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कब और क्यों छापी गई थी नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर? जानिए क्या कहते हैं इससे जुड़े नियम, किस तरह छपते हैं नोट और कितना होता है खर्चा

दिल्ली के सीएम ने देश के नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर के साथ गणपति और लक्ष्मी की तस्वीर लगाने की वकालत की है. उनका कहना है कि इससे देश में सुख और समृद्धि आएगी, साथ ही रुपया मजबूत होगा. हालांकि, नोट पर तस्वीर यूं ही नहीं बदली जाती इसके पीछे पूरी प्रक्रिया होती है. चलिए इसके बारे में जानते हैं...

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हाइलाइट्स
  • नोट के छपाई में होता है खर्चा

  • आरबीआई देखता है करेंसी का लेखा-जोखा

दिवाली से ठीक दो दिन बाद दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की, जिसमें उन्होंने रुपये को डॉलर के मुकाबले मजबूत करने के लिए एक सुझाव दिया. सीएम केजरीवाल ने नए नोटों पर गणपति और लक्ष्मी की तस्वीर लगाने की वकालत की. उनका कहना है कि इससे देश में सुख और समृद्धि आएगी. साथ ही रुपया मजबूत होगा. हालांकि केजरीवाल का कहना है कि नए नोट में ये बदलाव होना चाहिए. पुराने नोटों को बदलने की जरूरत नहीं है. इसके अलावा उन्होंने इंडोनेशिया की भी दलील दी. इंडोनेशिया एक मुस्लिम बहुल देश है 85% से ज्यादा मुस्लिम समुदाय की आबादी है. साथ ही वहां 2% से भी कम हिंदू हैं, लेकिन उनके एक नोट में गणेश जी की तस्वीर छपी हुई है. केजरीवाल ने इसी नोट का उदाहरण दिया है और भारतीय नोटों पर भी गणेश जी की तस्वीर लगाने की मांग की. 

हालांकि भारत में इसके लिए कई नियम कायदे भी हैं. देश में नोट छापने का अधिकार भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के पास है. आरबीआई के सामने मिनिमम रिजर्व सिस्टम नाम का एक नियम होता है. ये नियम साल 1956 में लाया गया था. इसी के मुताबिक नोट छापे जाते हैं.

आरबीआई देखता है करेंसी का लेखा-जोखा

बताते चलें कि आरबीआई की स्थापना 1 अप्रैल, 1935 में हुई थी. यानी वो 87 सालों से देश में करेंसी का हिसाब किताब संभाले हुए है. उसी के कंधों पर नोट छापने का जिम्मा है. हालांकि इन नोटों की छपाई के लिए पैसे भी कम खर्च नहीं होते. कहा जाता है कि नोटों को छापने में हर साल करीब 4 से 5 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जाते हैं. हर साल आरबीआई अपनी रिपोर्ट में नोटों की छपाई में होने वाले खर्च की जानकारी देता है. आरबीआई की इसी रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020-21 में नोटों को छापने पर 4,012 करोड़ रुपये का खर्च हुआ, जबकि 2019-20 में 4,378 करोड़ रुपये खर्च हुए थे.

नोट के छपाई में होता है खर्चा

नोटों की छपाई में हाल के सालों में सबसे ज्यादा खर्च 2016-17 में हुआ था. उस साल 7,965 करोड़ रुपये का खर्च करने पड़े.तब नोटबंदी हुई थी. उस वक्त 500 और 2000 के नए नोट छापे गए. अभी देश में 10, 20, 50, 100, 200, 500 और 2000 रुपये के नोट छापे जाते हैं. जुलाई 2019 में राज्यसभा में सरकार ने एक नोट की छपाई में होने वाले खर्च की जानकारी दी थी. तब सरकार ने बताया था कि 2018-19 में 10 रुपये का एक नोट छापने में 75 पैसे खर्च हुए. जबकि सबसे ज्यादा खर्च 2000 के नोट छापने में आया था..उस दौरान 2000 का एक नोट 3 रुपये 53 पैसे में छप रहा था. 

नोटों की छपाई खर्च इसलिए बढ़ जाता है क्योंकि नोट की छपाई में इस्तेमाल होने वाला कागज और स्याही विदेशों से खरीदी जाती है. यानी नोट छापने के लिए खर्च भी कम नहीं होता. इसके लिए एक लंबा-चौड़ा बजट तय किया जाता है. डिजाइन क्या होगा, तस्वीर क्या लगेगी, नोट की मजबूती का भी ध्यान रखा जाता है. ये पूरी एक प्रक्रिया होती है. 

कब से शुरू हुआ नोट पर तस्वीर छापने का दौर  

तो नोट पर तस्वीर को लेकर देश में नई बहस शुरू हो गई लेकिन आखिर ये तस्वीर छापने का दौर कब से शुरू हुआ? गांधी जी की तस्वीर कहां से आई? दरअसल, आजादी से पहले यानी जब देश में अंग्रेज़ों का शासन था, तो नोटों ब्रिटेन के राजा महाराजाओं की तस्वीर छपती थी. फिर आजादी के बाद अशोक स्तम्भ नोट पर आ गया.  लेकिन सबसे पहले साल महात्मा गांधी की तस्वीर नोट पर साल 1969 में छपी थी. उस साल आरबीआई ने एक रुपये का नोट जारी किया जिस पर महात्मा गांधी की फोटो लगाई गई. ऐसा महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में किया गया था.

क्यों छापी गई नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर 

इसके 18 साल बाद यानी साल 1987 में महात्मा गांधी की फोटो वाले 500 के नोट जारी किए गए. इसके बाद आखिरकार 1996 से सभी नोटों पर महात्मा गांधी की तस्वीर छापनी शुरू कर दी गई. अब बात ये उठती है कि महात्मा गांधी का चेहरा ही क्यों चुना गया तो ये भी आपको समझाते हैं. आरबीआई के मुताबिक गांधीजी की तस्वीर से पहले इस्तेमाल किए गए सभी सिंबल या संकेतों को आसानी से नकल करके तैयार किया जा सकता था. किसी भी निर्जीव वस्तु की नकल उतारना आसान है जबकि किसी भी इंसान के चेहरों को हूबहू डुप्लीकेट करना मुश्किल होता है. यहीं से विचार आया कि किसी चेहरे को नोटों पर छापा जाए, मगर महात्मा गांधी ही क्यों? इसकी वजह ये थी कि हर स्वतंत्रता सेनानी एक खास क्षेत्र से जुड़ा था. किसी एक का चेहरा चुनना विवाद और विरोध पैदा कर सकता था जबकि गांधी जी पूरे देश में एक समान रूप से अहमियत रखते थे. यही वजह रही कि राष्ट्रपिता के चेहरे को ही नोट पर छापने के लिए चुना गया.