scorecardresearch

तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में राज्यपालों के खिलाफ राज्य सरकारों की बगावत... क्या है राज्यपालों की नियुक्ति और उन्हें पद से हटाने का नियम

किसी भी राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 के अनुसार इन्हें कई शक्तियां दी गई हैं. हालांकि, पांच साल का कार्यकाल खत्म होने से पहले भी उनसे इस्तीफा लिया जा सकता.

राज्यपाल की नियुक्ति राज्यपाल की नियुक्ति
हाइलाइट्स
  • तमिलनाडु, केरल और तेलंगाना में राज्यपाल की स्थिति को लेकर टकराव चल रहा है

  • संविधान ने राज्यपाल को कई शक्तियां दी हैं

तीन गैर-भाजपा शासित दक्षिणी राज्यों में राज्यपाल और सत्तारूढ़ सरकार के बीच जमकर टकराव चल रहा है. तमिलनाडु ने आर एन रवि को वापस बुलाने की मांग की है, वहीं केरल ने आरिफ मोहम्मद खान को राज्य की यूनिवर्सिटीज के चांसलर के पद से हटाने के लिए अध्यादेश लाने का प्रस्ताव दिया है. वहीं तमिलिसाई सुंदरराजन ने चिंता जताई है कि तेलंगाना में उनका फोन टैप किया जा रहा है.

क्या है पूरा मामला?

दरअसल, तेलंगाना के राज्यपाल ने टीआरएस शासित तेलंगाना में एक अलोकतांत्रिक स्थिति बनने का दावा किया है. सत्तारूढ़ द्रमुक और उसके सहयोगियों ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू से कहा है कि आर.एन रवि की हरकतें गवर्नर पद पर बैठे लोगों के लिए अशोभनीय थीं और उन्होंने इस्तीफा देने का आह्वान किया है. वहीं, केरल में सत्तारूढ़ एलडीएफ, जिनका राज्यपाल आरिफ खान के साथ कई बार टकराव हो चुका है, उन्होंने कहा है कि उन्होंने राज्य के विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में राज्यपाल को बदलने के लिए एक अध्यादेश जारी करने और उस पद पर प्रतिष्ठित शिक्षाविदों को नियुक्त करने का फैसला किया है, जिसका कांग्रेस और भाजपा दोनों ने विरोध किया.

इस टकराव के बीच चलिए जानते हैं कि आखिर राज्यपाल की नियुक्ति कैसे की जाती है, उसकी शक्तियां और उसे कैसे बर्खास्त किया जा सकता है… 

कैसे होते हैं राज्यपाल की नियुक्ति और हटाने के नियम?

एक राज्यपाल को राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है. संविधान के अनुच्छेद 155 और 156 के अनुसार ये "राष्ट्रपति की इच्छा के दौरान" होता है. हालांकि, पांच साल का कार्यकाल खत्म होने से पहले भी उनसे इस्तीफा लिया जा सकता हो. इसका कारण है कि राष्ट्रपति, प्रधान मंत्री और मंत्रिपरिषद के साथ काम करते हैं ऐसे में राज्यपाल को केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया और हटाया जा सकता है.

राज्यपाल राज्यों में केंद्र सरकार का प्रतिनिधित्व करता है. संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार, राज्यपाल को आमतौर पर मंत्रिपरिषद द्वारा सहायता और सलाह दी जाती है, सिवाय उन कार्यों के जिसमें उनके विवेक की आवश्यकता होती है. जबकि राज्यपाल के कर्तव्य और जिम्मेदारियां एक राज्य तक सीमित हैं, राज्यपाल पर महाभियोग चलाने का कोई प्रावधान नहीं है.

क्या कहता है संविधान?

दरअसल, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 310 के अनुसार, संघ की रक्षा या सिविल सेवा में प्रत्येक व्यक्ति राष्ट्रपति की इच्छा पर कार्य करता है, और राज्यों में सिविल सेवा का प्रत्येक सदस्य राज्यपाल के हिसाब से कार्य करता है. दूसरी ओर, अनुच्छेद 311 एक सिविल सेवक को हटाने की सीमा निर्धारित करता है. यह सिविल सर्विस वालों को उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों पर सुनवाई के उचित अवसर की गारंटी देता है.

इसके अलावा एक प्रावधान भी है जो जांच को रद्द करने की अनुमति देता है. अनुच्छेद 164 के अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री (सीएम) की नियुक्ति करता है, और राज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह पर अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करता है. कहा जाता है कि मंत्री राज्यपाल की मर्जी से सेवा करते हैं. संक्षेप में समझें, तो एक भारतीय राज्य का राज्यपाल अपने दम पर किसी मंत्री को नहीं हटा सकता है.

राज्यपाल की संवैधानिक और न्यायिक शक्तियां

राज्यपाल के पास कुछ संवैधानिक शक्तियां हैं, जैसे कि राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयक को स्वीकृति देना या रोकना, राज्य विधान सभा के आयोजन के लिए सहमति देना, एक पार्टी को अपना बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक समय का निर्धारण करना और चुनाव में त्रिशंकु फैसले के बाद, ऐसा करने के लिए सबसे पहले किस पार्टी को बुलाया जाना चाहिए जैसी शक्तियां होती हैं.  

वहीं अगर बात करें न्यायिक शक्तियों की तो इसमें राज्यपाल अपनी शक्तियों के इस्तेमाल के लिए वे किसी न्यायालय के प्रति उत्तरदायी नहीं होते हैं. इतना ही नहीं बल्कि राज्यपाल के खिलाफ फौजदारी अभियोग भी नहीं चलाया जा सकता. राज्यपाल को उनके कार्यकाल के दौरान बंदी नहीं बनाया जा सकता है. 

पहले भी आ चुके ऐसे मामले सामने 

हालांकि, ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है. साल 1977 में भी जेपी सरकार जब सत्ता में आई थीं तब उन्होंने आते ही कई कांग्रेसी गवर्नरों को हटा दिया था. वहीं, साल 1980 में जब तमिलनाडु के तत्कालीन गवर्नर की बर्खास्तगी का मामला खबरों में आया था तब कहा गया था कि प्रधानमंत्री के निर्देश पर राष्ट्रपति कभी भी गवर्नर को बर्खास्त कर सकते हैं, इतना ही नहीं बल्कि इसके लिए कारण बताना भी जरूरी नहीं है. ऐसा ही कुछ मामला साल 2004 का भी है. जब यूपीए-1 की सरकार बनते ही एनडीए सरकार में जो  गवर्नर बने थे उन्हें अचानक अपने पद से हटने के लिए कह दिया गया था.