scorecardresearch

दौलत, शोहरत, खूबसूरती… फिर भी क्यों औरंगजेब की तीनों बहनों को नहीं थी शादी की इजाजत, वजह आपको हैरान कर देगी!

जब 1631 में मुमताज महल का इंतकाल हुआ, तब शाहजहां अपनी पत्नी के गम में डूब गया. 17 साल की जहांआरा ने न सिर्फ अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल की, बल्कि शाहजहां को भी संभाला. धीरे-धीरे वह इतनी ताकतवर हो गई कि शाहजहां ने उसे 'पादशाह बेगम' (प्रथम महिला) की उपाधि दे दी.

औरंगजेब की बहनों की शादी क्यों नहीं हुई औरंगजेब की बहनों की शादी क्यों नहीं हुई
हाइलाइट्स
  • शाहजहां के बेटे-बेटियों की अनसुनी कहानी

  • वजह आपको हैरान कर देगी!

हाल ही में औरंगजेब के मकबरे को लेकर विवादों का दौर गरमाया हुआ है. कोई इसे ऐतिहासिक धरोहर मानता है तो कोई इसे क्रूर शासक की याद के तौर पर मिटाने की वकालत कर रहा है. लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि इस कट्टर मुगल बादशाह के परिवार में उसकी बहनों का क्या स्थान था? औरंगजेब को सत्ता की भूख थी, वह अपने भाइयों के लिए जल्लाद बन गया, लेकिन उसकी बहनों के साथ उसका रिश्ता बेहद जटिल था. इन राजकुमारियों ने शादी नहीं की, लेकिन उनके जीवन में प्रेम, राजनीति, साजिश और शक्ति का ऐसा संगम था, जो किसी भी फिल्मी कहानी को मात दे सकता है.

शाहजहां के बेटे-बेटियों की अनसुनी कहानी
शाहजहां और मुमताज महल के 14 बच्चे थे, लेकिन उनमें से 7 की बचपन में ही मौत हो गई. औरंगजेब के तीन भाई और तीन बहनें थीं- जहांआरा, रोशनआरा और गौहर आरा. भाइयों के साथ उसका रिश्ता एकदम साफ था, "जो सत्ता के रास्ते में आएगा, उसे खत्म कर दो!" इसी सोच के चलते उसके सबसे बड़े भाई दारा शिकोह का सिर काट दिया गया, शाह शुजा म्यांमार भागा और वहां रहस्यमयी ढंग से गायब हो गया, जबकि सबसे छोटे भाई मुराद बख्श को कैद करके मौत के घाट उतार दिया गया.

लेकिन बहनों का मामला अलग था. वे शादी नहीं कर सकती थीं, क्योंकि मुगल परंपरा के अनुसार उन्हें किसी अपने ही बराबर के शाही खानदान में ब्याहना होता. 17वीं सदी तक मुगलों का साम्राज्य इतना फैल चुका था कि उनके लिए कोई बराबरी का दूल्हा ही नहीं बचा! दूसरी तरफ, मुगल बादशाहों के लिए किसी भी छोटे-मोटे राजपरिवार की राजकुमारी से शादी कर लेना आम बात थी, लेकिन बहनों को वही हक नहीं मिला.

सम्बंधित ख़बरें

जहांआरा- सत्ता की सच्ची वारिस?
जब 1631 में मुमताज महल का इंतकाल हुआ, तब शाहजहां अपनी पत्नी के गम में डूब गया. 17 साल की जहांआरा ने न सिर्फ अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल की, बल्कि शाहजहां को भी संभाला. धीरे-धीरे वह इतनी ताकतवर हो गई कि शाहजहां ने उसे 'पादशाह बेगम' (प्रथम महिला) की उपाधि दे दी.

मुमताज महल (फोटो-गेटी इमेज)
मुमताज महल (फोटो-गेटी इमेज)

यह सिर्फ नाम की पदवी नहीं थी, बल्कि इससे उसे कई महत्वपूर्ण अधिकार मिल गए. वह सरकारी आदेश जारी कर सकती थी, अपने पिता के नाम पर फैसले ले सकती थी और कई मामलों में अंतिम निर्णय भी लेती थी. इसके अलावा, शाहजहां ने उसे मुमताज महल की आधी संपत्ति दे दी. जहांआरा एक कुशल व्यापारी भी निकली. उसके पास सूरत में एक जहाज था, जिससे उसने भारी मुनाफा कमाया. उसने चांदनी चौक का विकास कराया और सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की जीवनी भी लिखी.

लेकिन एक व्यक्ति को उसकी बढ़ती ताकत से चिढ़ थी- रोशनआरा!

रोशनआरा- साजिशों की महारानी
रोशनआरा का व्यक्तित्व जहांआरा से एकदम उलट था- बेहद महत्वाकांक्षी, चतुर और मौज-मस्ती पसंद करने वाली. वह शाहजहां और जहांआरा की नजदीकी से नाखुश थी, लेकिन औरंगजेब से उसकी गहरी दोस्ती थी. दोनों को एक ही शिकायत थी, “शाहजहां और दारा शिकोह ने हमें कभी अहमियत नहीं दी!"

जब शाहजहां ने दारा को अपना उत्तराधिकारी घोषित किया, तो रोशनआरा ने औरंगजेब को उसके खिलाफ भड़काना शुरू किया. उसने यह अफवाह फैलाई कि दारा इस्लाम-विरोधी है और हिन्दू धर्म व सूफी विचारधारा की तरफ झुका हुआ है. जब 1657 में शाहजहां बीमार पड़ा, तो भाइयों में सत्ता की जंग शुरू हो गई. जहांआरा ने कोशिश की कि यह युद्ध न हो और सत्ता को चारों भाइयों में बांट दिया जाए, लेकिन औरंगजेब ने उसकी एक न सुनी.

औरंगजेब (फोटो-गेटी इमेज)
औरंगजेब (फोटो-गेटी इमेज)

औरंगजेब ने कैसे अपनी बहनों को किनारे कर दिया?
दारा शिकोह की हत्या के बाद औरंगजेब ने शाहजहां को आगरा में कैद कर दिया. जहांआरा अपने पिता के साथ रहना चाहती थी, इसलिए उसने सत्ता छोड़ दी. उसकी जगह रोशनआरा को 'पादशाह बेगम' बना दिया गया.

लेकिन सत्ता मिलने के बाद रोशनआरा बेकाबू हो गई. उसने अपने फायदे के लिए सरकारी आदेश जारी करने शुरू कर दिए और शाही खजाने से पैसा चुराने के आरोप लगे. उसने कई पुरुषों से गुप्त संबंध बनाए, जिससे औरंगजेब नाराज हो गया.

1667 में, औरंगजेब ने उसे दिल्ली से निकाल दिया और उसने रोशनआरा बाग में शरण ली. कहा जाता है कि 1671 में उसे जहर देकर मार दिया गया, और शक है कि इसमें औरंगजेब का ही हाथ था.

शाहजहां की मौत के बाद क्या हुआ?
1666 में शाहजहां की मौत के बाद, जहांआरा फिर से दिल्ली लौटी. औरंगजेब ने उसे दोबारा 'पादशाह बेगम' की उपाधि दी. यह शायद उसका अपनी गलती का अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार करना था कि उसने जहांआरा को गलत समझा. लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी. जहांआरा ने फिर से प्रशासनिक कार्यों में हिस्सा लिया और औरंगजेब की कई कट्टर नीतियों को नरम करने की कोशिश की.
1681 में जहांआरा की मौत हुई और उसे दिल्ली में ही दफना दिया गया.

गौहर आरा- सबसे छोटी, लेकिन सबसे समझदार!
गौहर आरा की कहानी सबसे अनोखी है. वह इतनी छोटी थी कि शुरू की सियासी लड़ाइयों का हिस्सा नहीं बन पाई. लेकिन जब वह बड़ी हुई, तो उसने अपने परिवार को फिर से एक करने का काम किया. उसने दारा शिकोह के बेटे सिपिहर शिकोह और औरंगजेब की बेटी जुबदत-उन-निसा की शादी करवाई.

जब 1706 में गौहर आरा की मौत हुई, तो औरंगजेब ने कहा-"अब शाहजहां की संतान में सिर्फ मैं बचा हूं!"

औरंगजेब (फोटो-गेटी इमेज)
औरंगजेब (फोटो-गेटी इमेज)

औरंगजेब ने अपनों को खोकर सबकुछ पाया, लेकिन अंत में अकेला रह गया
औरंगजेब ने सत्ता के लिए अपने भाइयों को मारा, अपनी बहनों को कैद किया, लेकिन अंत में वह भी अकेला, दुखी और पश्चाताप से भरा हुआ शासक बनकर रह गया.

1707 में जब उसकी मौत हुई, तो उसे एक साधारण कब्र में दफनाया गया- बिना किसी शाही मकबरे के, बिना किसी खास निशान के. आज, जब उसके मकबरे पर विवाद हो रहा है, तो हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि इस खूनी सत्ता संघर्ष में सिर्फ बादशाह नहीं, बल्कि राजकुमारियां भी शामिल थीं.