पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया पर सरकार ने 5 साल का बैन लगा दिया गया है. गृह मंत्रालय की तरफ से जारी नोटिफिकेशन में पीएफआई को UAPA के तहत गैर-कानूनी संस्था घोषित कर दिया गया है. इसका मतलब है कि अब पीएफआई किसी प्रकार की गतिवधि को अंजाम नहीं दे सकता है.
गृह मंत्रालय के मुताबिक, पीएफआई और उसके सहयोगी संगठनों का संबंध इस्लामिक स्टेट ऑफ इराक एंड सीरिया जैसे अंतरराष्ट्रीय आतंकी संगठनों से है. इतना ही नहीं ये संगठन देश में एक विशेष समुदाय में कट्टरपंथ को बढ़ावा दे रहा है. साथ ही पीएफआई और इसके काडर बार-बार देश में हिंसक और आतंकी गतिविधियों में लिप्त पाए गए हैं.
क्या है UAPA एक्ट?
UAPA का फुल फॉर्म Unlawful Activities Prevention Act यानी गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम है. इस कानून का मुख्य उद्देश्य आतंकी गतिविधियों पर रोकथाम लगाना है. पुलिस और जांच एजेंसियां इस कानून के तहत ऐसे आतंकियों, अपराधियों और संदिग्धों को चिन्हित करती है, जो आतंकी गतिविधियों में शामिल होते हैं. बता दें कि यूएपीए कानून को साल 1967 में लाया गया था. तब से लेकर अब तक इसमें चार बार संशोधन किए जा चुके हैं. 2004, 2008, 2012 और 2019 में इस कानून में बदलाव किए गए.
बड़े आतंकी संगठनों के खिलाफ हो चुकी है कार्रवाई
बता दें कि अभी तक इस कानून के तहत कई लोगों के खिलाफ कार्रवाई की गई है. यूएपीए का इस्तेमाल आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के सरगना मसूद अजहर, लश्कर-ए-तैय्यबा के मुखिया हाफिज सईद, आतंकी जकी-उर-रहमान लखवी और आतंकी दाउद इब्राहिम के खिलाफ किया जा चुका है.
मोदी सरकार ने UAPA कानून में किया संशोधन
अपने दूसरे कार्यकाल में मोदी सरकार ने इस कानून में बदलाव के लिए संशोधन विधेयक पेश किया था, जो संसद के दोनों सदनों से पास हो गया था. इस कानून में हुए संशोधन के बाद एनआईए को कई अधिकार मिल गए. इस कानून में अगस्त 2019 में हुए संशोधन के बाद अब इसके तहत संगठनों के साथ-साथ व्यक्तियों को भी आतंकवादी घोषित किया जा सकता है. साथ ही उस व्यक्ति की संपत्ति भी जब्त की जा सकती है.
UAPA कानून के तहत एनआईए के पास कार्रवाई करने के असीमित अधिकार हैं. यह कानून एनआईए को अधिकार देता है कि वो आतंकी गतिविधियों में शक के आधार पर लोगों को उठा सकती है और उन्हें गिरफ्तार कर सकती है. इसके अलावा संगठनों को आतंकी संगठन घोषित कर उन पर कार्रवाई कर सकती है.
जानकारी के लिए बता दें कि इस संशोधन से पहले किसी को व्यक्तिगत आतंकवादी ठहराने का कोई प्रावधान नहीं था. ऐसे में जब किसी आतंकवादी संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाता था तो उसके सदस्य एक नया संगठन बना लेते थे. इस प्रक्रिया पर लगाम लगाने के लिए सरकार ने यूएपीए कानून में संशोधन किया.
संशोधन के बाद की बात करें तो इस कानून के आधार पर एनआईए को जांच के लिए पहले संबंधित राज्य की पुलिस से अनुमति लेनी पड़ती थी, लेकिन अब इसकी जरूरत नहीं है.
NIA के अधिकारों की बात करें तो वो चाहे तो आतंकवाद से जुड़े किसी भी मामले में सबूत के आधार पर व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है और उसे आतंकी घोषित कर संपत्ति सीज कर सकती है.
पहले इसके लिए पुलिस महानिदेशक से अनुमति लेनी होती थी, लेकिन 2019 में किए गए संशोधन के बाद अब यह विधेयक एनआईए को अधिकार देता है कि आतंकवाद से जुड़े किसी मामले की जांच के लिए एनआईए के अधिकारियों को सिर्फ NIA डायरेक्टर जनरल से अनुमति लेनी होगी.
कानून में हुए संशोधन के बाद अब एनआईए के अफसरों को ज्यादा अधिकार दिए गए हैं. अब इंस्पेक्टर रैंक या उससे ऊपर के अफसर आतंकवाद से जुड़े ऐसे किसी भी मामले की जांच कर सकते हैं.
2016 से 2020 के बीच कुल 24 हजार 134 लोग गिरफ्तार
इसी साल केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने राज्यसभा (Rajya Sabha) में एक सवाल के जवाब में जानकारी दी थी कि साल 2016 से 2020 के बीच कुल 24 हजार 134 लोगों को यूएपीए (UAPA) कानून के तहत गिरफ्तार किया गया और उनके खिलाफ सुनवाई हुई, लेकिन इनमें से केवल 212 लोग ही दोषी साबित हो सके.