scorecardresearch

Justice Hema Committee Report: मलयालम सिनेमा के माफिया की पोल खोलती है हेमा कमिटी की रिपोर्ट, जानिए इसका इतिहास और मुख्य बातें

जस्टिस हेमा कमिटी का गठन 2017 में हुआ. कमिटी ने अपनी सिफारिशें राज्य सरकार के सामने 2019 में रख दीं. लेकिन अभी तक इन सिफारिशों को लागू नहीं किया गया है. अब इस रिपोर्ट को लेकर विवाद एक बार फिर ताजा हो गया है. आइए इस रिपोर्ट के इतिहास और मुख्य बातों पर डालते हैं एक नजर.

Hema Committee report explainer Hema Committee report explainer
हाइलाइट्स
  • 2019 से सरकार के पास थी रिपोर्ट

  • रिपोर्ट में मलयालम सिनेमा के 'माफिया' का जिक्र

बीते सोमवार (19 अगस्त) को जब केरल सरकार ने हेमा कमिटी की रिपोर्ट (Justice Hema Committee Report) सार्वजनिक की तो मलयालम सिनेमा में महिलाओं के यौन शोषण का मुद्दा एक बार फिर आगे आ गया. इस रिपोर्ट में पीड़ितों की पहचान छिपाने के लिए कुछ पन्ने सार्वजनिक नहीं किए गए. लेकिन रिपोर्ट रिलीज होने के तीन दिन बाद केरल हाई कोर्ट (Kerala High Court) ने राज्य सरकार को आदेश दिया कि पूरी रिपोर्ट एक सीलबंद लिफाफे में उसके हवाले की जाए. वे पन्ने भी जो सार्वजनिक रिपोर्ट में शामिल नहीं किए गए हैं. 

लेकिन हेमा कमिटी की रिपोर्ट क्या कहती है? दरअसल यह मलयालम सिनेमा (Malayalam Cinema) के उस अनदेखे हिस्से का लेखा-जोखा है जहां महिलाओं को भेदभाव और शोषण का सामना करना पड़ता है. 

क्यों हुआ कमिटी का गठन?
बात है 17 फरवरी 2017 की. मलयाली सिनेमा की मशहूर-ए-जमाना अदाकारा का अपहरण हुआ और उन्हीं की कार में उनका यौन शोषण हुआ. इस मामले में इंडस्ट्री के एक बड़े एक्टर का नाम भी आया जिससे पूरे केरल में हाहाकार मच गया. 

सम्बंधित ख़बरें

घटना के जवाब में महिला कलाकारों, निर्माताओं, निर्देशों सहित इंडस्ट्री से जुड़े कई लोगों ने विमेन इन सिनेमा कलेक्टिव (Women in Cinema Collective) का गठन किया. डब्ल्यूसीसी ने 18 मई 2017 को केरल के मुख्यमंत्री के सामने इस घटना की जांच की मांग रखी. साथ ही यह भी मांग रखी कि राज्य की फिल्म इंडस्ट्री को दीमक की तरह चाट रहे महिलाओं से जुड़े मुद्दों की जांच की जाए.

राज्य सरकार ने इस मांग की सनद ली. जुलाई में केरल की रिटायर्ड हाई कोर्ट न्यायाधीश जस्टिस के हेमा (Justice K Hema) की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय कमिटी का गठन किया गया. इस कमिटी को मलयालम फिल्म उद्योग में मौजूद यौन शोषण जैसी लैंगिक सम्याओं की पड़ताल करने का जिम्मा सौंपा गया. इंडस्ट्री की कई महिलाओं से कई मुद्दों पर बात करने के बाद कमिटी ने दिसंबर 2019 में अपनी रिपोर्ट सरकार के हवाले कर दी. 

चार साल तक क्यों दबी रही रिपोर्ट?
राज्य सरकार ने यह रिपोर्ट सार्वजनिक करने में चार साल से ज्यादा का समय लिया. इस कारण उसे कई दिशाओं से आलोचना का सामना भी करना पड़ा. कांग्रेस सांसद शशि थरूर (Shashi Tharoor) ने रिपोर्ट रिलीज होने के बाद कहा, "यह बेहद शर्मनाक और चौंकाने वाली बात है कि सरकार करीब पांच साल तक इस रिपोर्ट पर बैठी रही."

विधानसभा में विपक्ष के नेता और कांग्रेस विधायक वीडी सतीशन (V D Satheesan) ने भी रिपोर्ट जारी करने में हुई देरी के लिए राज्य सरकार की आलोचना करते हुए कहा कि वह फिल्म इंडस्ट्री के मजबूत लोगों को बचाना चाहती है. 

दूसरी ओर, केरल सरकार का कहना है कि रिपोर्ट में मौजूद संवेदनशील जानकारी के कारण इसे सार्वजनिक करने में समय लगा. मुख्यमंत्री पिनरई विजयन ने रिपोर्ट जारी होने के एक दिन बाद कहा, "जस्टिस हेमा ने सरकार को 19 फरवरी 2020 में लिखे गए एक पत्र में कहा था कि रिपोर्ट को इसमें मौजूद सार्वजनिक जानकारी के कारण रिलीज न किया जाए." 

अब क्यों रिलीज हुई रिपोर्ट?
जनवरी 2022 में केरल सरकार ने हेमा कमीशन की सिफारिशों को लागू करने की योजना बनाने के लिए एक पैनल का गठन किया. इस पैनल ने मई 2022 में सिफारिशों का एक ड्राफ्ट तैयार कर भी दिया. लेकिन इसके बाद पांच आरटीआई (Right To Information) एक्टिविस्ट और मीडिया कर्मी केरल राज्य के सूचना आयोग (Kerala State Information Commission) के पास पहुंचे. दो साल के इंतजार के बाद छह जुलाई 2024 को सूचना आयोग ने इनके पक्ष में फैसला सुनाया. 

अब राज्य सरकार के लिए रिपोर्ट जारी करना अनिवार्य हो गया. सो 14 अगस्त को रिपोर्ट की रिलीज से पहले इससे 60 पन्ने हटाये गए. फिल्म प्रोड्यूसर साजी पराइल और अभिनेत्री रंजिनी ने अपनी निजता का हवाला देते हुए हाई कोर्ट में इसकी रिलीज का विरोध भी किया लेकिन दोनों की याचिकाएं रद्द हो गईं. आखिरकार रिपोर्ट 19 अगस्त को जनता के सामने आई. 

रिपोर्ट में ये हैं खास बातें
जस्टिस हेमा कमिटी की रिपोर्ट बताती है:
मलयालम फिल्म इंडस्ट्री में यौन शोषण की एक संस्कृति हावी है. कास्टिंग काउच (जहां शक्तिशाली मर्द फिल्मों में काम देने के बदले महिलाओं से यौन संबंधों की मांग करते हैं) का चलन आम है. पुरुष कलाकार महिलाओं के लिए अभद्र भाषा का प्रयोग करते हैं और कई बार शराब पीकर जबरन उनके कमरों में भी घुस जाते हैं. 

रिपोर्ट में बताया गया कि प्रतिशोध के डर के कारण महिलाएं यौन उत्पीड़न की रिपोर्ट दर्ज कराने से बचती हैं. जस्टिस हेमा रिपोर्ट में लिखती हैं, "कमिटी के सामने जिन लोगों से पूछताछ की गई उनमें से कई उन चीजों को उजागर करने से डरते थे जो उन्होंने अनुभव की थीं... हमें एहसास हुआ कि उनका डर सही है."

रिपोर्ट में साइबर उत्पीड़न के डर का भी जिक्र किया गया है. आवाज उठाने वाली महिलाओं के सामने जहरीले फैन क्लब्स का भी खतरा था. अगर कोई महिला इंडस्ट्री के हालात पर सवाल उठाती इन फैन क्लब्स का इस्तेमाल शांत रखने के लिए किया जाता था. 

रिपोर्ट में लिखा गया कि पुरुष कलाकारों और निर्माताओं का एक 'माफिया' इंडस्ट्री के सारे फैसले लेता है. कोई भी उनके खिलाफ आवाज उठाने की जुर्रत नहीं करता. 

साथ ही इंडस्ट्री में महिलाओं को मूलभूत सुविधाएं भी नहीं मिलतीं. कई फिल्मों के सेट्स पर न ही टॉयलेट होता है न ही चेंजिंग रूम. रिपोर्ट में लिखा है कि कई बार महिलाओं को या तो पुरुषों के टॉयलेट इस्तेमाल करने पड़ते हैं या खुले में शौच करना पड़ता है.