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Explainer: केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है विपक्ष, कब और क्यों होता है इसका उपयोग, जानें पेश करने की क्या है प्रक्रिया

अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से संसद में केंद्र सरकार को गिराने या कमजोर करने के लिए रखा जाता है. अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल होना चाहिए. पहला अविश्वास प्रस्ताव पंडित जाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में अगस्त 1963 में जेबी कृपलानी ने रखा था.

संसद भवन के बाहर प्रदर्शन करते विपक्षी नेता (फोटो पीटीआई) संसद भवन के बाहर प्रदर्शन करते विपक्षी नेता (फोटो पीटीआई)
हाइलाइट्स
  • मोदी सरकार के खिलाफ पहले भी लाया जा चुका है अविश्वास प्रस्ताव 

  • मणिपुर के मुद्दे पर में पक्ष और विपक्ष में चल रहा गतिरोध

संसद के मॉनसून सत्र में मणिपुर के मुद्दे पर में चल रहा गतिरोध कम होने का नाम नहीं ले रहा है. इस बीच खबर आई है कि केंद्र सरकार के खिलाफ विपक्ष अविश्वास प्रस्ताव ला सकता है. विपक्षी गठबंधन 'इंडिया' की 25 जुलाई 2023 को हुई बैठक में इसे लेकर फैसला हुआ है. आइए आज जानते हैं अविश्वास प्रस्ताव क्या है और इसे कब और क्यों लाया जाता है?

अविश्वास प्रस्ताव क्या है
अविश्वास प्रस्ताव निचले सदन में लाए जा सकते हैं. इन्हें केंद्र सरकार के मामले में लोकसभा और राज्य सरकारों के मामले में विधानसभा में लाया जाता है. अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष की ओर से लाया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 118 के तहत हर सदन अपनी प्रक्रिया बना सकता है जबकि नियम 198 के तहत ऐसी व्यवस्था है कि कोई भी सदस्य लोकसभा अध्यक्ष को सरकार के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे सकता है. स्पीकर यदि अविश्वास प्रस्ताव मंजूर कर लेते हैं और सत्तापक्ष सदन में बहुमत साबित करने में सफल नहीं रहता है तो सरकार गिर जाती है. 

लोकसभा अध्यक्ष को देनी होती है लिखित सूचना
प्रस्ताव पारित कराने के लिए सबसे पहले विपक्षी दल को सुबह 10 बजे से पहले लोकसभा अध्यक्ष को इसकी लिखित सूचना देनी होती है. इसके बाद स्पीकर उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहता/कहती हैं. यह बात सदन में तब उठती है जब किसी दल को लगता है कि सरकार सदन का विश्वास या बहुमत खो चुकी है. फिलहाल विपक्ष भाजपा को घेरने में जुटी है. लगभग सभी विपक्षी दल अब एकजुट होते नजर आ रहे हैं. 

कब स्वीकार किया जाता है प्रस्ताव 
अविश्वास प्रस्ताव पारित कराने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन हासिल होना चाहिए तभी उसे स्वीकार किया जा सकता है. लोकसभा अध्यक्ष या स्पीकर की मंजूरी मिलने के बाद 10 दिनों के अदंर इस पर चर्चा कराई जाती है. चर्चा के बाद स्पीकर अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में वोटिंग कराता है या फिर कोई फैसला ले सकता है. अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले सांसदों को इसके लिए कोई वजह‍ बताने की आवश्यकता नहीं होती है.

अविश्वास प्रस्ताव लाने का मकसद
अविश्वास प्रस्ताव लाने का एक सीधा मकसद होता है, सरकार को सदन में अकेला साबित करना और हो सके तो उसे गिरा देना. लेकिन विपक्ष कई बार ऐसी स्थिति में भी अविश्वास प्रस्ताव लाता है, जब उसे मालूम होता है कि वो सरकार का कुछ नहीं बिगाड़ सकता. इसके पीछे विपक्ष की कोशिश रहती है किसी तरह अविश्वास प्रस्ताव लाकर सदन को चर्चा के लिए राजी कर लेना. अविश्वास प्रस्ताव पर अमूमन दो दिन चर्चा होती है. 

अभी तक कितनी बार लाया जा चुका है अविश्वास प्रस्ताव
संसद में 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं. पहला अविश्वास प्रस्ताव पंडित जाहर लाल नेहरू के कार्यकाल में अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने रखा था. इस प्रस्ताव के पक्ष में केवल 62 वोट पड़े थे और विरोध में 347 वोट पड़े थे और सरकार चलती रही थी. इतिहास पर नजर डालें तो सिर्फ1978 में मोरारजी देसाई की सरकार गिरा दी गई थी. मोरारजी देसाई के शासन काल में उनकी सरकार के खिलाफ दो बार अविश्वास प्रस्ताव रखे गए थे. पहले प्रस्ताव के दौरान घटक दलों में आपसी मतभेद होने की वजह से प्रस्ताव पारित नहीं हो सका लेकिन दूसरी बार जैसे ही देसाई को हार का अंदाजा हुआ उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया था. 

इंदिरा गांधी के खिलाफ आए सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव
देश के इतिहास में सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान आए. उनके शासन काल में 15 बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया. लाल बहादुर शास्त्री और नरसिंह राव की सरकारों ने भी तीन-तीन बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया. सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड माकपा सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम दर्ज है. उन्होंने अपने चारों प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ रखे थे. 

वाजपेयी हार गए थे
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार इंदिरा गांधी और दूसरी बार पीवी नरसिम्हा राव के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था. संयोग की बात है कि वाजपेयी के खिलाफ भी दो बार अविश्वास प्रस्ताव पेश किया गया था और वे दोनों बार हार गए थे. 1996 में तो उन्होंने मतविभाजन से पहले ही इस्तीफा दे दिया और 1998 में वे एक वोट से हार गए.

मोदी सरकार के खिलाफ कब आया था अविश्वास प्रस्ताव
मोदी सरकार के खिलाफ पिछली बार अविश्वास प्रस्ताव जुलाई 2018 में लाया गया था. 11 घंटे चली बहस के बाद वोटिंग हुई थी और मोदी सरकार ने आसानी से अपना बहुमत साबित कर दिया था. वोटिंग के दौरान बीजद ने वॉकआउट किया था, जिससे विपक्षी एकता की हवा निकल गई थी. अविश्वास प्रस्ताव के समर्थन में सिर्फ 126 वोट पड़े थे, जबकि इसके खिलाफ 325 सांसदों ने वोट किया था.