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जेपी आंदोलन में 2 साल तक जेल, 5 बार सांसद, डीएम हत्याकांड में सुनाई गई फांसी की सजा... ऐसी है आनंद मोहन की कहानी

बिहार में अगड़ी जातियों का कुल 12 फीसदी वोट बैंक है, जिनमें तकरीबन 4 फीसदी राजपूत हैं. आनंद मोहन को बाहर निकालकर नीतिश कुमार अपना वोटबैंक तैयार करने की कोशिश में लगे हैं क्योंकि अपनी बिरादरी में आनंद मोहन की आज भी तूती बोलती है.

BPP founder and don Anand Mohan BPP founder and don Anand Mohan
हाइलाइट्स
  • जेपी आंदोलन से बिहार की सियासत में आए आनंद मोहन

  • जेल में रहते हुए जीता था इलेक्शन

बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह एक बार फिर चर्चा में हैं. किसी भी वक्त उनकी जेल से रिहाई के आदेश जारी हो सकते हैं. आनंद डीएम के मर्डर के आरोप में सजा काट रहे हैं. आनंद मोहन को जेल से निकालने के लिए सीएम नीतीश कुमार ने कानून में ही बदलाव कर दिया है. उनके जेल से बाहर आने की सबसे बड़ी रुकावट बना बिहार कारा हस्तक, 2012 के नियम-481(i) (क) में संशोधन करके उस वाक्यांश को हटा दिया गया है, जिसमें सरकारी सेवक की हत्या को शामिल किया गया था.

90 के दशक के मशहूर बाहुबली नेता रहे हैं आनंद

बिहार में जब भी बाहुबली नेताओं की बात की जाती है आनंद मोहन का नाम जरूर लिया जाता है. 90 के दशक में बिहार में ऐसा सामाजिक ताना बाना बुना गया था कि जात की लड़ाई खुल कर सामने आ गई थी और अपनी-अपनी जातियों के प्रोटेक्शन को लेकर आए दिन मर्डर की खबरें आती थीं. ये लालू प्रसाद यादव का दौर था जहां मंडल और कमंडल की जोर आजमाइश चल रही थी. उस दौर में आनंद मोहन लालू विरोध का चेहरा थे. 90 के दशक में आनंद मोहन की तूती बोलती थी. उनपर हत्या, लूट, अपहरण, फिरौती, दबंगई समेत दर्जनों मामले दर्ज हैं. 

जेपी आंदोलन से बिहार की सियासत में आए

आनंद मोहन सिंह बिहार के सहरसा जिले के पचगछिया गांव से आते हैं. उनके दादा राम बहादुर सिंह एक स्वतंत्रता सेनानी थे. इसके अलावा भी आनंद मोहन की पहचान है- वे बिहार के जाने माने गैंगस्टर रहे हैं. जेपी आंदोलन के दौरान उन्हें दो साल जेल में भी रहना पड़ा था. जेपी आंदोलन के जरिए ही आनंद मोहन बिहार की सियासत में आए और 1990 में सहरसा जिले की महिषी सीट से जनता दल के टिकट पर चुनाव जीते. तब बिहार के मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव थे. स्वर्णों के हक के लिए उन्होंने 1993 में बिहार पीपल्स पार्टी बना ली. लालू यादव का विरोध कर ही आनंद मोहन राजनीति में निखरे थे. 

Anand Mohan Singh

और वो वाकया जिसकी वजह से जेल पहुंचे आनंद मोहन

1994 में बिहार पीपल्स पार्टी (BPP) का नेता और गैंगस्टर छोटन शुक्ला पुलिस मुठभेड़ में मारा गया था. उसकी शवयात्रा में हजारों की भीड़ जमा हुई थी, जिसकी अगुआई आनंद मोहन कर रहे थे. इसी दौरान भीड़ पर काबू पाने निकले गोपालगंज के तत्कालीन डीएम जी. कृष्णैय्या को आनंद मोहन ने उनकी गाड़ी से निकाला और भीड़ के हाथों सौंप दिया. सरेआम उनपर पत्थर बरसाए गए और उन्हें गोली मार दी गई. कृष्णैय्या की हत्या के आरोप में आनंद मोहन को फांसी की सजा सुनाई गई.

जेल से लड़ा चुनाव और जीते भी

लोकप्रियता के चरम के बावजूद पीपल्स पार्टी प्रमुख आनंद मोहन 1995 के विधानसभा चुनाव हार गए. इसके बाद आनंद मोहन समता पार्टी के टिकट पर साल 1996 के आम चुनावों में शिवहर लोकसभा सीट से खड़े हुए. हत्या के आरोप में जेल में रहने के बावजूद वो चुनाव जीत गए. दोबारा 1999 में भी वह जीते. 

आनंद मोहन की लिखी कहानी 'पर्वत पुरुष दशरथ' काफी फेमस है. इसके अलावा "कैद में आजाद कलम' और "स्वाधीन अभिव्यक्ति'' उन्होंने जेल में रहने के दौरान ही लिखी थी.

बिहार में अगड़ी जातियों का 12 फीसदी वोट बैंक

आनंद मोहन आजाद भारत के पहले नेता थे जिन्हे फांसी की सजा सुनाई गई थी. बाद में इसे उम्रकैद में तब्दील कर दिया गया. आनंद मोहन तभी से जेल में हैं और पेरोल पर बाहर आते रहते हैं. आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद भी सांसद रही हैं, जबकि उनके बेटे चेतन आनंद फिलहाल शिवहर से आरजेडी के विधायक हैं. बिहार में अगड़ी जातियों का कुल 12 फीसदी वोट बैंक है, जिनमें तकरीबन 4 फीसदी राजपूत हैं. बिहार की राजनीति में हमेशा से ही बाहुबलियों का दबदबा रहा है. आनंद मोहन को बाहर निकालकर नीतीश कुमार अपना वोटबैंक तैयार करने की कोशिश में लगे हैं क्योंकि अपनी बिरादरी में आनंद मोहन की आज भी तूती बोलती है और उनके सर्मथक उन्हें जेल से रिहा करने की मांग भी समय-समय पर करते रहे हैं.