असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (AFSPA) को लेकर बड़ा ऐलान किया है. सीएम ने ट्वीट कर बताया कि 2023 के आखिर तक असम से अफस्पा को पूरी तरफ समाप्त कर दिया जाएगा. उन्होंने बताया कि पुलिस बल को प्रशिक्षित करने के लिए पूर्व सैन्य कर्मियों की मदद ली जाएगी. वर्तमान में असम के 8 जिलों में अफस्पा लगा हुआ है.
जिन इलाकों से अफस्पा को हटाया जाता है, वो अब अशांत क्षेत्र नहीं रह जाते हैं. सुरक्षाबलों की शक्तियां सीमित हो जाती हैं. जिस तरह अभी सुरक्षाबल बिना वारंट किसी की भी गिरफ्तारी कर सकते हैं, शक के आधार पर उनपर गोली चला सकते अफस्पा हटने के बाद ये सब नहीं कर सकते हैं.
असम में 1990 में लागू किया गया था अफस्पा
असम में यह कानून नवंबर 1990 में लागू किया गया था. उसके बाद से राज्य सरकार की ओर से स्थिति की समीक्षा किए जाने के बाद इसे हर छह महीने में बढ़ाया जाता है.असम के 8 जिलों में पिछले साल सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून 1958 (अफस्पा) को छह महीने के लिए बढ़ाया गया है.
क्या होता है AFSPA
पूर्वोत्तर में सुरक्षाबलों की मदद करने के लिए 11 सितंबर 1958 को अफस्पा कानून को पास किया गया था. 1989 में जब जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ा तो यहां 1990 में अफस्पा लागू कर दिया गया. अशांत क्षेत्र कौन होंगे ये केंद्र सरकार ही तय करती है. अफस्पा केवल अशांत क्षेत्रों में ही लागू होता है. ऐसे इलाकों में सुरक्षाबलों के पास बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार करने की ताकत ताकत होती है और कई मामलों में बल प्रयोग भी किया जा सकता है.
इसके तहत कौन-से विशेष अधिकार सुरक्षा बलों को मिले हैं
1. अफस्पा सशस्त्र बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले व्यक्ति को चेतावनी देने के बाद बल प्रयोग करने यहां तक कि गोली चलाने का अधिकार देता है.
2. बिना वारंट के किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और तलाशी लेने का भी अधिकार होता है.
3. अफस्पा सुरक्षा बलों को कानूनी कार्रवाई से भी बचाता है. यह कानून न केवल तीनों सेनाओं, बल्कि अर्धसैनिक बलों जैसे सीआरपीएफ और बीएसएफ पर भी लागू होता है.
4. किसी आश्रय स्थल या ढांचे को तबाह किया जा सकता है जहां से हथियार बंद हमले का अंदेशा हो.
5. बिना वारंट किसी के घर में अंदर जाकर उसकी तलाशी ली जा सकती है. इसके लिए जरूरी बल का इस्तेमाल किया जा सकता है.
6. वाहन को रोककर उसकी तलाशी ली जा सकती है.
7. सेना के कार्य पर केवल केंद्र सरकार हस्तक्षेप कर सकती है.
8. जब तक केंद्र सरकार मंजूरी न दे, तब तक सुरक्षाबलों के खिलाफ कोई मुकदमा या कानूनी कार्रवाई नहीं की जा सकती.
अफस्पा की आलोचना क्यों
पिछले कुछ वर्षों में अफस्पा की काफी आलोचना हुई है. 31 मार्च, 2012 को संयुक्त राष्ट्र ने भारत से कहा कि लोकतंत्र में अफस्पा का कोई स्थान नहीं है इसलिए इसको रद्द कर दिया जाए. ह्मयूम राइट्स वॉच भी इसकी आलोचना कर चुका है. अफस्पा पर मानवाधिकार संगठन, अलगाववादी और राजनीतिक दल सवाल उठाते रहे हैं. उनका तर्क है कि इस कानून से मौलिक अधिकारों का हनन होता है. इस कानून के कुछ सेक्शन पर भी विवाद है. सबसे पहले ब्रिटिश सरकार ने भारत छोड़ों आंदोलन को कुचलने के लिए अफस्पा को अध्यादेश के जरिए 1942 में पारित किया था.