केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने किबिथू में वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम (Vibrant Villages Program) की शुरुआत की. अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) का यह गांव काफी ऐतिहासिक रहा है. ये गांव भारत और चीन के बीच 1962 युद्ध का गवाह रहा है. इस गांव की अहमियत इसलिए और भी ज्यादा है, क्योंकि भारतीय सेना और चीनी सेना के बीच सीमा मुद्दों को हल करने और आपसी बातचीत के लिए जिन जगहों पर बैठकें होती हैं, उनमें से एक है.
कहां है किबिथू-
किबिथू (Kibithu, जिसे Kibithoo भी कहा जाता है) भारत के अरुणाचल प्रदेश के अंजॉ जिले में एक कस्बा है, जो लोहित घाटी के किनारे स्थित है. इसे मेयर और जार्किन जनजातियों की संख्या ज्यादा है. ये कस्बा उस त्रिबिंदू दिफू दर्रे से 40 किलोमीटर दूर है, जहां भारत, तिब्बत और बर्मा की सीमाएं मिलती हैं. इसके अलावा भारत और चीन के एलएसी से सिर्फ 15 किलोमीटर दूर है. ये गांव सामरिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है.
क्या है किबिथू का सैन्य इतिहास-
किबिथू में भारतीय सेना का सैन्य शिविर है. जिसका नाम जनरल बिपिन रावत के नाम रखा गया है. इसका नाम बिपिन रावत मिलिट्री गैरिसन किया गया है. किबिथू में सैन्य शिविर के महत्व का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके ठीक सामने चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की रीमा पोस्ट है. 1962 युद्ध में चीन के शुरुआती हमले को किबिथू ने झेला था. इस पहली बार दिसंबर 1950 में 2 असम राइफल्स ने कब्जा किया था और साल 1959 में अतिरिक्त प्लाटून भेजकर इस पोस्ट को और भी मजबूत किया गया था. साल 1962 में युद्ध खत्म होने के बाद फिर से 2 असम राइफल्स ने कब्जा कर लिया था. साल 1985 में 6 राजपूत रेजिमेंट्स ने इसकी सुरक्षा की कमान संभाली.
21 अक्टूबर 1962 को किबिथू में क्या हुआ था-
साल 1962 में भारत और चीन के बीच युद्ध हुआ था. इस बीच में किबिथू को भी चीनी सैनिकों ने निशाना बनाया था. 21 अक्टूबर 1962 की रात को किबिथू में भारतीय चौकियों पर तोपखानों से गोलाबारी की थी. इस जगह से चीन की चौकियां 700 मीटर दूर थी. लेकिन जल्द ही चीनी सेना की एक पूरी बटालियन भारतीय जवानों पर हमले करने लगी. किबिथू में 6 कुमाऊं रेजीमेंट की टुकड़ी तैनात थी. इनकी संख्या चीनी सैनिकों से काफी कम थी. 6 कुमाऊं रेजिमेंट भारत की सबसे पुरानी पैदल सेना रेजिमेंटों में से एक थी. सेना की टुकड़ी ने चीनी हमलों के खिलाफ बहादुरी से लड़ा. इस हमले में 60-70 चीनी सैनिक मारे गए थे, जबकि 4 भारतीय सैनिक शहीद हुए थे. शहीदों में वीर चक्र से सम्मानित नाइक बहादुर सिंह भी शामिल थे. लेकिन चीनी सैनिकों की तैयारी के साथ हमले ने भारतीयों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. भारतीय सैनिकों को वालोंग जाने का आदेश दिया गया.
वालोंग में सेना ने दिखाया दम-
भारतीय सेना ने वालोंग में मोर्चा संभाला और चीनियों को नाकों चने चबवा दिए. भारतीय सेना ने 27 दिनों तक चीनी सैनिकों को रोके रखा. कम गोला-बारूद और संसाधनों के बिना हमारे बहादुर सैनिकों ने आखिर दम तक लड़ाई लड़ी और चीनी सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दिया. 27 अक्टूबर के बाद इलाके में शांति थी. लेकिन इस दौरान चीनी सैनिक संगठित हो रहे थे. 5 नवंबर को एक बार भीतर चीनी सैनिकों ने हमला बोला और दोनों तरफ से गोलीबारी हुई. 14 नवंबर को भारतीय सेना ने एक बार फिर चीनियों पर पलटवार किया. उनके पसा तोपखाना नहीं था. लेकिन जवानों ने 3 इंच मोर्टार का बेहतरीन इस्तेमाल किया था. हालांकि अपनी विशाल ताकत और मारक क्षमता की बदौलत चीनी सैनिक जीत गए और 200 कुमाऊंनी सैनिकों में से सिर्फ 90 सैनिक बटालियन मुख्यालय पहुंचे थे. इस दौरान कई भारतीय सैनिकों को चीनी सेना ने बंदी बना लिया था.
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