
दिल्ली की चुनावी जंग ज़ोर पकड़ती जा रही है. राष्ट्रीय राजधानी में अब झुग्गी-झोपड़ियों के बहाने नया चुनावी झगड़ा छिड़ गया है. भारतीय जनता पार्टी जहां झुग्गी बस्तियों के वोटबैंक को अपनी झोली में डालना चाहती है, वहीं अरविंद केजरीवाल भी केंद्र की बीजेपी सरकार को निशाना बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं.
कैसे शुरू हुई स्लम सियासत?
झुग्गियों पर सियासी संग्राम तीन जनवरी को शुरु हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झुग्गी बस्तियों में रहने वाले 1 हजार 675 परिवारों को फ्लैट की चाबियां सौंपी थीं. इस मामले ने 11 जनवरी को और तूल पकड़ा जब गृहमंत्री अमित शाह ने अलग-अलग झुग्गियों के प्रधानों से मुलाकात की और दिल्ली को 'आप'दा से मुक्त करने का दावा किया.
केजरीवाल ने तेज़ किए हमले
केजरीवाल ने रविवार यानी 12 दिसंबर को दिल्ली की शकूर बस्ती का दौरा करने के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस संवाददाता सम्मेलन में उन्होंने अपने आरोपों को धार देने की कोशिश की है. उन्होंने भारतीय जनता पार्टी (BJP) और दिल्ली के उपराज्यपाल वीके सक्सेना पर आरोप लगाया कि उन्होंने झुग्गय़ों की ज़मीन का लैंड यूज़ बदल दिया है. दावे को मज़बूत करने के लिए उन्होंने कुछ कागज़ात भी दिखाए हैं.
केजरीवाल ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, "बीजेपी वाले बेशर्म हैं, गद्दार हैं. वे झुग्गी वालों को धोखा दे रहे हैं. 27 दिसंबर को लेफ्टिनेंट गवर्नर ने इस झुग्गी (शकूर बस्ती) की ज़मीन का लैंड यूज़ बदल दिया. ये पांच साल तो क्या, एक साल में ही दिल्ली की झुग्गियां गिरा देंगे. बीजेपी को वोट देना खुदकुशी करने के बराबर है."
उपराज्यपाल सक्सेना ने भी केजरीवाल की बात का जवाब देने में समय नहीं लिया. उन्होंने एक वीडियो जारी कर कहा, "केजरीवाल कोरा झूठ बोल रहे हैं और लोगों को गुमराह कर रहे हैं. 27 दिसंबर की मीटिंग में जिस रेलवे की ज़मीन का लैंड यूज़ बदलने पर चर्चा की गई थी उस पर कोई झुग्गी नहीं है. वह एक अलग ज़मीन है."
क्यों अहम हैं दिल्ली की झुग्गियां?
आखिर दिल्ली की झुग्गियों में ऐसा क्या है कि बीजेपी से लेकर आम आदमी पार्टी तक का सियासी कांटा यहां आकर अटका है? इसे समझना है तो ज़रा इन आंकड़ों पर नज़र डालिए.
दरअसल दिल्ली में झुग्गी झोपड़ियों में रहने वाले वोटरों की अच्छी खासी तादाद है. इन्हें आम तौर से केजरीवाल का वोटबैंक माना जाता है. इसका कारण यह है कि पिछले दो चुनावों में झुग्गीवालों ने आप को भरपूर समर्थन दिया है. साल 2020 में करीब 61 प्रतिशत गरीबों ने आप को वोट दिया, जिससे उसे 62 सीटें जीतने में मदद मिली. वहीं 2015 में 66 प्रतिशत झुग्गीवालों ने केजरीवाल की पार्टी को वोट दिया, जिसकी बदौलत वे 70 में से रिकॉर्ड 67 सीटें जीत सके.
दिल्ली पर पैनी नज़र डाली जाए तो पता चलता है कि विधानसभा की 70 सीटों में से लगभग 20 सीटों का फैसला झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाले लोगों के हाथ में है. दिल्ली की 750 झुग्गी क्लस्टरों में कुल 15 लाख वोटर रहते हैं. यानी दिल्ली के रजिस्टर्ड वोटर्स का करीब 10 प्रतिशत हिस्सा इन्हीं झुग्गियों में रहता है.
अब इसे लोकतंत्र की ताकत कहिये या फिर वोटों के लिए सियासी मजबूरी कि बड़े-बड़े मकानों में रहने वाले दिल्ली की झोपड़ी में रहनेवालों के दर पर पहुंच रहे हैं और उनके वोट के लिए अलग अलग वादों और दावों के पिटारे खोल रहे हैं.