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Lok Sabha Speaker: नई सरकार बनने के बाद 26 जून को होगा स्पीकर का चुनाव, जानें लोकसभा अध्यक्ष के विशेषाधिकार

What Privileges Does the Speaker Have: 18वीं लोकसभा का गठन हो चुका है. 26 जून 2024 को लोकसभा के अध्यक्ष यानी स्पीकर का चुनाव होगा. अनुच्छेद 93 के अनुसार सदन के शुरू होने के बाद यथाशीघ्र स्पीकर चुना जाना चाहिए.

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हाइलाइट्स
  • 5 साल तक होता है लोकसभा स्पीकर का कार्यकाल 

  • स्पीकर पद पर टीडीपी और जदयू दोनों की नजर

केंद्र में लगातार तीसरी बार मोदी (Modi) की सरकार बनी है. मोदी कैबिनेट 3.0 (Modi Cabinet 3.0) के शपथ ग्रहण और विभागों के बंटवारे के बाद संसद सत्र (Parliament Session) की शुरुआत होने जा रही है.

उससे पहले 26 जून 2024 को लोकसभा के अध्यक्ष यानी स्पीकर (Speaker) का चुनाव होगा. आइए आज जानते हैं कि स्पीकर का पद क्यों इतना महत्वपूर्ण है कि सभी पार्टियां इसको पाना चाहती हैं. कैसे लोकसभा अध्यक्ष का चुनाव होता है और आखिर क्या-क्यां शक्तियां स्पीकर के पास होती हैं?

स्पीकर की होती है महत्वपूर्ण भूमिका
इस बार के लोकसभा चुनाव में एनडीए में शामिल तेलुगु देशम पार्टी (TDP) से 16 सांसद और जनता दल यूनाइटेड (JDU) से 12 सांसद बने हैं. पिछले 10 सालों में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली बीजेपी (BJP) अपने बहुमत के आधार पर अध्यक्ष का नामांकन और नियुक्ति करती रही है. लेकिन इस बार ऐसा होने वाला नहीं है. क्योंकि बीजेपी इस बार पूर्ण बहुमत से पीछे रह गई है.

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ऐसे में स्पीकर पद पर टीडीपी और जदयू दोनों की नजर है. आपको मालूम हो कि गठबंधन सरकारों में बहुत से फैसले ऐसे होते हैं, जिसमें स्पीकर की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है और उनके विशेषाधिकार काम आते हैं. ऐसे में सभी पार्टियां इस पद को पाना चाहती हैं.

कैसे होता है चुनाव
हमारे देश की संसदीय कार्यवाही का नेतृत्व एक पीठासीन अधिकारी करता है, जिसे अध्यक्ष या स्पीकर कहा जाता है. प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने कहा था कि संसदीय लोकतंत्र में स्पीकर सदन की गरिमा और स्वतंत्रता का प्रतिनिधित्व करता है. क्योंकि सदन देश का प्रतिनिधित्व करता है, इसलिए स्पीकर एक तरह से देश की स्वतंत्रता का प्रतीक होता है.

अनुच्छेद 93 के अनुसार सदन के शुरू होने के बाद यथाशीघ्र स्पीकर चुना जाना चाहिए. उसका चुनाव सदन में साधारण बहुमत से होता है.  स्पीकर बनने के लिए विशेष योग्यता की जरूरत नहीं, लोकसभा का कोई भी सांसद स्पीकर बन सकता है. आमतौर पर स्पीकर सत्तारूढ़ दल का ही कोई सदस्य बनता है, क्योंकि उसके पास बहुमत होता है. 

लोकसभा भंग होने के बाद भी अध्यक्ष अपने पद पर रहते हैं बनें 
लोकसभा भंग होने के बाद भी अध्यक्ष अपने पद पर बने रहते हैं. नव निर्वाचित लोकसभा की पहली बैठक होने तक वह पद पर बने रहते हैं. स्पीकर पद के लिए उम्मीदवार का निर्णय लिए जाने पर सामान्यत: संसदीय कार्य मंत्री या प्रधानमंत्री की ओर से उसके नाम का प्रस्ताव किया जाता है. फिर सर्वसम्मति से स्पीकर की नियुक्ति की जाती है. लेकिन कई बार एकमत न होने पर वोटिंग भी हो जाती है.

नवनिर्वाचित स्पीकर को प्रधानमंत्री और विपक्ष के नेता अध्यक्ष पद के आसन तक ले जाते हैं. इसके बाद सभा में उपस्थित सभी राजनीतिक दलों के नेता अध्यक्ष के आसन पर जाकर उन्हें बधाई देते हैं. इसके बाद स्पीकर का धन्यवाद भाषण होता है, फिर वे अपना कार्यभार ग्रहण करते हैं. लोकसभा स्पीकर का चयन सदन में मौजूद सदस्य ही करते हैं इसलिए स्पीकर के लिए कोई शप​थ ग्रहण समारोह नहीं होता है.

इतने साल का होता है कार्यकाल 
लोकसभा स्पीकर का कार्यकाल 5 साल तक का होता है. हालांकि जरूरत पड़ने पर स्पीकर को पद से हटाया जा सकता है. इसका अधिकार निचले सदन के पास है. संविधान के अनुच्छेद 94 और 96 के अनुसार सदन बहुमत (सदन की उपस्थिति और वोट करने वाली कुल संख्या का 50 फीसदी से अधिक) द्वारा प्रस्ताव पारित कर स्पीकर को हटा सकता है. जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 7 और 8 के तहत लोकसभा सदस्य के तौर पर अयोग्य घोषित होने पर स्पीकर को हटाया भी जा सकता है. 

क्या होती हैं स्पीकर की शक्तियां
1. लोकसभा का स्पीकर सदन के नियमों की व्याख्या से लेकर व्यवस्था बनाए रखने और सदस्यों के निष्कासन तक का काम करता है. 
2. अध्यक्ष लोकसभा और राज्यसभा के संयुक्त सत्रों की अध्यक्षता भी करता है. यदि कोरम की कमी होती है, तो वह बैठकों को स्थगित कर देता है.
3. अध्यक्ष यह निर्धारित करता है कि सदन में पेश किया गया विधेयक धन विधेयक है या साधारण विधेयक. 
4. सदन की समितियां, जो मतदान से पहले किसी नीति पर चर्चा और विचार-विमर्श करती हैं, अध्यक्ष की ओर से गठित की जाती हैं. वे अध्यक्ष के निर्देशों के तहत काम करती हैं. 
5. स्पीकर दलबदल के आधार पर (संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत) किसी संसद सदस्य को सदन से अयोग्य घोषित कर सकता है.
6. यदि कोई लोकसबा सदस्य स्पीकर के आदेशों का उल्लंघन करता है तो ऐसे मामलों में उसे सदन से हटना पड़ सकता है. इतना ही नहीं अध्यक्ष ऐसे सदस्य को निलंबित भी कर सकते हैं. 
7. सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव को स्पीकर ही स्वीकार करता है.
8. लोकसभा में विपक्ष के नेता को मान्यता देने का निर्णय भी स्पीकर ही करता है.
9. अध्यक्ष का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है. आमतौर पर उन पर सवाल नहीं उठाया जा सकता, चुनौती नहीं दी जा सकती या आलोचना नहीं की जा सकती.
10. लोकसभा में सदस्य को प्रश्न पूछने या किसी भी चर्चा के लिए स्पीकर की अनुमति जरूरी. अध्यक्ष ही तय करता है कि कौनसा प्रश्न पूछने योग्य.
11. स्पीकर ही सदन में की गई टिप्पणियों को रिकॉर्ड से आंशिक या पूरी तरह हटाने का निर्णय करता है.
12. किसी भी प्रस्ताव पर वोटिंग के समय स्पीकर भूमिका काफी अहम रहती है.
13. यदि किसी विधेयक पर पक्ष और विपक्ष दोनों के मत विभाजन के बाद संख्या बराबर आ जाए तो स्पीकर को अधिकार है कि वह अपना वोट दे. 
14. अध्यक्ष की अनुमति के बिना किसी भी सदस्य को सदन के परिसर में गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है और न ही फौजदारी या दीवानी कानून के अंतर्गत उन्हें कोई आदेश दिया जा सकता है.

कौन-कौन बन चुके हैं लोकसभा के स्पीकर
देश की आजादी के बाद पहले लोकसभा अध्यक्ष जीवी मावलंकर बने थे. वे 1956 तक लोकसभा अध्यक्ष रहे थे. इसके बाद एमए अय्यंगर स्पीकर बना थे. फिर सरदार हुकम सिंह, एन संजीव रेड्डी, जीएस ढिल्लों, बलि राम भगत, केएस हेगड़े, बलराम जाखड़, रवि राय, शिवराज वी पाटिल, पीए संगमा, श्री. जीएम बालयोगी, मनोहर जोशी,  सोमनाथ चटर्जी, मीरा कुमार, सुमित्रा महाजन लोकसभा स्पीकर बन चुके हैं. वर्तमान समय में ओम बिरला लोकसभा स्पीकर हैं. 24 जून 2024 को नए स्पीकर का चुनाव होगा.