

What is Chillai Kalan: कड़ाके की ठंड की जब भी बात होती है तो जम्मू और कश्मीर (Jammu and Kashmir) का जिक्र जरूर होता है. यहां दिसंबर से लेकर जनवरी तक सर्दी अपने चरम पर रहती है. नए साल का जश्न कश्मीर जाकर लोग मनाने के लिए तैयार है, उधर जम्मू-कश्मीर का चिल्लई कलां भी स्वागत करने के लिए इंतजार कर रहा है. अब आप सोच रहे होंगे कि आखिर चिल्लई कलां क्या है तो चलिए हम आपको इसके बारे में बता रहे हैं.
क्या है चिल्लई कलां
चिल्लई कलां एक फारसी शब्द है, जिसका मतलब भीषण सर्दी होता है. एक टाइम पीरियड को चिल्लई कलां कहा जाता है, जिसमें काफी ठंड पड़ती है. यह लगभग 40 दिन का होता है. इसका दौर 21 दिसंबर से लेकर 31 जनवरी तक रहता है. इसी दौरान घाटी में सबसे ज्यादा सर्दी पड़ने से तापमान शून्य से नीचे गिर जाता है.
हर तरफ बर्फबारी (Snowfall) होती है. माना जाता है कि कश्मीर में तीन महीने सर्दी बहुत ज्यादा होती है. इन तीन महीनों के तीन भागों में बांटा जाता है. पहला चिल्लई कलां (Chillai Kalan), दूसरा चिल्लई खुर्द (Chillai Khurd) और तीसरा चिल्लई बाचे (Chillai Bache) इसे चिल्लस के नाम से भी पुकारा जाता है. इनमें सबसे चुनौतीपूर्ण समय चिल्लई कलां का होता है. इस दौरान कश्मीर में हर तरह बर्फ ही बर्फ दिखाई देती है.
चिल्लई कलां और चिल्लई बाचे
चिल्लई कलां के बाद चिल्लई खुर्द शुरू होता है, जो 20 दिन का होता है और 31 जनवरी से शुरू होता है. यह 19 फरवरी तक चलता है. चिल्लई खुर्द के दौरान ठंड थोड़ी कम हो जाती है. इसके बाद चिल्लई बाचे का समय शुरू होता है, जो 10 दिनों तक चलता है. यह 20 फरवरी से 2 मार्च के बीच तक चलता है. इसे छोटी ठंड भी कहते हैं. इस दौरान ठंड थोड़ी और कम हो जाती है.
ठंड से बचाव के लिए किए रहते हैं व्यवस्था
चिल्लई कलां प्रकृति के लिए काफी अच्छा माना जाता है. इस दौरान गिरी बर्फ से ही घाटी और लद्दाख को बारहमासी जलाशयों से पानी मिलता है. कश्मीर के लोग इस कड़ाके ठंड से निपटने के लिए पहले से ही तैयारी किए रहते हैं. वे अपने घरों में खाने-पीने की चीजें, लकड़ी आदि की व्यवस्था किए रहते हैं. इस हाड़कंपाती ठंड से बचाव के लिए कश्मीरी लोग पारंपरिक 'कांगेर'यानी फायरिंग पॉट और फेरन जो एक कश्मीरी पोशाक है, ऐसे गर्म कपड़े और विशेष खान-पान के साथ रोजाना की जिंदगी बसर करते हैं.
जश्ने चिल्लई कलां का रंगारंग आयोजन
कश्मीर का चिल्लई कलां भले ही सबसे सर्द मौसम है लेकिन यह पूरी घाटी को जश्न और उत्सव मनाने का मौका देता है. इस दौरान खूब बर्फबारी होती है. देश के कोने-कोने से लोग इस बर्फबारी का लुत्फ उठाने के लिए आते हैं. इस तरह से यह समय पर्यटन और उत्सव के रूप में सैलानियों को बुलावा देता आया है. शायद तभी भारतीय सेना यहां समय-समय पर स्थानीय लोगों को बाहरी लोगों से जोड़ने की पहल करती आई है.
गुलमर्ग की बर्फीली फिजाओं में भारतीय सेना ने स्की रिजॉर्ट में पहली बार जश्ने चिल्लई कलां का रंगारंग आयोजन किया. जहां लोकगीतों और फ्यूजन धुनों ने माहौल में समां बांध दिया. चिल्लई कलां के दौरान होने वाले ऐसे जश्न युवाओं के लिए न केवल एक सुनहरा मंच हैं बल्कि लोक और खेल उत्सवों के जरिए स्थानीय लोगों की बढ़चढ़कर भागीदारी चिल्लई कलां के दौरान पर्यटन को भी बढ़ाने में मजबूत भूमिका निभाती है.