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Delhi's Air Pollution: पहले दिल्ली की तरह ही जहरीली थी बीजिंग की हवा, फिर चीन ने उठाए अहम कदम... जानिए पड़ोसी देश से क्या सीख ले सकता है भारत

आज से करीब दो दशक पहले लांसेट की ओर से प्रकाशित रिपोर्ट में बीजिंग को दुनिया का 'वायु प्रदूषण कैपिटल' कहा गया था. फिर ऐसा क्या हुआ कि चीन ने अपनी हवा के स्तर में सुधार कर लिया? पढ़िए.

हर साल की तरह इस साल भी अक्टूबर के आगमन के साथ दिल्ली की हवा ज़हरीली हो गई है. राष्ट्रीय राजधानी के इंडिया गेट पर सोमवार को एक्यूआई (Air Quality Index) 309 पर दर्ज किया गया. दिल्ली के कई इलाकों में एक्यूआई 400 का आंकड़ा पार कर चुका है और आने वाले महीनों में हालात बदतर होने की संभावना है. 

भारत की राजधानी बीते कई सालों से इस समस्या का सामना कर रही है लेकिन अब तक इसका कोई ठोस इलाज नहीं निकाला जा सका है. अगर तारीख पर नजर डालें तो पता चलता है कि कुछ समय पहले तक चीन की राजधानी बीजिंग की हवा भी जहरीली थी. लेकिन पड़ोसी देश कुछ अहम कदम उठाकर हालात सुधारने में कामयाब रहा है. 

कैसी थी बीजिंग की हवा
यह बात आज से 20 साल पुरानी भी नहीं है जब चीन की राजधानी की हवा दुनियाभर के लिए चिंता का विषय बनी हुई थी. खासकर इसलिए क्योंकि यह शहर 2008 में बीजिंग ओलंपिक्स की मेजबानी करने वाला था. नवंबर 2005 में लांसेट की ओर से प्रकाशित रिपोर्ट में बीजिंग को दुनिया का 'वायु प्रदूषण कैपिटल' (Air Pollution Capital of the World) कहा गया था. 

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इसी साल बीजिंग में वायु प्रदूषण 26 लाख लोगों की मौत का कारण भी बना था. बीजिंग ओलंपिक्स 2008 को एक सुरक्षित इवेंट बनाने के लिए चीन ने कई त्वरित कदम उठाए. जैसे कई फैक्ट्रियों को या तो बंद कर दिया गया या बीजिंग के बाहर भेज दिया गया. ट्रैफिक पर नियंत्रण बढ़ाया गया. साथ ही बीजिंग और आसपास के शहरों में कोयले के इस्तेमाल को कम किया गया. 

लेकिन वायु प्रदूषण को हराने के लिए ये कदम शॉर्ट-टर्म थे. चीन को ऐसे सस्टेनेबल कदम उठाने की जरूरत थी जिन्हें लंबे समय तक लागू करके हवा को साफ किया जा सके. इसी के बाद चीन ने 2013 में वायु प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई शुरू की.

चीन ने उठाए क्या कदम
बीते 11 सालों में चीन ने बीजिंग की हवा साफ करने के लिए कई अहम कदम उठाए. वायु प्रदूषण के खिलाफ युद्ध की घोषणा करने के बाद बीजिंग की हवा साफ करने के लिए हर साल 100 अरब डॉलर का भारी-भरकम निवेश किया गया. अधिकारियों ने फैक्ट्रियों पर नकेल कसी. पुरानी गाड़ियों को सड़कों से हटाया गया. कोयले की जगह प्राकृतिक गैस को ईंधन के तौर पर इस्तेमाल किया जाने लगा. 

इन सब प्रयासों के बाद भले ही चीन की हवा पूरी तरह साफ नहीं हो गई, लेकिन इसमें बहुत हद तक सुधार देखा गया है. बीजिंग के अधिकारियों का कहना है कि 2013 की तुलना में अब बीजिंग में हर साल 100 से ज्यादा दिन ​​आसमान साफ रहता है. आंकड़ों में बात करें तो 2013 में जहां औसत पीएम 2.5 (PM 2.5) एयर पॉल्यूशन लेवल 101.56 माइक्रोग्राम था, वहीं 2023 में यह घटकर सिर्फ 39 माइक्रोग्राम ही रह गया है. 


क्या सीख सकता है भारत
बीजिंग से करीब आठ हज़ार किलोमीटर दूर नई दिल्ली के सामने भी वही चुनौती है जो बीजिंग के सामने 10 साल पहले तक थी. अगर भारत दिल्ली की हवा साफ करने के लिए ठोस कदम नहीं उठाता है तो इस गैस चेंबर में अनगिनत लोग अपनी जान गंवा सकते हैं. सवाल यह है कि भारत क्या कर सकता है? 

इसका मुकम्मल जवाब ढूंढने के लिए शायद भारत को यह समस्या और गहनता से समझनी होगी, लेकिन चीन से कुछ सबक लिए जा सकते हैं. मिसाल के तौर पर, बीजिंग की तरह दिल्ली में भी ईंधन से चलने वाली गाड़ियों के संबंध में नियम कड़े किये जा सकते हैं. नवीकरणीय ऊर्जा जैसे बिजली से चलने वाली गाड़ियों को बेहतर तरीके से प्रोत्साहित किया जा सकता है. और सबसे जरूरी, पब्लिक ट्रांसपोर्ट में इजाफा कर लोगों को इसके इस्तेमाल के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है. 

Delhi aqi
दिल्ली में कई जगहों पर एक्यूआई 400 के पार पहुंच चुका है. (Photo/Getty Images)

हाल के वर्षों में, दिल्ली में दो कोयला जलाने वाले बिजली संयंत्रों को बंद कर दिया है. कोयले से पाइप्ड नैचुरल गैस की ओर रुख करने के प्रयास किए जा रहे हैं. राजधानी में 2025 तक कम से कम 8,000 इलेक्ट्रिक बसें तैनात करने की योजना भी बनाई गई है. लेकिन इन सबसे ऊपर एक और चीज है जो भारत के लोग सीख सकते हैं- वह है राष्ट्रीय राजधानी के वायु प्रदूषण को एक बड़े राजनीतिक मुद्दे की तरह देखना.

न्यूयॉर्क टाइम्स की एक रिपोर्ट इस बात पर रोशनी डालती है कि चीन में लोकतंत्र न होने के बावजूद बीजिंगवासियों ने जहरीली हवा के कारण सरकार के खिलाफ अपनी नाराजगी जाहिर की. कई लोगों ने शहर के चिंताजनक वायु प्रदूषण को 'एयरपोकैलिप्स' यानी वायु-प्रलय भी कहा. ऐसे में चीन की सरकार के ऊपर बीजिंग के हालात सुधारने के लिए दबाव बढ़ा. भारतीयों को भी यही ब्लूप्रिंट अपनाना होगा.

द न्यूयॉर्क टाइम्स प्रोफेसर ग्रीनस्टोन के हवाले से कहता है, "जो कुछ होता है उस पर लोगों की इच्छा का बहुत बड़ा प्रभाव हो सकता है. जब तक लगातार मांग न हो, वास्तविक सुधार हासिल करना बहुत मुश्किल है. भारत में वायु प्रदूषण को आज तक उतनी केंद्रीय राजनीतिक प्राथमिकता नहीं मिली है जितनी चीन में है."