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Plea Bargaining क्या है? यह कैसे काम करती है, किन परिस्थितियों में इसकी अनुमति है?

Plea Bargaining प्ली बारगेनिंग से तात्पर्य उस व्यक्ति से है जिस पर कम गंभीर अपराध का आरोप लगाया गया है, ऐसे में आरोपी अपनी गलती स्वीकार कर क्षमायाचना कर सकता है. यदि अभियुक्त ने पहली बार अपराध किया है वह अपनी सजा कम करने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन कर सकता है.

Plea Bargaining Plea Bargaining
हाइलाइट्स
  • इससे मुकदमेबाज़ी पर होने वाले खर्च को कम किया जा सकेगा.

  • भारत में सीमित मामलों में ही ‘प्ली बारगेनिंग’ की अनुमति मिलती है. 

मुकदमे को कम करने के लिए बेशक सरकार मध्यस्थता पर जोर दे रही है लेकिन यह तरीका लोगों को कुछ खास पसंद नहीं आ रहा है. देश की अदालत में लंबित मुकदमों की संख्या सात करोड़ पहुंच गई है. आपने कई बार सुना होगा ‘प्ली बारगेनिंग’/दलील सौदेबाजी (Plea Bargaining) प्रक्रिया के माध्यम से मुजरिम को अदालती मामलों से मुक्त कर दिया गया है. क्या है ये प्ली बारगेनिंग और भारत में यह कानूनी प्रक्रिया कितनी कामयाब है, चलिए जानते हैं.

क्या होती है प्ली बारगेनिंग

किसी व्यक्ति द्वारा किया गया ऐसा अपराध जिसकी सजा 7 साल या उससे कम है या अभियुक्त ने पहली बार अपराध किया है वह अपनी सजा कम करने के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन कर सजा में सौदेबाजी कर सकता है. छोटे अपराधों में पीड़ित और अभियुक्त आपसी सामंजस्य से सौदेबाजी कर सकते हैं. इसे ही प्ली बारगेनिंग कहा जाता है.

किन लोगों को मिलता है इसका लाभ

प्ली बारगेनिंग में कम सजा में अपराधियों को छोड़ दिया जाता है. अगर कोई आरोपी अपनी गलती स्वीकार करता है तो उसे कम सजा दी जाती है. लेकिन प्ली बारगेनिंग का लाभ किसी भी विचाराधीन आरोपी को एक बार ही मिल सकता है. प्ली बारगेनिंग में निर्दोष लोगों के फंसने की संभावनाएं ज्यादा होती हैं, क्योंकि वे ये जानते हुए भी कि वे निर्दोष हैं लंबी कानूनी प्रक्रिया से बचने के लिए प्ली बारगेनिंग कर सकते हैं. हालांकि इसके बाद जमानत का विकल्प नहीं होता.

भारत में इसे लेकर क्या स्थिति

यह प्रक्रिया संयुक्त राज्य अमेरिका में आम है. लंबे और थका देने वाले ट्रायल से बचने के लिए प्ली बारगेनिंग का सहारा लेते हैं. लोग विदेशों में अदालतों में जाने से बचते हैं और इस वैकल्पिक रास्ते का सहारा लेते हैं. इसलिए वहां सजा की दर काफी ज्यादा है. वर्ष 2006 तक भारत में ‘प्ली बारगेनिंग’ की अवधारणा कानून का हिस्सा नहीं थी. 2006 में आपराधिक प्रक्रिया संहिता के अध्याय XXI-A में संशोधन कर ‘प्ली बारगेनिंग’ को शामिल किया गया. भारत में सीमित मामलों में ही ‘प्ली बारगेनिंग’ की अनुमति मिलती है. प्ली बार्गेनिंग आरोपी और शिकायत करने वाले के बीच समझौते पर निर्भर करता है. यह उन निजी शिकायतों पर भी लागू होता है जिनका आपराधिक न्यायालय ने संज्ञान लिया है.

कैसे की जाती है प्ली बारगेनिंग

प्ली बारगेनिंग के लिए अदालत को एक प्रार्थनापत्र दिया जाता है, जिसके बाद मामला मजिस्ट्रेट के पास जाता है. वहां आपसी समझौते के आधार पर आरोपी अपनी गलती स्वीकार करता है. यदि शिकायतकर्ता आरोपी को माफ करने पर राजी हो जाता है तो प्ली बार्गेनिंग लागू हो जाती है. इसके तहत आरोपी को कम से कम सजा दी जाती है. आजीवन कारावास या महिला और बच्चों के प्रति किए अपराध में प्ली बार्गेनिंग लागू नहीं होती है. देश की "सामाजिक-आर्थिक स्थितियों" को प्रभावित करने वाले अपराध में भी यह लागू नहीं होती है. इससे मुकदमेबाजी पर होने वाले खर्च को कम किया जा सकता है.