उत्तर भारत भीषण गर्मी की चपेट में है. कई जगहों पर तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच गया है. कड़ी धूप में घर से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है. आने वाले दिनों में भी गर्मी से राहत मिलती नहीं दिख रही है. दिल्ली में गुरुवार को तापमान सामान्य से एक डिग्री ज्यादा यानी 41 डिग्री सेल्सियस था. लेकिन तापमान 50 डिग्री की तरफ से महसूस हो रहा था. जब तापमान से ज्यादा गर्मी महसूस होती है, इस स्थिति को फील्स लाइक टेंपरेचर कहा जाता है. चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं.
क्या होता है फील्स लाइक टेंपरेचर-
फील्स लाइक टेंपरेचर खुले वातावरण में हवा की दिशा, गति और वातावरण में नमी के साथ होने वाला गर्मी का अहसास है. कई बार जितना तापमान होता है, उससे ज्यादा तापमान महसूस होता है. फील्स लाइक टेंपरेचर ज्यादातर कोस्टल रीजन में देखा जाता है. मान लीजिए पश्चिमी विक्षोभ आया है और हवाएं भी चल रही है, जो ढेर सारी ह्यूमिडिटी लेकर आ रही हैं. ऐसे में जिस इलाके में धूप खिली होगी, उस इलाके में वास्तविक तापमान से ज्यादा गर्मी महसूस होगी.
वास्तविकता से कैसे अलग होता है?
फील्स लाइक टेंपरेचर वास्तविक तापमान से अलग होता है. कई बार देखा गया है कि तापमान सामान्य से बहुत ज्यादा नहीं होता है. लेकिन ह्यूमिडिटी ज्यादा होती है. इसलिए फील्स लाइक टेंपरेचर ज्यादा होता है. इस सूरत में आप ज्यादा असहज महसूस करते हैं. इसे हम एक उदाहरण के जरिए समझ सकते हैं. माना कि दिल्ली में तापमान से एक डिग्री ज्यादा है यानी 41 डिग्री सेल्सियस है. लेकिन ह्यूमिडिटी सामान्य से ज्यादा है. ऐसे में फील्स लाइक टेंपरेचर ज्यादा बढ़ जाता है.
कैसे जारी होता है कलर कोड-
मौसम विभाग हीट वेव की वार्निंग देने के लिए कलर कोड का इस्तेमाल करता है. कलर कोड अधिकतम तापमान, वार्म नाइट और ह्यूमिडिटी के आधार पर जारी किया जाता है. इसमें न्यूनतम तापमान की भी भूमिका ज्यादा होती है. अक्सर देखा जाता है कि अगर ह्यूमिडिटी ज्यादा होती है तो हायर कलर कोड जारी किया जाता है. इसका मतलब है कि अगर ह्यूमिडिटी ज्यादा है तो जिस जगह येलो कलर कोड देना चाहिए, वहां पर ऑरेंज कोड दिया जाता है. ऐसा करने के पीछे वजह है कि फील्स लाइक टेंपरेचर बढ़ जाता है.
पहले मौसम विभाग तापमान में सामान्य से अधिक बढ़ोतरी पर हीट वेव का अनुमान लगाता था. लेकिन अब ह्यूमिडिटी के भी लेवल को आधार माना जाता है.
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