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क्या Arvind Kejriwal आएंगे बाहर? क्यों अहम है दिल्ली CM की जमानत की टाइमिंग

हरियाणा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अकेले दम पर लड़ने का फैसला किया है और सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं. हरियाणा में आम आदमी पार्टी का संगठन दिल्ली और पंजाब की तुलना में काफी कमज़ोर है और ऐसे में अरविंद केजरीवाल के स्टार कैंपेन से ही उम्मीदवारों को सबसे ज़्यादा उम्मीद है.

Delhi CM Arvind Kejriwal Delhi CM Arvind Kejriwal
हाइलाइट्स
  • हरियाणा में तत्काल संभालेंगे कमान

  • दिल्ली में भी दिखाएंगे जलवा 

अरविंद केजरीवाल की आबकारी नीति से जुड़े सीबीआई मामले पर शुक्रवार को फैसला आना है. दिल्ली के सीएम उन बड़े नेताओं में आखिरी ऐसी हस्ती हैं जो अब तक दिल्ली में हुए कथित शराब घोटाले में सलाखों के पीछे कैद हैं. इसलिए कयास लगाए जा रहे हैं कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट से राहत मिल सकती है. लेकिन सीबीआई की तरफ से दलील दी गई है कि चूंकि केजरीवाल बतौर सीएम गवाहों को प्रभावित कर सकते हैं इसलिए उन्हें फिलहाल ज़मानत नहीं दी जाए. मामले पर सुनवाई पिछले हफ्ते ही पूरी हो चुकी है और तब से सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर रखा है.

फैसले की टाइमिंग क्यों है अहम?

हरियाणा में शुक्रवार से ही चुनाव प्रचार का असली दौर शुरु होगा क्योंकि गुरुवार यानि 12 सितंबर तक नामांकन की  प्रक्रिया ही चल रही थी. ऐसे में अरविंद केजरीवाल का बेल पर छूट कर बाहर आना टाइमिंग के हिसाब से परफेक्ट हो सकता है. इसके अलावा दिल्ली में भी राष्ट्रपति शासन की सुगबुगाहट चल रही है जिसमें सबसे बड़ी दलील ये है कि मुख्यमंत्री के जेल में बंद होने के कारण देश की राजधानी में कामकाज ठप्प पड़ा हुआ है. राष्ट्रपति ने दिल्ली के बीजेपी विधायकों की राष्ट्रपति शासन लागू करने की मांग को केंद्रीय गृह सचिव के पास विचार के लिए भेजा है. लेकिन, केजरीवाल के बाहर आने के बाद बीजेपी के इस मुहिम की हवा निकल सकती है.

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हरियाणा में तत्काल संभालेंगे कमान

हरियाणा चुनाव में आम आदमी पार्टी ने अकेले दम पर लड़ने का फैसला किया है और सभी 90 सीटों पर उम्मीदवार खड़े किए हैं. हरियाणा में आम आदमी पार्टी का संगठन दिल्ली और पंजाब की तुलना में काफी कमज़ोर है और ऐसे में अरविंद केजरीवाल के स्टार कैंपेन से ही उम्मीदवारों को सबसे ज़्यादा उम्मीद है. कांग्रेस से गठबंधन की बातचीत टूटने के बाद विपक्षी गठबंधन में भी टूट सतह पर दिखाई दे रही है. विशेषज्ञों का मानना है कि अगर अरविंद जेल से बाहर होते तो गठबंधन को लेकर सकारात्मक नतीज़े आ सकते थे क्योंकि उनके संबंध कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ काफी मधुर रहे हैं. लेकिन अब गठबंधन तो नहीं हुआ ऐसे में विपक्षी गठबंधन के अंदर के समीकरण में अपनी पार्टी का महत्व बढ़ाने के लिए आप को कुछ सीटें जीतनी होगी और इसके लिए केजरीवाल से बंहतर उम्मीद कोई नहीं है.

दिल्ली में भी दिखाएंगे जलवा 

दिल्ली अरविंद केजरीवाल की राजनीतिक कर्मभूमि रही है. दो चुनावों में बंपर जीत हासिल कर सरकार बनाने वाले केजरीवाल दिल्ली वालों की नब्ज़ पहचानने में माहिर हैं. ऐसे में चुनावों से 4 महीने पहले केजरीवाल का बाहर आना दिल्ली की सियासत में सबसे ज़्यादा हलचल लेकर आएगा. विपक्षी भी मानते हैं कि केजरीवाल के बाहर आने से आम आदमी पार्टी की ताकत कम से कम दिल्ली में तो दोगुनी हो ही जाती है. इसलिए बाहर आते ही बतौर मुख्यमंत्री केजरीवाल ताबड़तोड़ फैसले ले सकते हैं. खासतौर पर महिलाओं के लिए प्रति महीने 1000 रुपए की स्कीम अब तक लागू नहीं हो पाई है और इसलिए दिल्ली के सीएम का रोल ऐसी योजनाओं को चुनाव से पहले धरातल पर लाने में काफी महत्वपूर्ण होने वाला है.

मनीष सिसोदिया और बड़े नेताओं के रोल भी होंगे तय

दिल्ली का आबकारी नीति मामले में आम आदमी पार्टी का शीर्ष नेतृत्व एक समय लगभग पूरी तरह जेल के अंदर था. लेकिन मनीष सिसोदिया की ज़मानत के बाद जो राहत का सिलसिला शुरु हुआ वो अरविंद केजरीवाल के जेल से बाहर आने के साथ ही पूरी हो सकती है. गुजरात चुनावों में राष्ट्रीय पार्टी की हैसियत हासिल करने के बाद पार्टी के सामने चुनौती संगठन विस्तार की थी लेकिन झटके के बाद झटकों ने उसकी इस महत्वाकांक्षी योजना पर ब्रेक लगा दिया. अगर केजरीवाल बाहर आते हैं तो कई अहम नेताओं को सरकार से लेकर संगठन के बीतर नई जिम्मेदारियां दी जा सकतीं हैं ताकि पार्टी की गाड़ी दोबारा पटरी पर लौट सके. मनीष सिसोदिया यूं तो जेल से निकलने के बाद पूरी दिल्ली में पदयात्रा कर रहे हैं लेकिन उन्हें सीएम की गैरमौजूदगी में डिप्टी सीएम या मंत्री नहीं बनाया जा सकता था. अब केजरीवाल को फैसला लेना होगा कि सिसोदिया और बाकी वरिष्ठ नेता किस रोल में ज़्यादा फिट बैठेंगे.

अगर केजरीवाल को सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिली तो...

निश्चित तौर पर ऐसा होना आम आदमी पार्टी के लिए बहुत बड़ा झटका होगा क्योंकि सुप्रीम कोर्ट से राहत नहीं मिलने के बाद केजरीवाल के तुरंत जेल से छूट कर बाहर आने की संभावनाएं लगभग खत्म हो जाएंगी. फिर हरियाणा तो छोड़िए, दिल्ली विधानसभा चुनावों में भी रणनीति को लेकर पार्टी के अंदर मौजूदा विकल्पों में से ही रणनीतिक फैसला लेना होगा. फिलहाल हरियाणा चुनावों में प्रचार की कमान केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल ने संभाल रखा है. ज़मानत न मिलने की हालत में विपक्ष भी ज़्यादा हमलावर होगा और करप्शन से जुड़े मामले में केजरीवाल और उनकी पार्टी कटघरे में खड़ी होगी जो कि महत्वपूर्ण चुनावों से पहले शुभ संकेत नहीं होंगे.