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Aurangzeb Tomb in Maharashtra: कौन थे औरंगज़ेब के गुरु....जिनकी कब्र के पास दफनाए गए मुगल बादशाह...अपनी वसीयत में लिख गए थे यह बात

छावा फिल्म के आने के बाद, लोगों को गुस्सा फूट रहा है. अलग-अलग शहरों में लोग अब औरंगज़ेब से जुड़ी ऐतिहासिक जगहों या चीजों को तोड़-फोड़ रहे हैं.

औरंगजेब औरंगजेब

बॉलीवुड एक्टर विक्की कौशल और एक्ट्रेस रश्मिका मंदाना की फिल्म, छावा को रिलीज हुए काफी समय बीत चुका है. लेकिन इस फिल्म के चलते मुगल बादशाह औरंगज़ेब पर जो बहस छिड़ी है, वह खत्म होने का नाम नहीं ले रही है. औरंगज़ेब को मुगल इतिहास के सबसे क्रूर शासक के तौर पर जाना जाता है. उन्होंने 1658 से 1707 तक देश पर शासन किया. औरंगज़ेब के कानून और नीतियां इस्लाम को लेकर काफी कट्टर थीं और उन्होंने हिंदुओं पर काफी अत्याचार किए. इस कारण आज भी समाज का एक तबका औरंगज़ेब को बिल्कुल पसंद नहीं करता है. 

खासकर छावा फिल्म के आने के बाद, लोगों को गुस्सा फूट रहा है. अलग-अलग शहरों में लोग अब औरंगज़ेब से जुड़ी ऐतिहासिक जगहों या चीजों को तोड़-फोड़ रहे हैं. कई जगहों पर औरंगज़ेब के नाम वाली जगहों को काले रंग से पेंट कर दिया गया. अब उनकी कब्र पर सवाल उठ रहे हैं. दरअसल, औरंगज़ेब ने दिल्ली और आगरा पर शासन किया था तो उनकी कब्र महाराष्ट्र में क्यों है?

गुरु के पास दफनाया गया
आपको बता दें कि महाराष्ट्र के औरंगाबाद से 25 किमी दूर खुल्दाबाद में औरंगज़ेब का मकबरा है, यहां मुगल बादशाह की मजार है. अब इसी बात पर सवाल उठ रहे हैं कि आखिर दिल्ली के मुगल बादशाह की मजार महाराष्ट्र में क्यों है? बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, औरंगज़ेब का मकबरा एएसआई के संरक्षण में है और यह एक राष्ट्रीय स्मारक है. 

औरंगज़ेब की कब्र महाराष्ट्र में होने का कारण है उनकी वसीयत. जी हां, औरंगज़ेब ने अपनी वसीयत में लिखा था कि उन्हें उनके गुरु सूफी संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी की कब्र के पास दफनाया जाए. साथ ही, उन्होंने अपनी वसीयत में लिखा था कि उनका मकबरा साधारण दिखना चाहिए. 

खुल्दाबाद में ज़ैनुद्दीन शिरज़ी का मकबरा

कौन थे औरंगज़ेब के गुरु
मुगल बादशाद औरंगज़ेब के गुरु थे- सूफी संत सैयद ज़ैनुद्दीन शिराज़ी. आपको बता दें कि हज़रत ख्वाजा ज़ैनुद्दीन शिराज़ी रहमतुल्लाह का जन्म 1302 ईस्वी में शिराज़ (ईरान) में हुआ था. उनकी शिक्षा समाना के मौलाना कमालुद्दीन की देखरेख में हुई. उनके साथ वह दौलताबाद पहुंचे और यहां उनकी मुलाकात हज़रत बुरहानुद्दीन से हुई. लेकिन उनके मठ में नृत्य और गायन को ज़ैनुद्दीन ने नकार दिया. बाद में, वह दौलताबाद के क़ाज़ी नियुक्त हुए. हिजरी में उन्हें 'खलीफा' की उपाधि दी गई. ज़ैनुद्दीन को बहमनी राजा सुल्तान महमूद,  खानदेश के फारुकी वंश के संस्थापक मलिक राजा और नासिरुद्दीन नासिर खान फारुकी आदि से काफी सम्मान मिला. 

एक बार सूफी संत दौलताबाद से असीरगढ़ गए तो इस यात्रा के सम्मान में ताप्ती नदी के बाएं किनारे पर 'जैनाबाद' शहर बसाया गया. मुगल बादशाह औरंगज़ेब भी उनके मुरीद थे. इतिहासकार डॉक्टर दुलारी क़ुरैशी का कहना है कि औरंगज़ेब की वसीयत में साफ़ लिखा था कि वो ख़्वाज़ा सैयद जैनुद्दीन को अपना पीर मानते हैं. ज़ैनुद्दीन औरंगज़ेब से बहुत पहले ही दुनिया को विदा कह चुके थे. औरंगज़ेब ने कहा था कि उनका मक़बरा शिराज़ी के पास ही होना चाहिए. इसलिए औरंगज़ेब को उनके निधन के बाद खुल्दाबाद में दफनाया गया. 

बात अब औरंगजेब के मकबरे या मजार के संरक्षण की करें तो यह महाराष्ट्र सरकार नहीं बल्की एएसआई की जिम्मेदारी है. हर साल एएसआई इसके संरक्षण में दो लाख रुपए खर्च करती है.