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Explainer: क्या होता है Electoral Bond, देश में कब और क्यों किया गया पेश, फिर क्यों है चर्चा और विवादों में? यहां जानें डिटेल्स

मोदी सरकार ने इस दावे के साथ चुनावी बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं. राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं. 

चुनावी बॉन्ड को मोदी सरकार ने किया था पेश (फोटो-प्रतीकात्मक) चुनावी बॉन्ड को मोदी सरकार ने किया था पेश (फोटो-प्रतीकात्मक)
हाइलाइट्स
  • चुनावी बॉन्ड को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई है याचिका

  • चुनावी बॉन्ड में चंदा देने वाले का नहीं होता है नाम 

इलेक्टोरल बॉन्ड (चुनावी बॉन्ड) की एक बार फिर देश में चर्चा हो रही है. इसके खिलाफ याचिका दायर की गई है. सुप्रीम कोर्ट इन दिनों मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ के जरिए राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है. आइए जानते हैं क्या होता है चुनावी बॉन्ड, इसे कब पेश किया गया था और क्या है विवाद? 

केंद्र सरकार रख चुकी है अपना पक्ष
केंद्र सरकार की ओर से चुनावी बॉन्ड पर अपना पक्ष रखा गया है. 29 अक्टूबर 2023 को सुप्रीम कोर्ट में सौंपे गए एक हलफनामे में, केंद्र सरकार ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं को संबोधित किया है. अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने शीर्ष अदालत को बताया कि नागरिकों को चुनावी बॉन्ड के स्रोतों को जानने का सामान्य अधिकार नहीं है. चुनावी बॉन्ड को जारी हुए करीब पांच साल होने जा रहे हैं. लेकिन अब भी इसके बारे में लोगों को कम जानकारी है. ज्यादातर लोग इसे इंवेस्टमेंट बॉन्ड समझते हैं, दरअसल ऐसा नहीं है. 

चुनावी बॉन्ड क्या है?
2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को पेश किया था. 29 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया. सरकार ने इस दावे के साथ इस बॉन्ड की शुरुआत की थी कि इससे राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता बढ़ेगी और साफ-सुथरा धन आएगा. इसमें व्यक्ति, कॉरपोरेट और संस्थाएं बॉन्ड खरीदकर राजनीतिक दलों को चंदे के रूप में देती हैं और राजनीतिक दल इस बॉन्ड को बैंक में भुनाकर रकम हासिल करते हैं. 

ये एक तरह का प्रोमिसरी नोट होता है, जिसे बैंक नोट भी कहते हैं. केवल वे राजनीतिक दल जो लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत हैं, जिन्होंने पिछले आम चुनाव में लोकसभा या विधानसभा के लिए डाले गए वोटों में से कम-से-कम 1% वोट हासिल किए हों, वे ही चुनावी बांड हासिल करने के पात्र हैं.

एक तरह की होती है रसीद 
चुनावी बॉन्ड एक तरह की रसीद होती है. इसमें चंदा देने वाले का नाम नहीं होता. इस बॉन्ड को खरीदकर, आप जिस पार्टी को चंदा देना चाहते हैं, उसका नाम लिखते हैं. इस बॉन्ड का पैसा संबंधित राजनीतिक दल को मिल जाता है. इस बॉन्ड पर कोई रिटर्न नहीं मिलता. अलबत्ता आप इस बॉन्ड को बैंक को वापस कर सकते हैं और अपना पैसा वापस ले सकते हैं लेकिन उसकी एक अवधि तय होती है. ये बॉन्ड जब बैंक जारी करता है तो इसको लेने की अवधि 15 दिनों की होती है.

इसमें एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपए के मूल्य में बॉन्ड मिलते हैं. इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है. चंदा देने वाले को बांड के मूल्य के बराबर के पैसे संबंधित ब्रांच में जमा कराने होते हैं, जिसके बदले उसे बॉन्ड मिलता है. कोई भी कंपनी या शख्स तयशुदा टाइम पीरियड के दौरान कितनी भी बार बॉन्ड डोनेट कर सकता है. ये पूरी तरह से टैक्स-फ्री होगा.

क्यों बनाया गया था चुनावी बांड
चुनावी बॉन्ड को केंद्र सरकार ने चुनाव में राजनीतिक दलों के चंदे का ब्योरा रखने के लिए बनाया है. केंद्र की तरफ से कहा गया था कि ये चंदे की पारदर्शिता के लिए है. चुनावी बॉन्ड के तहत हर राजनीतिक दल को दी जाने वाली राशि की पाई-पाई का हिसाब-किताब बैंक से होगा. सरकार इसे ऑडिट कर सकती है. इसके अलावा, दानकर्ता की पहचान गुप्त रहती है. इससे कोई भी पार्टी या दूसरा व्यक्ति उसकी राजनैतिक झुकाव को लेकर हावी नहीं हो सकता. यानी हमने जिसे बड़ा डोनेशन दिया है, अगर उसकी बजाए कोई और पार्टी सत्ता में आ जाए तो धमकी या किसी तरह की साजिश का डर नहीं रहेगा.

यहां से खरीद सकते हैं 
सरकार की ओर से आरबीआई चुनावी बॉन्ड जारी करता है. चुनावी बॉन्ड आपको स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की चुनी हुई ब्रांच में मिल जाएगा. भारतीय स्टेट बैंक की 29 शाखाओं को इलेक्टोरल बॉन्ड जारी करने और उसे भुनाने के लिए अधिकृत किया गया. ये शाखाएं नई दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई, गांधीनगर, चंडीगढ़, पटना, रांची, गुवाहाटी, भोपाल, जयपुर और बेंगलुरु की हैं. यह बॉन्ड साल में चार बार जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर में जारी किए जाते हैं. इसके लिए ग्राहक बैंक की शाखा में जाकर या उसकी वेबसाइट पर ऑनलाइन जाकर इसे खरीद सकता है. 

क्यों मामला सुप्रीम कोर्ट में गया
पहले चुनावी बॉन्ड के जरिए सियासी दलों तक जो धन आता था उसे वो गुप्त रख सकते थे. लेकिन पिछले दिनों इस पर विवाद हुआ. मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुना दिया. अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सभी राजनीतिक दलों को इलेक्शन कमीशन के समक्ष इलेक्टोरल बॉन्ड्स की जानकारी देनी होगी. इसके साथ दलों को बैंक डीटेल्स भी देना होगा. अदालत ने कहा है कि राजनीतिक दल, आयोग को एक सील बंद लिफाफे में सारी जानकारी दें.

इसके खिलाफ होने लगी थी बातें
इस चुनावी बॉन्ड के लागू होने से पहले ही इसके खिलाफ बातें होने लगी थीं, जैसे शेल कंपनियां इसका गलत इस्तेमाल कर सकती हैं. इससे मनी लॉन्ड्रिंग बढ़ेगी. ये टैक्स फ्री होता है और लोग गुमनाम होकर चंदा दे सकते हैं तो इसका उपयोग ब्लैक मनी को वाइट करने में भी हो सकता है. बड़ी कंपनियां उन पार्टियों को पैसे देंगी, जिनसे उन्हें फायदा होता हो. इससे चुनाव जीतने के बाद ये डर रहेगा कि कोई पार्टी किसी एक कंपनी के हित में काम कर सकती है.

कब और किस पार्टी को कितना मिला चंदा
चुनाव आयोग के मुताबिक दो पार्टियों को लगातार सबसे ज्यादा इलेक्टोरल बॉन्ड मिल रहे हैं, ये हैं- कांग्रेस और बीजेपी. इसके बाद लिस्ट में तृणमूल कांग्रेस का नाम है. ये राशि पार्टियां खुद अपनी एनुअल ऑडिट रिपोर्ट चुनाव आयोग को देते हुए बताती हैं. साल 2018-19 में भाजपा को 1400 करोड़ से ज्यादा, जबकि कांग्रेस को 380 करोड़ से ज्यादा के बॉन्ड मिले. 

2019-20 में भाजपा को 2500 करोड़ से कुछ ज्यादा, जबकि कांग्रेस को 318 करोड़ रुपए मिले. 2020-21 में चंदे में काफी गिरावट आई, जिसमें कांग्रेस को करीब 10 करोड़ और भाजपा को 22 करोड़ रुपए मिले. तृणमूल को सबसे ज्यादा 42 करोड़ का बॉन्ड मिला. 2021-22 में बीजेपी को 1032 करोड़, जबकि कांग्रेस को 236 करोड़ रुपए मिले, वहीं तृणमूल को 528 करोड़ रुपए का इलेक्टोरल बॉन्ड मिला. दावा किया जा रहा है कि साल 2018 से लेकर अगले 5 सालों के भीतर करीब 9,208 करोड़ रुपए के चुनावी बॉन्ड बिके, इसका करीब 58 प्रतिशत बीजेपी के पास गया.

KYC नॉर्म का होता है पालन
इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने वाले व्यक्तियों की पैसे देने वालों के आधार और एकाउंट की डिटेल मिलती है. इलेक्टोरल बॉन्ड में योगदान 'किसी बैंक के अकाउंट पेई चेक या बैंक खाते से इलेक्ट्रॉनिक क्लीयरिंग सिस्टम' के द्वारा ही किया जाता है. सरकार ने जनवरी 2018 में इलेक्टोरल बॉन्ड के नोटिफिकेशन जारी करते समय यह भी साफ किया था कि इसे खरीदने वाले को पूरी तरह से नो योर कस्टमर्स (केवाईसी) नॉर्म पूरा करना होगा और बैंक खाते से भुगतान करना होगा.