13 अप्रैल 1919 का वो दिन, पंजाब के अमृतसर में जलियांवाला बाग नाम की एक जगह और ब्रिटिश सैनिकों के हाथों से महज 10 मिनट में चली थी कुल 1650 राउंड गोलियां... मौका था अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का . यहां पर कुछ लोग बैसाखी के मौके पर अपने परिवार के साथ मेला देखने भी पहुंचे थे, इस मौके पर अंग्रेजों ने कई भारतीयों पर अंधाधूंध गोलियां चला दी, हादसे में कई परिवार खत्म हो गए. कई बच्चे अपनी मां से बिछड़ गए. क्या बच्चे क्या औरतें क्या बूढ़े अनगिनत मासूमों की बली अग्रेजों के हाथों चढ़ा दी गई. आज उसी शहादत की 103वीं बरसी है. जिसे हम जलियांवाला बाग हत्याकांड के नाम से याद करते हैं.
जलियांवाला बाग नरसंहार कब हुआ था?
उस दिन जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की दमनकारी नीति, रोलेट एक्ट और सत्यपाल व सैफुद्दीन की गिरफ्तारी के खिलाफ एक सभा का आयोजन किया गया था. हालांकि इस दौरान शहर में कर्फ्यू लगा हुआ था. इसी कर्फ्यू के बीच हजारों लोग सभा में शामिल होने पहुंचे थे. कुछ लोग ऐसे भी थे जो बैसाखी के मौके पर अपने परिवार के साथ वहीं लगे मेले को देखने गए थे.
जब ब्रिटिश हुकूमत ने जलियांवाला बाग पर इतने लोगों की भीड़ देखी, तो वह बौखला गए. ब्रिटिश हुकूमत को ये लगा कि कहीं हिन्दुस्तानियों के दिमाग में 1857 की क्रांति को दोबारा दोहराने की कोई प्लानिंग तो नहीं चल रही. ब्रिटिश हुकूमत ने सोचा कि ऐसी नौबत आए उससे पहले ही तमाम भारतीयों की आवाज को कुचल दिया जाना चाहिए, और ब्रिटिश हुकमरानों ने जुर्म की सारी हदें पार कर दी. इस दिन 5000 भारतीयों पर अंधाधूंध गोलियां चलाई गई .वहीं जनरल डायर ने अपने 90 ब्रिटिश सैनिकों के साथ जलियांवाला बाग की घेरा बंदी कर दी. उन्होंने वहां मौजूद लोगों को चेतावनी दिए बिना ही गोलियां चलानी शुरू कर दी. जनरल डायर को ही जलियांवाला बाग का दोषी माना जाता है.
जलियांवाला बाग नरसंहार के वो 10 मिनट
ब्रिटिश सैनिकों ने महज 10 मिनट में कुल 1650 राउंड गोलियां चलाईं. इस दौरान जलियांवाला बाग में मौजूद लोग उस मैदान से बाहर नहीं निकल सकते थे, क्योंकि बाग के चारों तरफ मकान बने थे. बाहर निकलने के लिए बस एक संकरा रास्ता था. भागने का कोई रास्ता न होने की वजह से लोग वहां फंस कर रह गए.
लाशों से भर गया था कुंआ
अंग्रेजों की गोलियों से बचने के लिए लोग वहां स्थित एकमात्र कुए में कुद गए. कुछ देर में कुआं भी लाशों से भर गया. जलियांवाला बाग में शहीद होने वालो का सही आंकड़ा आज भी पता न चल सका लेकिन डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की लिस्ट है, तो जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की लिस्ट है. ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में 379 लोगों की मौत और 200 लोगों के घायल होने का दावा किया गया. हालांकि आंकड़ों के मुताबिक, ब्रिटिश सरकार और जनरल डायर के इस नरसंहार में 1000 से ज्यादा लोग शहीद हुए थे और लगभग 2000 से ज्यादा भारतीय घायल हुए थे.
ऐसे लिया गया था जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला
जलियांवाला बाग नरसंहार का बदला लेने के लिए 13 मार्च, 1940 को ऊधम सिंह लंदन गए. वहां उन्होंने कैक्सटन हॉल में डायर को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया. ऊधम सिंह को 31 जुलाई, 1940 को फांसी पर चढ़ा दिया गया. उत्तराखंड के ऊधम सिंह नगर का नाम उन्हीं के नाम पर रखा गया है.
भारत के इतिहास में जलियांवाला बाग हत्याकांड एक ऐसी घटना है जिसे सुन कर हर हिंदुस्तानी का खून उबाल मारता है. गुलाम भारत के इतिहास के पन्ने को पलटने पर आज भी जुर्म की वो दास्तां ताजी नजर आती है जिसे खून और आसूंओं से लिखा गया.