
ओडिशा ने सफलतापूर्वक अहिंसा सिल्क प्रोजेक्ट का सफलतापूर्वक संचालन किया है. यह खास प्रोजेक्ट हैं जिसमें रेशम एक्सपर्ट्स इको-फ्रेंडली, और क्रुएलिटी-फ्री तरीके से रेशम बना रहे हैं. पिछले साल पांच जिलों के 700 किसानों को इस प्रोजेक्ट में शामिल किया गया था. विभाग ने इस साल इसे उगाने के लिए 3,000 किसानों को शामिल करने की योजना बनाई है.
पाटा या रेशम की साड़ी बुनने के लिए लगभग 30,000 रेशम के कीड़ों को जिंदा उबाला जाता है. लेकिन ओडिशा ने इस हिंसा को बंद करने का फैसला किया है. हथकरघा, कपड़ा और हस्तशिल्प विभाग ने 'अहिंसा सिल्क' नामक एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया है. यह प्रोजेक्ट सुनिश्चित करता है कि रेशम बनाने के लिए रेशम के कीड़ों को मारा नहीं जाए. पारंपरिक विधि में जीवित कीड़ों के साथ कोकून को उबालने के बाद सिल्क निकाला जाता है. लेकिन ओडिशा सरकार ने इस पर काम करने की शुरुआत की है.
इस तरह बनाया जाता है अहिंसा सिल्क
विभाग ने अरंडी आधारित एरिकल्चर प्रक्रिया शुरू की है. अहिंसा रेशम - जिसे शांति, शाकाहारी या क्रूरता-मुक्त रेशम भी कहा जाता है - एरी सिल्कवॉर्म से रेशम बनाने की एक सौम्य, अहिंसक विधि है. इस प्रक्रिया में रेशम के कीड़ों को बिना नुकसान पहुंचाएं रेशम बनाया जाता है. इस प्रोसेस में रेशम के कीड़े बढ़ते हैं और 18 से 20 दिनों तक अरंडी की पत्तियों को खाते हैं.
इसके बाद जब वे अपनी फाइनल स्टेज पर पहुंच जाते हैं और फिर कीड़े अपना कोकून बनाना शुरू करते हैं जिसमें 9 से 10 दिन और लगते हैं. कोकून बनाने के बाद वे धीरे-धीरे पतंगों में बदल जाते हैं और एक बार जब वे कोकून से बाहर निकल जाते हैं, तो रेशम बनाने का काम शुरू होता है.
रीलिंग की बजाय कताई को चुना
द न्यू इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, एरी रेशम कोकून में एक सतत फिलामेंट होता है जिसकी प्रयोग करने योग्य लंबाई 900 मीटर से 1 किमी तक होती है. इसे सेरिसिन (एक प्रोटीन जो फिलामेंट को बांधता है) को नरम करके और फिर तारों को खोलकर मुक्त किया जाता है. इन बेहद नाजुक और पतले रेशम के धागों को एक साथ घुमाकर सूत बनाया जाता है.
Always love these beautiful Handloom Ahimsa silk sarees! Odisha products pic.twitter.com/8iBaT5j2dA
— Biswajit Mohanty FCA,Ph.D🐯 କଳିଙ୍ଗ ପୁତ୍ର (@biswajitmohanty) February 21, 2021
विभाग ने टूटे हुए फिलामेंट्स पर सबसे खराब कताई विधि को अपनाया है. यार्न बनाने के लिए उन्होंने रीलिंग विधि का प्रयोग नहीं किया. क्योंकि रीलिंग विधि में गर्म उबलते पानी में रेशम के कीड़ों को बड़े पैमाने पर मारा जाता है.
पांच जिलों में शुरू हुआ था प्रोजेक्ट
अहिंसा सिल्क प्रोजेक्ट पिछले साल अक्टूबर में पांच जिलों - क्योंझर, अथागढ़, खुर्दा, नयागढ़ और सुंदरगढ़ में शुरू किया गया था. विभाग ने होसुर में केंद्रीय रेशम उत्पादन जर्मप्लाज्म संसाधन केंद्र (Central Sericultural Germplasm Resources Centre) से 30,000 एरी सिल्क अंडे खरीदे और जिलों के 700 किसानों को इसमें शामिल किया गया.
खासकर कि महिलाएं इस प्रोजेक्ट में शामिल हुईं, जो पहले बीड़ी श्रमिक हआ करती थीं. प्रोजेक्ट का लक्ष्य 50 क्विंटल कीड़े वाले कोकून उगाने का था, पांच जिलों में 82 क्विंटल का उत्पादन हुआ. इस स्टॉक से 12.8 क्विंटल खाली कोकून प्रोड्यूस हुआ, जिसे सिखरचंडी स्थित विभाग की एरी यूनिट में लाया गया. वहां से, उन्हें सूत का उत्पादन करने के लिए ओडिशा के बाहर एक कताई मिल में भेजा गया. कुल स्टॉक से लगभग 40 प्रतिशत यार्न रिकवर कर लिया गया.
श्रीमंदिर को समर्पित
इस सूत के पहले बैच का उपयोग इस साल पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ और उनके दिव्य भाई-बहनों के लिए गीता गोविंदा खंडुआ पाटा बुनने के लिए किया गया था. वास्तव में, श्रीमंदिर के सेवक पवित्र त्रिमूर्ति और अन्य देवताओं - श्रीदेवी, भूदेवी, सुदर्शन और माधव - को हर दिन तैयार करने के लिए 88 मीटर खंडुआ पाटा का उपयोग करते हैं, जिसमें कवि जयदेव के महाकाव्य गीत गोविंदा के बोल हैं. इसका अर्थ है 4 से 6 लाख रेशमकीड़ों को मारना.
लेकिन पीस या शांति सिल्क हिंसा से दूर रहता है. अहिंसा हिंदू धर्म के सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांतों में से एक है. अगर कोई यह प्रश्न करता है कि क्या भगवान जगन्नाथ ऐसे कपड़े पहनना पसंद करेंगे जो निर्दोष रेशम के कीड़ों को मारकर बुने गए हों, तो उत्तर होगा नहीं. इसलिए, ओडिशा सरकार ने अहिंसा रेशम को पवित्र त्रिमूर्ति को समर्पित करने का फैसला किया.
विशेष अवसरों के लिए बनाए गए वस्त्र
खंडुआ पाटा को खुर्दा जिले के एक छोटे से गांव रौतापाड़ा के गोपीनाथ दास ने बुना था, जो पुरी मंदिर के लिए नियमित रूप से सूती और रेशम के कपड़ों की आपूर्ति करता है. गोपीनाथ और उनके परिवार के सदस्य पिछले दो दशकों से अधिक समय से देवताओं के लिए कपड़े बुन रहे हैं. दास ने द न्यू इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जहां तक टाई और डाई का सवाल है, अहिंसा रेशम काम करने का एक कठिन माध्यम है, लेकिन मंदिर में पारंपरिक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले पारंपरिक शहतूत रेशम की तुलना में यह बेहतर गुणवत्ता का है.
ADT, Khordha visited the Rautapada PWCS alongwith Sri Suresh Kumar Sahu,SARCS, Sri Dukhabandhu Behera, Inspector Industry & Sri Sudhakar Das ,TA for monitoring the workshop of tie-dye making on Ahimsa silk yarn. Trainees also displayed the prepared tie-dyed Ahimsa silk yarn. pic.twitter.com/GRRObQKAFY
— Handlooms,Textiles & Handicrafts Department,Odisha (@HTH_Odisha) June 25, 2023
उन्होंने श्रीमंदिर को खंडुआ पाटा के दो सेट की आपूर्ति की है, एक खलीलगी एकादसी के लिए और दूसरा चितौ अमाबस्या के लिए. विभाग ने फिलहाल विशेष अवसरों के दौरान मदिर के लिए अहिंसा रेशम से तैयार गीता गोविंदा खंडुआ पाटा उपलब्ध कराने की योजना बनाई है क्योंकि उत्पादन अभी स्टेबल नहीं हुआ है. दास की वर्कशॉप में तीन और सेट तैयार हैं जिन्हें श्रीमंदिर में आने वाले त्योहारों - गम्हा पूर्णिमा, जन्माष्टमी और राधाष्टमी के लिए उपलब्ध कराया जाएगा.
बुनकरों को मिल रहा है बढ़ावा
सिर्फ रेशम का धागा ही नहीं बल्कि विभाग ने नवंबर, दिसंबर, जनवरी, फरवरी और मार्च के महीनों के दौरान पांच चक्रों में एरी रेशम के अंडों की कमर्शियल खेती भी की. विभाग ने इस साल अहिंसा रेशम उगाने के लिए 3,000 किसानों को शामिल करने की योजना बनाई है. अगले साल यह संख्या 12,000 हो जाएगी.
प्रशासन इस अनूठी पहल पर एक विशेष परियोजना शुरू करने जा रहा है जो बुनकरों की आजीविका को बढ़ावा देने और ओडिशा के पारंपरिक हाथ से बुने हुए कपड़ों का एक नया ब्रांड स्थापित करने में भी मदद करेगी. एरी सिल्क के साथ सफलता हासिल करने के बाद, विभाग अब इस मॉडल को तसर सिल्क के साथ दोहराने की योजना बना रहा है. यह केंद्रपाड़ा में बलदेवज्यू मंदिर के लिए अहिंसा सिल्क सेट की भी सुविधा प्रदान कर रहा है, जिसे कटक जिले के नुआपटना के बुनकरों बुन रहे हैं.