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Bhopal Gas Tragedy: भोपाल की गैस त्रासदी के दफ्न केमिकल कचरे के निपटान का हो रहा है विरोध, जानिए क्या है पूरा मुद्दा

साल 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने भोपाल गैस त्रासदी के बचे 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को नष्ट करने के लिए मध्य प्रदेश के इंदौर के करीब पीथमपुर में टीएसडीएफ साइट अधिकृत की थी. जिसे एक सफल ट्रायल के बाद ही मंजूरी दी गई थी.

People protesting against disposal of chemical waste People protesting against disposal of chemical waste
हाइलाइट्स
  • 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निपटान 

  • पहले भी पीथमपुर में हुआ है कचरा निपटान 

भोपाल में 40 साल पहले यानी साल 1984 में देश की सबसे बड़ी औद्योगिक दुर्घटना हुई थी, जिसे भोपाल गैस त्रासदी के नाम से जाना जाता है. इस दुर्घटना में हजारों लोग यूनियन कार्बाइड की फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस मिथाइल आइसोसायनेट का शिकार बन गये थे. इस हादसे के बाद से ही भोपाल की फैक्ट्री में जहरीला कचरा पड़ा हुआ था. हालांकि, कोर्ट के आदेश के बाद इस घातक कचरे के निपटारे की कार्रवाई शुरू कर दी गई है.

भोपाल से कचरे को निकाल कर धार के पीथमपुर ले जाया गया है, जहां एक कंपनी के प्लांट में इस कचरे का निपटारा किया जाएगा. लेकिन पीथमपुर के लोगों को डर है कि इससे कहीं उनकी सेहत पर असर न पड़ने लगे. जिस कारण इस कवायद का विरोध शुरू हो गया है. 

337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे का निपटान 
यूनियन कार्बाइड के जहरीला कचरे को निपटाने की जंग के तहत, सबसे पहले भोपाल के प्लांट से 337 मीट्रिक टन कचरे की शिफ्टिंग की गई. इस जहरीले कचरे को 12 कंटेनरों में पीथमपुर पहुंचाया गया. पीथमपुर में जहरीले कचरे का निपटारा किया जाएगा. सरकार ने दावा किया है कि सुरक्षा के सभी प्रोटोकॉल का पालन करते हुए जहरीले कचरे को भोपाल से धार पहुंचाया गया है. 

लेकिन पीथमपुर के लोग इस जानलेवा कचरे के निपटारे का विरोध कर रहे हैं. यहां के कई सामाजिक संगठन पीथमपुर में इसके निपटारे पर आपत्ति जता रहे हैं. इनका दावा है कि विषैले कचरे से आसपास के इलाकों में जलवायु प्रदूषण होगा. लोगों की चिंता है कि कचरा जलाए जाने के बाद बचे हुए अपशिष्ट पदार्थों के जमीन में जाने के बाद भूमिगत जल जहरीला हो सकता है. जिससे लोगों के साथ-साथ फसलों को भी नुकसान होने की संभावना है. 

कितनी सुरक्षित है यह प्रक्रिया?
पीथमपुर बचाओ समिति के अध्यक्ष, हेमंत कुमार का कहना है कि पीथमपुर के लोग इसके विरोध में पिछले कई दिनों से सड़कों पर उतर रहे हैं और उन्होंने इस संबंध में अदालत में भी एक याचिका दाखिल की है. हालांकि मध्य प्रदेश सरकार का दावा है कि ये प्रक्रिया पूरी तरह से सुरक्षित है. सुरक्षा के सभी मानकों का ख्याल रखते हुए कचरे का निपटारा किया जा रहा है. 

धार जिले का पीथमपुर मध्य प्रदेश एक औद्योगिक शहर है और ये मध्य प्रदेश के प्रमुख शहर इंदौर के भी बेहद करीब है. लिहाजा इंदौर में पीथमपुर में जहरीले कचरे को निपटाये जाने का विरोध हो रहा है. यहां तक की इंदौर के मेयर भी पीथमपुर के लोगों का समर्थन करते हुए इस मामले में आगे बात करने की बात कह रहे हैं. पीथमपुर में कचरे का निपटारा किए जाने पर मध्य प्रदेश की सियासत भी गरमा गई है. कांग्रेस ने पीथमपुर में कचरा जलाये जाने का विरोध करते हुए सरकार पर निशाना साधा है. 

तो वहीं, मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कांग्रेस पर भोपाल गैस त्रासदी के गुनहगारों को बचाने का आरोप लगा कर पलटवार किया है. सियासी तरकार के बीच अब पीथमपुर पहुंचे इस कचरे का निपटारा जल्द शुरू होगा और इसको पूरी तरह से निपटाने में एक महीने से तीन महीने का समय लगने की उम्मीद है. 

पहले भी पीथमपुर में हुआ है कचरा निपटान 
पीथमपुर में साल 2015 में यूनियन कार्बाइड का करीब 10 मीट्रिक टन कचरा ट्रायल के लिए ले जाया गया था और उसे वहां जला दिया गया था. इस घटना पर पीथमपुर के लोग कह रहे हैं कि फैक्ट्री के पास की जमीन, जहां कचरे को जलाकर नष्ट किया गया, वह बंजर हो गई है. लोग यह भी कह रहे हैं कि वहां का भूजल भी जहरीला हो गया है और उपयोग लायक नहीं रह गया है. 

दूसरी आशंका यह है कि जिस जगह यह कचरा नष्ट किया जाना है, वहां भूजल की गुणवत्ता ठीक नहीं रही तो इंदौर भी प्रभावित होगा. यशवन्त सागर बांध भी उस जगह से नजदीक है और ऐसे में इंदौर की करोड़ों की आबादी को नुकसान उठाना पड़ सकता है. हालांकि, सरकार का दवा है कि 2015 से लेकर अब तक कई परीक्षणों और कई जांचों के बाद यह निर्णय लिया गया कि इस कचरे, यूनियन कार्बाइड के कचरे को पीथमपुर में निपटाया जाए और नष्ट किया जाए.

कैसे किया गया जहरीले कचरे को शिफ्ट 
भोपाल से करीब 250 किलोमीटर दूर धार जिले के पीथमपुर में जहरीले कचरे को शिफ्ट करना किसी चुनौती से कम नहीं था. जमीन में गड़े हुए जहरीले कचरे को निकाल कर सुरक्षित दूसरे जगह भेजना बेहद मुश्किल काम था. जहरीले कचरे से किसी को कोई नुकसान न हो इसके लिए खास इंतजाम किए गए थे. 100 से ज्यादा श्रमिकों के लिए 8 घंटे की जगह 30-30 मिनट की शिफ्ट बनाई गईं. श्रमिकों का लगातार हेल्थ चेकअप किया जाता रहा. 337 मीट्रिक टन कचरे के ट्रांसपोर्टेशन के लिए लिए 12 लीख प्रूफ कंटेनरों का इस्तेमाल किया गया. 

सुरक्षित तरीके से कचरा ले जाने के लिए विशेष ट्रक की स्पीड केवल 50 किलोमीटर प्रति घंटे की रखी गई. कंटेनरों की सुरक्षा के लिए 1000 से ज्यादा पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था. कंटेनरों के साथ एंबुलेंस, डॉक्टर, फायर ब्रिगेड और क्विक रिस्पॉन्स की टीम भी मौजूद रही. भोपाल से धार के पूरे रास्ते को ग्रीन कॉरिडोर में तब्दील किया गया. 250 किलोमीटर का सफर तय करने में करीब साढ़े सात घंटे का समय लगा. सरकार का दावा है कि न केवल ट्रांसपोर्टेशन बल्कि इसको निपटाए जाने की प्रक्रिया भी बेहद सुरक्षित है. इस कचरे का निष्पादन अदालत के आदेश के तहत किया जा रहा है.