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Bhagat Singh Birth Anniversary: कहानी उस लेखक की जिससे सीखा भगत सिंह ने इंकलाब ज़िन्दाबाद का नारा... जानिए कौन थे Upton Sinclair

जब मार्च 1929 में कलकत्ता (Calcutta) के अखबार मॉडर्न रिव्यू ने भगत सिंह के नारे 'इंक़लाब ज़िन्दाबाद' को बेतलब बताया को भगत सिंह ने इस नारे का स्रोत और मतलब स्पष्ट कर देना जरूरी समझा. यही खत हमें अमेरिका के उस लेखक तक ले जाता है जिसने अपनी कहानियों के जरिए अमेरिका में समाजवाद लाने की कोशिश की.

भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था. भगत सिंह का जन्म 28 सितंबर 1907 को हुआ था.

स्वतंत्रता सेनानी और वीर क्रांतीकारी शहीद भगत सिंह का जन्म आज से ठीक 117 साल पहले पंजाब में हुआ था. कागजों पर भगत सिंह की उम्र सिर्फ 23 साल है लेकिन भारत की आजादी में उनका योगदान उन्हें अमर बना देता है. भगत सिंह का उठाया हुआ 'इंक़लाब ज़िन्दाबाद' का नारा आज भी इंसाफ़-पसंद युवाओं के दिल में मशाल बनकर जलता है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि भगत सिंह को इस नारे की प्रेरणा कहां से मिली थी? 
आइए जानते हैं कौन थे अप्टन सिंक्लेयर. 

जहां हुआ इंक़लाब ज़िन्दाबाद का जन्म
जब सन् 1929 में कलकत्ता (Calcutta) में छपने वाले अखबार मॉडर्न रिव्यू के एडिटर ने भगत सिंह के नारे 'इंक़लाब ज़िन्दाबाद' को बेमतलब बताया तो उन्होंने इस नारे की उत्पत्ति का जिक्र करना जरूरी समझा.

भगत सिंह ने 24 दिसंबर 1929 को मॉडर्न रिव्यू के एडिटर को एक खत में लिखा, "हम इस नारे की शुरुआत करने वाले नहीं हैं. रूसी क्रांतिकारी आंदोलन में भी इसी नारे का इस्तेमाल किया गया था. प्रसिद्ध समाजवादी लेखक अप्टन सिंक्लेयर ने अपने हालिया उपन्यास बॉस्टन और ऑयल में कुछ अराजकतावादी क्रांतिकारी पात्रों के माध्यम से इस नारे का इस्तेमाल किया है." 

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भगत सिंह की प्रेरणा बनने वाले सिंक्लेयर का जन्म 20 सितंबर 1878 को मैरीलैंड राज्य के बाल्टिमोर शहर में हुआ था. बचपन गरीबी में गुजरने की वजह से आर्थिक न्याय सिंक्लेयर की लेखनी का एक मुख्य पहलू बन गया. महज 16 साल की उम्र में छोटी-मोटी कहानियां लिखना शुरू करने वाले सिंक्लेयर ने 20 की उम्र में फैसला किया कि अब वह संजीदा नॉवलें लिखा करेंगे. हालांकि सिंक्लेयर का यह फैसला शुरू-शुरू में उनके हित में नहीं गया. 

सिंक्लेयर के करियर के शुरुआती उपन्यास फ्लॉप होते चले गए. जिसके बाद उन्होंने 1903 में समाजवाद पर ध्यान केंद्रित करने का फैसला किया. सन् 1904 में सिंक्लेयर अपनी पहचान छुपाकर शिकागो गए, जहां उन्हें मीटपैकिंग इंडस्ट्री के कर्मचारियों की स्थिति पर लिखना था. इस यात्रा से लौटने के बाद सिंक्लेयर ने 'द जंगल' नाम का उपन्यास लिखा, जो इतना हिट हुआ कि इसी के दम पर अमेरिका का पहला शुद्ध खाद्य और औषधि कानून पारित हुआ. 

सिंक्लेयर ने कई बार चुनाव भी लड़े, हालांकि उनके हाथ हर बार असफलता ही हाथ लगी. सिंक्लेयर का सबसे यादगार चुनावी अभियान 1934 में रहा जब उन्होंने कैलिफोर्निया के गवर्नर के पद के लिए चुनाव लड़ा. इस चुनाव में सिंक्लेयर 'कैलिफोर्निया से गरीबी हटाओ' (End Poverty in California) के नारे के साथ लड़े.

डेमोक्रेट पार्टी की ओर से लड़ते हुए सिंक्लेयर को इस चुनाव में 8.79 लाख वोट मिले, लेकिन रिपब्लिकन पार्टी के फ्रैंक मेरियम ने 11 लाख से ज्यादा वोट हासिल कर उन्हें आसानी से हरा दिया. इस चुनाव में हॉलीवुड स्टूडियो मालिकों ने सर्वसम्मति से सिंक्लेयर का विरोध किया. उन्होंने अपने कर्मचारियों पर मेरियम के अभियान में मदद करने और वोट देने के लिए दबाव डाला.

साथ ही सिंक्लेयर के खिलाफ बड़े पैमाने पर झूठा प्रचार भी किया गया, जिसका जवाब देने का उनके पास कोई मौका नहीं था. सिंक्लेयर ने बाद में कहा कि "कैलिफोर्निया के सबसे बड़े व्यवसायियों ने" चुनाव के दौरान उनके खिलाफ "झूठा अभियान" चलाया था, जिसे समाचार पत्रों, राजनेताओं, विज्ञापनदाताओं और फिल्म उद्योग ने सहारा दिया था.

राजनीति से इतर सिंक्लेयर ने सैकड़ों उपन्यास लिखे, जिनमें से ज्यादातर समाजवाद पर ही केंद्रित रहे. भगत सिंह सिंक्लेयर के बहुत बड़े प्रशंसक थे. उन्होंने अपनी जेल की डायरी में जिन लेखकों का जिक्र किया उनमें फ्योदोर दोस्तोएव्सकी और चार्ल्स डिकन्स जैसे उपन्यासकारों के साथ-साथ सिंक्लेयर का भी नाम मौजूद है. इन्हीं उपन्यासों से भगत सिंह को 'इंक़लाब जिन्दाबाद' का नारा मिला था.

'इंक़लाब ज़िन्दाबाद' पर क्या कहते थे भगत सिंह?
इस नारे को बेमतलब बताने वाले मॉडर्न रिव्यू के ए़डिटर के नाम लिखे गए खत में भगत सिंह ने इंक़लाब ज़िन्दाबाद का मतलब भी समझाया और यह भी समझाया कि इंक़लाब उनके लिए क्या मायने रखता है. भगत सिंह के खत का आखिरी हिस्सा यहां मौजूद है. 

"जरूरी नहीं कि क्रांति में उग्र संघर्ष ही शामिल हो. यह बम और पिस्तौल का पंथ नहीं था. वे कभी-कभी इसे हासिल करने का साधन जरूर बन जाते हैंय इसमें कोई शक नहीं है कि वे कुछ आंदोलनों में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, लेकिन इस वजह से ये दोनों चीजें एक नहीं हो जातीं. बग़ावत कोई इंक़लाब नहीं है. बग़ावत सिर्फ आपको उस तक ले जा सकती है."

"उस नारे में इंक़लाब लफ्ज का जिस मायने में इस्तेमाल किया गया है, वह एक भावना है. बेहतरी के लिए बदलाव की चाहत है. लोग आम तौर पर चीजों के आदी हो जाते हैं और बदलाव के खयाल से ही कांपने लगते हैं. इस सुस्त एहसास को इंक़लाबी एहसास से बदलने की जरूरत है. वरना अध:पतन हावी हो जाता है और पूरी इंसानियत ऐसी ताकतों की वजह से भटक जाती है जो सुधार का विरोध करती हैं." 

"ऐसी हालत इंसान की तरक्की में ठहराव और पंगुता का कारण बनती है. इंक़लाब की भावना हमेशा इंसानियत की आत्मा में शामिल रहनी चाहिए, ताकि सुधार विरोधी ताकतें उसके आगे बढ़ने को रोकने के लिए (ताकत) इकट्ठा न कर सकें. पुरानी व्यवस्था को हमेशा-हमेशा के लिए बदलना चाहिए, जिससे नई व्यवस्था को जगह मिल सके, ताकि एक "अच्छी" व्यवस्था दुनिया को भ्रष्ट न कर सके. इसी मायने में हम "इंक़लाब ज़िन्दाबाद" का नारा बुलंद करते हैं."