अधिकारियों से बात करने से हिचकिचा रही थी. 

बाद में उन्हें पता चला कि वह आदिवासी महिला गांव से अपना राशन लेकर गुफा में लौट जाया करती थी. जब अधिकारियों को पता चला कि वे दोनों भूखे हैं तो उन्हें बिस्किट और पानी दिया गया. इसके बाद ही महिला ने बताया कि उस गुफा में उनका पति और उनके तीन बच्चे भूख से परेशान हैं. 

फिर शुरू हआ बचाव कार्य
महिला और बच्चे को वन विभाग क्वार्टर में ठहराने के बाद चार वन अधिकारी परिवार के बाकी सदस्यों तक पहुंचने के लिए उस दुर्गम इलाके से चार किलोमीटर पैदल चले. टीम अपने साथ एक कंबल, कुछ बिस्किट और एक रस्सी भी ले गई. रस्सी के सहारे से टीम गुफा तक पहुंचने के लिए फिसलन भरे, पथरीले इलाके पर चढ़ गई.

आसिफ बताते हैं, “वो जगह पानी से भरी हुई थी. जब हम उन्हें मिले तो पिता कृष्णन और सभी बच्चे एक चादर के नीचे छिपे हुए थे. हमें डर था कि वे हमारे साथ नहीं जाएंगे, लेकिन जब हमने स्थिति की गंभीरता और वहां रहने के खतरे के बारे में उन्हें बताया तो कृष्णन हमारे साथ चलने के लिए सहमत हो गए.” 

बच्चों को गुफा से निकालना बना चुनौती
गुफा में जो तीन बच्चे फंसे थे उनमें से एक की उम्र सिर्फ एक साल थी. गीली और पथरीली जमीन पर बच्चों को वापस ले जाना बड़ी चुनौती थी. इसके लिए वन्य अधिकारियों ने कम्बल को फाड़कर एक गोफन बनाया. इसमें एक समय में एक ही बच्चे को बिठाया जा सकता था. फिर वन अधिकारी एक के बाद एक बच्चों को गोफन में लेकर चट्टान पर चढ़ गए. 

एक्सप्रेस के अनुसार, जयचंद्रन बताते हैं, “यह बहुत जोखिम भरा था. अगर गलती होती तो हम 100 मीटर की खाई में गिर सकते थे. शिविर में वापस जाते समय, हम बारी-बारी से बच्चों को गोफन में ले गए. हमें उन्हें सुरक्षित वापस लाने के लिए पूरे दिन मेहनत करनी पड़ी." 

पूरे परिवार को अब वन्य विभाग की देखरेख में रखा गया है. यह घटना उस त्रासदी के बीच आशा की एक किरण बनकर उभरी है जिसमें आधिकारिक तौर पर 219 लोगों की जान चली गई है, जबकि 200 अभी भी लापता हैं.