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Rain in Delhi: हर Monsoon में क्यों डूब जाती है Delhi, क्यों हो जाता है Drainage System फेल ? जानिए वजह

जिन नालों से यमुना में पानी भेजा जाता है वो पुरानी डिजाइन के हैं. उसकी क्षमता सिर्फ 50 एमएम बारिश का पानी ले जाने की है. 50 एमएम से ज्यादा बारिश होने पर दिल्ली में जलभराव होगा. दूसरा कारण लंबित 'ड्रेनेज मास्टर प्लान' है, जिसे अभी तक मंजूरी नहीं मिल पाई है.

Delhi Rain (Photo-PTI) Delhi Rain (Photo-PTI)

भीषण गर्मी से परेशान दिल्लीवासी मानसून का इंतजार कर रहे थे और जब मानसून आया तो ऐसा आया कि रिकॉर्ड टूट गया. बारिश के बाद कई इलाकों में जलभराव की समस्या उत्पन्न हो गई जो कि अबतक जारी है. अब इस जलभराव से दिल्लीवासी परेशान हो गए हैं. पीडब्लूडी के अधिकारी और एक्सपर्ट मानते हैं कि सभी नालों को साफ भी कर दें तो भी दिल्ली को जलभराव से नही बचाया जा सकता. आखिर क्या है इसके पीछे की वजह चलिए जानते हैं. 

1976 के बाद नही बना दिल्ली का कोई ड्रेनेज प्लान

पीडब्लूडी अधिकारी ने नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि दिल्ली का ड्रेनेज मास्टर प्लान उस वक्त की आबादी के हिसाब से डिजाइन किये गए कि 24 घंटे में हुई 50 मिमी की बारिश का पानी निकाल सकें. जब कि 228 एमएम की बारिश ने पूरी दिल्ली को ऐसा डुबोया कि 11 लोगों की जान ले ली. अभी मौसम विभाग ने अगले तीन दिनों तक भारी बारिश की संभावना जताई है. दिल्ली का ड्रेनेज प्लान तो करीब 48 साल पुराना है. पीडब्ल्यूडी 2064.08 किलोमीटर नालियों का प्रबंधन करता है, जो शहर के कुल जल निकासी नेटवर्क का लगभग 55% है. हालांकि यह शहरी जलभराव को रोकने में सफल नहीं रहा है, जिसका सामना शहर को हर साल मानसून के दौरान करना पड़ता है.

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सिर्फ कंसल्टेंट की हुई नियुक्ति

कोर्ट के आदेश पर पीडब्लूडी को ही नोडल एजेंसी चुना गया है जो नया ड्रेनेज प्लान बनाएगी. लेकिन नए प्लान में एक अदद कंसल्टेंट ही नियुक्त हो सका है, जो तीनों बेसिन के ड्रेनेज मास्टर प्लान के लिए रोडमैप तैयार करेगा. अधिकारी ने बताया कि चुना हुआ सलाहकार बेसिनों के लिए अलग से जलनिकासी मास्टर प्लान देगा जो दिल्ली की बढ़ी हुई आबादी के हिसाब और नए डिजाइन में होगा. डॉ. एस वेलमुरुगन, वरिष्ठ प्रधान वैज्ञानिक और पूर्व प्रमुख, यातायात इंजीनियरिंग और केंद्रीय सड़क अनुसंधान संस्थान ने कहा कि जल निकासी को 1976 में आई बाढ़ के बाद से ही इसे दुरुस्त करने की जरूरत है. गाद निकालना, पानी निकालने के लिए पंप लगाना ये सब टेंपरेरी हैं. सरकार ने पिछले साल की बाढ़ से सबक नहीं लिया.'

मास्टर प्लान बनाने की जरूरत

सीपीडब्लूडी के एग्जेकेटिव इंजीनियर रहे कुंवर चंद्रेश ने बताया कि दिल्ली का लास्ट ले आउट डिज़ाइन 1979 का है. 45 साल के बाद दिल्ली की जनसंख्या और इफ्रास्ट्रक्चर दबाव बहुत बढ़ा है लेकिन ड्रेनेज सिस्टम का डिजाइन कुछ को छोड़कर बाकी इलाको में पुराना ही है. सेंट्रल दिल्ली, पुरानी दिल्ली और आसपास के कई इलाको में पुराने डिजाइन से ही ड्रेनेज सिस्टम का जाल बिछा है.

स्टोर्म वाटर का अलग ले आउट

कुंवर चंद्रेश ने कहा कि इंटरनेशनल प्रैक्टिस मेंसीवेज और रेन वॉटर मिक्स नही होना चाहिए. ओवरफ्लो से बचने के लिए दोनो को अलग-अलग रखने की जरूरत है. कुंवर चंद्रेश का दावा है कि दिल्ली के कई इलाकों में सीवेज वॉटर और रेन वॉटर कंबाइंड है. स्टोर्म वाटर का अलग ले आउट प्लान करने की जरूरत है क्योकि ये सीजनल होता है. जबकि सीवेज वाटर पूरे साल बहता रहता है. 2018 की आईआईटी की रिपोर्ट के मुताबिक सीवेज वाटर में सीजनल वाटर का अलगाव प्राथमिकता में होना चाहिए. साल 2021 में सरकार ने आईआईटी की इस रिपोर्ट को डेटा में खामी बताकर खारिज कर दिया.

दिल्ली में कुल 201 नैचुरल ड्रेन हैं. नजफगढ़ बैसिन में 123 ड्रेन , बारापुला में 44 और ट्रांस टुना बेसिन में 34 नाले हैं. आपको बता दें कि दिल्ली 3ड्रेनेज बेसिन में बसी है-ट्रांस यमुना ड्रेनेज बेसिन,बारापुला और सबसे बड़ा नजफगढ़ ड्रेनेज बेसिन।जबकि आईआईटी की रिपोर्ट ये कहती है कि तीनों में कुछ के स्लोप ठीक नही है। क्योंकि कई सीवेज नाले में नही जा पाते. 2016 की आईआईटी की रिपोर्ट में उन जगहों को चिन्हित भी किया गया.

(राम किंकर सिंह की रिपोर्ट)