क्लाइमेट एक्टिविस्ट सोनम वांगचुक को दिल्ली पुलिस ने रिहा कर दिया है. लद्दाख के लिए अपनी मांगों को लेकर उन्होंने 700 किलोमीटर पैदल ‘दिल्ली मार्च’ निकाला था. बीते दिनों सिंधु बॉर्डर पर उन्हें पुलिस ने हिरासत में ले लिया था. 30 सितंबर के मूल आदेश में 5 अक्टूबर तक सार्वजनिक स्थानों पर पांच या ज्यादा लोगों के इकट्ठा होने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था. हालांकि, इसे 2 अक्टूबर को संशोधित किया गया, जिससे वांगचुक की रिहाई संभव हो पाई.
अपने एक्स अकाउंट पर शेयर किए गए एक वीडियो में वांगचुक ने कहा, 'दिल्ली पुलिस कमिश्नर के एक नोटिफिकेशन में धारा 144 जैसा आदेश लगाया गया है, जिसमें कहा गया है कि 30 सितंबर से 6 अक्टूबर के बीच पांच से ज्यादा लोग सार्वजनिक रूप से इकट्ठा नहीं हो सकते. हम नहीं चाहते कि मार्च हो, हालांकि यह पूरी तरह से शांतिपूर्ण था.
केंद्र सरकार के साथ लद्दाख के प्रशासन में ज्यादा स्वायत्तता की मांगों पर चर्चा करने के लिए, सितंबर में दिल्ली से लद्दाख तक मार्च शुरू हुआ. अब सवाल है कि आखिर सोनम वांगचुक और इन प्रदर्शनकारियों की मांगे क्या हैं? क्यों लद्दाख से ये लोग दिल्ली पहुंच रहे हैं.
सोनम वांगचुक ने क्यों किया दिल्ली मार्च
पिछले कुछ समय से वांगचुक लद्दाख के प्रशासन में स्वायत्तता यानी ऑटोनोमी से संबंधित मुद्दों को उठा रहे हैं. वह चाहते हैं कि भारतीय संविधान की छठी अनुसूची के तहत लद्दाख को अनुसूचित क्षेत्र का दर्जा दिया जाए. इस मामले पर 2019 के आसपास उन्होंने तत्कालीन केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री अर्जुन मुंडा को एक पत्र लिखा था. मुंडा ने एक पत्र के साथ जवाब दिया कि उनके मंत्रालय ने "मामले को अपने कब्जे में ले लिया है" और उन्होंने गृह मंत्रालय को एक प्रस्ताव के बारे में सूचित कर दिया है. हालांकि, वांगचुक ने 2023 में मीडिया को बताया कि लद्दाख के नेताओं के साथ इस विषय पर बाद में कोई चर्चा नहीं हुई.
2019 में इस मांग के लिए छात्रों के नेतृत्व में विरोध प्रदर्शन हुए जिनमें पूर्व सांसद थुपस्तान छेवांग का समर्थन देखा गया. छेवांग ने तब लेह एपेक्स बॉडी (एबीएल) बनाई थी और कारगिल में भी संगठन कारगिल डेमोक्रेटिक अलायंस (केडीए) बनाने के लिए समर्थन दिया था. वांगचुक का कहना है कि भाजपा ने 2019 में लद्दाख से छठी अनुसूची के तहत सुरक्षा का वादा किया था, और भारत सरकार को अपना वादा निभाना होगा.
लद्दाख में छठी अनुसूची की मांग क्या है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 244 के तहत छठी अनुसूची स्वायत्त जिला परिषदों (Autonomous District Councils) नामक ऑटोनॉमस यानी सेल्फ-गवर्निंग प्रशासनिक क्षेत्रों के गठन का प्रावधान करती है. इस जिला परिषद यानी एडीसी में अधिकतम 30 सदस्य होते हैं जिनका कार्यकाल पांच साल का होता है और वे भूमि, जंगल, जल, कृषि, ग्राम परिषद, स्वास्थ्य, स्वच्छता, गांव और शहर-स्तरीय पुलिसिंग आदि पर कानून, नियम और विनियम बना सकते हैं. वर्तमान में, उत्तर पूर्व में 10 एडीसी हैं, जिनमें असम, मेघालय और मिजोरम में तीन-तीन और त्रिपुरा में एक है.
वांगचुक का कहना है कि लद्दाख के लोगों की यह मांग इसलिए है क्योंकि प्रशासन में निचले लेवल के अफसर अक्सर कॉर्पोरेट और बिजनेसमैन के प्रभाव में आकर काम करते हैं. और ये व्यापारी लोग यहां हर घाटी में खनन करते हैं.
विरोध के और भी हैं कारण
इस साल 6 मार्च को, केंद्रीय गृह मंत्रालय, एबीएल और केडीए के बीच बातचीत के गतिरोध पर पहुंचने के दो दिन बाद, वांगचुक और दूसरे लोगों ने लेह में अनशन शुरू कर दिया. 21 दिनों तक, वह सिर्फ पानी और नमक पर जीवित रहे और माइनस तापमान में बाहर सोते रहे. इसके बाद, चीन सीमा तक उन्होंने 'पश्मीना मार्च' की योजना बनाई थी जिसे रद्द कर दिया गया. वांगचुक ने दावा किया कि प्रशासन ने उन्हें बताया था कि इस पर धारा 144 लागू की जाएगी. इस मार्च का उद्देश्य लेह क्षेत्र में पश्मीना बकरियों के चरागाहों के ख़त्म होने जैसे मुद्दों को सामने लाना था.
वांगचुक के अनुसार, क्षेत्र में चरवाहे प्रभावित हो रहे हैं. ये चरवाहे पारंपरिक रूप से महंगी और अत्यधिक मांग वाली ऊन के लिए प्रसिद्ध बकरियों को पालते हैं. सबसे पहले, बड़ी औद्योगिक इकाइयों या सोलर प्लांट्स की स्थापना के लिए निगमों (उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया) को उनकी जमीन चली गई, और दूसरा वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चीनियों की गतिविधियों से उन्हें परेशानी होती है. वांगचुक का कहना है कि पिछले चार वर्षों में, चरवाहों का कई बार चीनी सैनिकों से सामना हुआ है, जो उन्हें एक निश्चित बिंदु से आगे नहीं जाने देते. चरवाहे यहां पारंपरिक रूप से अपनी बकरियों को चराने के लिए ले जाते हैं.
लद्दाखियों की समस्याएं
इसके अलावा, अनुच्छेद 370 को निरस्त करने से जम्मू और कश्मीर का स्पेशल स्टेट्स रद्द कर दिया गया और पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांटा गया. हालांकि, लेह में कई लोगों ने इस कदम का समर्थन किया क्योंकि यह क्षेत्र केंद्रशासित प्रदेश का दर्जा और जम्मू-कश्मीर प्रशासनिक सेट-अप से अलग होने की मांग कर रहा था.
लेकिन जम्मू-कश्मीर भर्ती बोर्डों से अलग होने के बाद लद्दाखियों को सेल्फ-गवर्निंग पहाड़ी विकास परिषदों की महत्वपूर्ण शक्तियों की हानि और नौकरियों की कमी महसूस होने लगी. ऐसे में, सोनम वांगचुक और दूसरे एक्टिविस्ट्स चाहते हैं कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करके अपने समुदायों के हितों की रक्षा करने का अधिकार दिया जाए.