राजद्रोह कानून एक बार फिर से चर्चा में आ गया है. सोमवार को केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि राजद्रोह से जुड़े कानून (Section 124A) पर पुनर्विचार होना चाहिए. इसे लेकर खुद पीएम मोदी ने भी चिंता जताई है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा है कि वे इस कोलोनियल कानून पर जो चुनौतियों वाली याचिकाएं डाली गई हैं उनपर विचार न करें और केंद्र ने पहले खुद इसपर पुनर्विचार करने की बात कही है.
केंद्र करेगा पुनर्विचार
केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि देशद्रोह कानून पर फिर से विचार किया जाएगा और फिर से जांच की जाएगी. केंद्र ने SC में हलफनामा भी दायर किया है जिसमें कहा गया है कि केंद्र देश की संप्रभुता बनाए रखने और उसकी रक्षा करने के लिए प्रतिबद्ध है. इसलिए केंद्र ने धारा 124ए के प्रावधानों की फिर से जांच करने और उन पर पुनर्विचार करने का फैसला किया है.
गृह मंत्रालय ने किया तीन पेज का हलफनामा दाखिल
इसके अलावा हलफनामे में ये भी कहा गया है कि पीएम मोदी ने भी इसपर चिंता जताई है. पीएम मोदी ने कहा है कि जब देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है, सरकार औपनिवेशिक बोझ को दूर करने के लिए काम कर रही है. केंद्र सरकार पुराने औपनिवेशिक कानूनों को हटाने पर काम कर रहा है.
इसलिए सुप्रीम कोर्ट से देशद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर विचार नहीं करने और केंद्र द्वारा पुनर्विचार की कवायद का इंतजार करने के लिए कहा है. बता दें, गृह मंत्रालय ने देशद्रोह कानून पर सुप्रीम कोर्ट में तीन पेज का हलफनामा दाखिल किया है.
दरअसल, कुछ दिनों पहले भी केंद्र सरकार ने एक और हलफनामा दायर किया था, जिसमें केदारनाथ के फैसले में देशद्रोह कानून को सही ठहराया गया था और कहा था कि बेंच को इस फैसले पर विचार करने की आवश्यकता नहीं है.
क्या है राजद्रोह कानून?
आईपीसी (Indian Penal Code) के सेक्शन 124-A के मुताबिक, "जो कोई भी, शब्दों से, या तो बोलने या लिखित, या संकेतों द्वारा, या अपने एक्शन से, सरकार के खिलाफ घृणा या अवमानना फैलाने का प्रयास करता है या फिर सरकार के प्रति, लोगों में असंतोष को उत्तेजित करने का प्रयास करते हैं तो उसे आजीवन कारावास से दंडित किया जाएगा. साथ ही जुर्माने का भी प्रावधान है."
बता दें, ये कानून साल 1860 में ब्रिटिश राज के तहत राज्य के खिलाफ किसी भी अपराध को रोकने के लिए बनाया गया था.
महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक पर लग चुका कानून
दरअसल, जब ब्रिटिशर्स का राज था तब इस कानून का इस्तेमाल सरकार के खिलाफ असहमति को दबाने का लिए किया जाता था. और तो और इसका इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक जैसे स्वतंत्रता सेनानियों को कैद करने के लिए भी किया गया था, जिन्होंने औपनिवेशिक प्रशासन की नीतियों की आलोचना की थी.
संविधान से हटा दिया गया देशद्रोह शब्द
हालांकि, स्वतंत्रता के बाद, संविधान निर्माताओं ने इस औपनिवेशिक कानून के अलग-अलग पहलुओं पर विचार करने के लिए काफी समय दिया गया था. राजद्रोह कानून के सबसे प्रबल आलोचकों में से एक के.एम. मुंशी ने इसके लिए तर्क दिया कि इस तरह का कठोर कानून भारत में लोकतंत्र के लिए खतरा है. उन्होंने तर्क देते हुए कहा था, "वास्तव में लोकतंत्र का सार सरकार की आलोचना करना है." उनके प्रयासों और सिख नेता भूपिंदर सिंह मान के कारण ही देशद्रोह शब्द को संविधान से हटा दिया गया था.
अंधाधुंध किया जा रहा है राजद्रोह कानून का उपयोग
आपको बता दें, राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक, देशद्रोह के मामले 2014 में 47 से बढ़कर 2019 में 93 हो गए हैं. इनमें 163 प्रतिशत का भारी उछाल देखा गया है. हालांकि, दोषी पाए जाने वाले मामले केवल 3 प्रतिशत हैं. जिससे पता चलता है कि पुलिस और नागरिकों के बीच भय पैदा करने और शासन के खिलाफ किसी भी आलोचना या असंतोष को शांत करने के लिए अंधाधुंध तरीके से राजद्रोह कानूनों का उपयोग किया जा रहा है.