राज्यसभा की पूर्व उप सभापति और पूर्व केन्द्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला (Najma Heptulla) की ऑटोबायोग्राफी 'इन परस्यूट ऑफ डेमोक्रेसी: बियॉन्ड पार्टी लाइंस' रिलीज हुई है. इस किताब में नजमा हेपतुल्ला ने राजनीति से जुड़े कई दिलचस्प किस्से शेयर किए हैं.
नजमा हेपतुल्ला पहले कांग्रेस (Najma Heptulla Congress) में हुआ करती थी लेकिन बाद में बीजेपी में शामिल हो गईं. किताब में नजमा हेपतुल्ला ने कांग्रेस से बीजेपी में जाने की वजह भी बताई. साथ ही भी इसका वाकया भी शेयर किया.
नजमा हेपतुल्ला कांग्रेस से बीजेपी में शामिल कैसे हुई हुई? आइए इस किस्से पर नजर डालते है.
सोनिया गांधी और नजमा
नजमा हेपतुल्ला किताब में बताती हैं कि उन्होंने सोनिया गांधी (Sonia Gandhi) का पूरा साथ दिया. जब सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी से कांग्रेस लीडरशिप लेने का फैसला किया तो पार्टी के कई नेता इससे सहमत नहीं थे. तब गुलाम नबी आजाद और नजमा हेपतुल्ला ने कांग्रेस लीडरशिप को सोनिया गांधी के नेतृत्व के लिए राजी किया.
नजमा ने किताब में बताया कि वो सोनिया गांधी के साथ कई राज्यों में जाती थी. उनकी स्पीच के लिए रिसर्च करती थीं. उनकी स्पीच का इंग्लिश से हिन्दी में ट्रांसलेशन करती थीं. नजमा बताती हैं कि मैंने हर तरह से उनके साथ रही लेकिन जब पार्टी के बड़े फैसले लेने का समय आया तो मुझे इससे दूर रखा गया.
नरसिम्हा राव की करीबी
राजीव गांधी के बाद कांग्रेस की कमान नरसिम्हा राव ने संभाली. नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने. उस समय नजमा हेपतुल्ला राज्यसभा की डिप्टी चेयरपर्सन थीं. नजमा हेपतुल्ला ने नरसिम्हा राव के साथ काम किया.
नजमा हेपतुल्ला किताब में बताती हैं कि सोनिया गांधी भरोसी नहीं करती थीं क्योंकि मैंने नरसिम्हा राव जी के साथ करीब से काम किया था. नजमा हेपतुल्ला ने किताब में जिक्र किया है कि कांग्रेस एक परिवार की पार्टी बन गई थी.
वाजपेयी ने दिया ऑफर
2004 में नजमा हेपतुल्ला कांग्रेस से खुश नहीं थीं. तब अटल बिहारी वाजपेयी ने नजमा हेपतुल्ला से कहा- आ जाओ और हमारी पार्टी में शामिल हो जाओ. उस समय तो नजमा हेपतुल्ला ने कोई जवाब नहीं दिया.
नजमा हेपतुल्ला ने मौलाना आजाद की तारजुमनुल कुरान का ट्रांसलेशन उर्दू से देवनागरी में करवाया. फरवरी 2004 में नजमा हेपतुल्ला ने अटल बिहारी वाजपेयी से इस बुक को रिलीज करने को कहा. वाजपेयी जी ने इसके लिए इवेंट रखा. इस दौरान अटल बिहारी वाजपेयी ने रिपोर्टर से कहा, नजमा जी का बीजेपी में स्वागत है लेकिन पहले उनको इसके लिए फैसला करना होगा.
कांग्रेस से बीजेपी
मई 2004 में लोकसभा चुनाव हुए. बीजेपी को करारी हार मिली. केन्द्र में यूपीए की सरकार आई. कांग्रेस के नेतृत्व में सरकार बनी. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. उसी दौरान नजमा हेपतुल्ला ने अटल बिहारी वाजपेयी से कहा, मुझे आपकी पार्टी में शामिल होना है.
10 जून 2004 को नजमा हेपतुल्ला ने राज्यसभा के डिप्टी चेयरपर्सन पद से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कांग्रेस से भी इस्तीफा दे दिया. नजमा हेपतुल्ला किताब में बताती हैं, इसके बाद सोनिया ने मुझे कभी कॉल नहीं किया और न ही मैंने उनको कॉन्टैक्ट किया.
बीजेपी की राह
जुलाई 2004 में अटल बिहारी वाजपेयी ने वैंकेया नायडू को नजमा हेपतुल्ला को घर पर भेजा. नजमा हेपतुल्ला ने बीजेपी के मेंबरशिप पेपर पर साइन किए. इस तरह से नजमा हेपतुल्ला बीजेपी में शामिल हो गईं.
नजमा हेपतुल्ला राज्यसभा में बीजेपी की तरफ से विपक्ष में बैठीं. कई राज्यों की जिम्मेदारी भी दी गई. 2014 में जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने तो नजमा हेपतुल्ला सरकार में कैबिनेट मंत्री बनीं. नजमा हेपतुल्ला अल्पसंख्यक मंत्री बनीं.