अपराध और सियासत का मुख्तार अंसारी (Mukhtar Ansari) एक ऐसा नाम था, जिसका सिक्का अस्सी के दशक से लेकर साल 2017 तक चला, लेकिन उत्तर प्रदेश में योगी (Yogi) राज आते ही माफिया डॉन मुख्तार अंसारी पर मुश्किलों का दौर ऐसा चला कि उसके खात्मे की खबर 28 मार्च 2024 को आ गई.
पूर्वांचल के साथ-साथ यूपी के ज्यादातर इलाकों में माफिया डॉन और पूर्व विधायक मुख्तार अंसारी की तूती बोलती थी लेकिन योगी सरकार ने मुख्तार के आपराधिक साम्राज्य को मिट्टी में मिला दिया. अब सियासी रसूख भी दरकने के कगार पर है. मोहम्मदाबाद की गलियों और सड़कों पर यह चर्चा आम है कि क्या मुख्तार अंसारी के सुपुर्द-ए-खाक होते ही अंसारी परिवार की सियासत भी मिट्टी में मिल जाएगी. यह चर्चा इसलिए है क्योंकि पिछले तीन दशकों से गाजीपुर के मोहम्मदाबाद का यह अंसारी परिवार का लगभग अभेद्य किला बना हुआ था?
योगी राज में मुख्तार अंसारी पर हुई कड़ाई
योगी राज में ही मुख्तार अंसारी को सजा मिलनी शुरू हुई और ये सजाओं का ही खौफ था कि ये डॉन (Don) जेल की सीखचों के पीछे टूट गया और आखिरकार हार्ट अटैक से मर गया. मुख्तार के साथ सिर्फ उसके अपराध खत्म नहीं हुए बल्कि मुख्तार के साम्राज्य को ही योगी आदित्यनाथ ने तहस-नहस कर दिया. हजारों करोड़ की संपत्तियां जब्त की गई, गाजीपुर, मऊ से लेकर लखनऊ तक की संपत्तियों पर बुलडोजर चले. कब्जे में रखी गई शत्रु संपत्ति छीन ली गई और सबसे बड़ी बात मुख्तार के सभी बड़े शूटर और सहयोगी या तो गैंगवार में मारे गए या फिर पुलिस एनकाउंटर में.
मुख्तार की पत्नी है फरार
मुख्तार अंसारी जेल में असहाय अपने साम्राज्य को ढहता हुआ और अपने लोगों को एक-एक कर मरता हुआ देखता रहा. मुन्ना बजरंगी की बागपत जेल में हत्या हुई, मुकीम काला की चित्रकूट जेल में हत्या हुई और संजीव माहेश्वरी उर्फ जीवा को लखनऊ की भरी अदालत में गोलियां मार दी गई. यह सब गैंगवार के नाम दर्ज हो गया. पूरे परिवार पर मामले दर्ज हुए. मुख्तार का बेटा अब्बास अंसारी जेल में है. मुख्तार की पत्नी फरार है और पूरा परिवार आपराधिक और आर्थिक मुकदमों में अदालतों के चक्कर लगा रहा है.
अफजाल अंसारी ने थाम लिया है अखिलेश यादव का हाथ
अब सवाल उठता है कि तो क्या इस मौत के बाद अंसारी परिवार की सियासी जमीन दरक जाएगी. अफजाल अंसारी अब भी इस परिवार की सबसे मजबूत स्तंभ बने हुए हैं और अंसारी परिवार अब अफजाल अंसारी के सियासी के इर्द गिर्द अपनी सियासत बचाए रखने की कोशिश करेगा. अंसारी परिवार ने यह भांप लिया था अब मुख्तार के दिन नहीं लौटने वाले और बसपा में रहते अफजाल अंसारी के पास कोई सुरक्षा कवर नहीं होगा इसलिए कुछ वक्त पहले अफजाल अखिलेश यादव के साथ हो लिए.
टूट चुका है अंसारी परिवार
90 के दशक से लेकर 2017 तक अंसारी बंधुओं का यह परिवार गाजियाबाद, मऊ और बलिया की चुनिंदा सीटों पर दमदार सियासी रसूख रखता था लेकिन मुख्तार अंसारी की मौत के बाद अब अंसारी परिवार बुरी तरीके से टूट चुका है. मुख्तार परिवार की सियासत की मुख्तारी 1996 से शुरू होती है जब मुख्तार अंसारी पहली बार मऊ सीट से बसपा से विधायक बना.
मायावती से संबंध खराब हुए तो 2002 में निर्दलीय जीता और 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार के समर्थन में आ गया. 2009 में मुख्तार अंसारी वाराणसी से लोकसभा का चुनाव लड़ा लेकिन हार गया. 2010 में मायावती ने जब इस परिवार को तवज्जो नहीं दी तो मुख्तार अंसारी ने अपनी पार्टी कौमी एकता दल बनाया, जो परिवार की पार्टी थी. इस पार्टी से मुख्तार मऊ से विधायक बना और भाई सिवक्तुल्ला मोहम्मदाबाद से विधायक बने.
समाजवादी पार्टी फिलहाल बनी हुई है छत्रछाया की तरह
2016 में अखिलेश यादव ने इस अंसारी परिवार से दूरी बनानी शुरू कर दी थी जबकि मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव चाहते थे कि कौमी एकता दल का समाजवादी पार्टी में विलय हो जाए और इस परिवार को मन मुताबिक उसे इलाके में सीटें दी जाए. हालांकि अखिलेश यादव ने इसका खुला विरोध किया. इससे नाराज होकर 2017 में यह परिवार बसपा के साथ चला गया. मुख्तार बीएसपी से घोसी से चुनाव लड़ा और विधायक बन गया. 2019 में अफजाल अंसारी गाजीपुर से बसपा से चुनाव लड़े और सांसद हो गए.
अखिलेश यादव भी ज्यादा देर तक इस परिवार का विरोध नहीं कर सके और 2022 में अंसारी परिवार एक बार फिर समाजवादी पार्टी की तरफ झुका. अखिलेश यादव ने मुख्तार के बेटे को अपने सहयोगी दल सुभासपा से टिकट देकर सदन में पहुंचा तो मुख्तार के भतीजे शोएब अंसारी को मोहम्मदाबाद से सपा का टिकट देकर विधायक बना दिया. 2019 में बसपा से सांसद अफजाल अंसारी भी 2023 में समाजवादी पार्टी में वापस आ गए. ऐसे में अंसारी परिवार के लिए समाजवादी पार्टी छत्रछाया की तरह फिलहाल बनी हुई है.
मुख्तार अंसारी पर पहली हत्या का जब दर्ज हुआ था मुकदमा
बता दें कि मुख्तार अंसारी पर पहली हत्या का मुकदमा साल 1986 में मोहम्मदाबाद कोतवाली में दर्ज हुआ. मकनू सिंह, साधू सिंह गैंग में शामिल हरिहरपुर गांव के दबंग ठेकेदार सच्चिदानंद राय की हत्या के बाद सुर्खियों में आए मुख्तार अंसारी के नाम कई दर्जन आपराधिक मुकदमे उत्तर प्रदेश के साथ-साथ बाहर के प्रदेशों में भी दर्ज किए गए. इसमें रूंगटा अपहरण और हत्याकांड, अवधेश राय हत्याकांड प्रमुख रहे. उसरी चट्टी कांड में बृजेश और त्रिभुवन सिंह गैंग से मुठभेड़ और केस.
साल 2005 में कृष्णानंद राय समेत सात लोगों के हत्याकांड से पूरा पूर्वांचल दहल गया था. लेकिन इस बीच क्राइम की दुनिया से मुख्तार खुद भी राजनीति में प्रवेश कर चुका था. साल 1992 में गाजीपुर सदर सीट से निर्दल प्रत्याशी के रूप में हारने के बाद मुख्तार अंसारी ने मऊ सदर सीट जो मुस्लिम बाहुल्य सीट है. उसपर जीत हासिल की और लगातार पांच बार जीता. वहां भी उसके नाम दर्जन भर अपराधिक मुकदमें दर्ज हुए. जेल में रहने के बावजूद मुख्तार मऊ से और उसके भाई अफजाल मोहम्दाबाद से लगातार जीतते रहे.
अफजाल अंसारी को कृष्णानंद राय ने दी थी मात
मोहम्मदाबाद सीट अंसारियों के प्रतिष्ठा की सीट बन गई और साल 2002 में अफजाल अंसारी कृष्णानंद राय से चुनाव हार गए थे, लेकिन 2004 में गाजीपुर लोकसभा सीट पर अफजाल अंसारी सपा के सिंबल पर चुनाव लड़े और मनोज सिन्हा से जीत गए. हालंकि इस चुनाव में मुख्तार गैंग के ऊपर खून खराबे का भी आरोप लगाया लेकिन 2005 के मऊ दंगे के बाद मुख्तार अंसारी जेल में जो बंद हुए तो फिर उनके जीवन में जेल एक अहम हिस्सा बन गया. अब माफिया डॉन के रूप में मुख्तार अपने गैंग से कई अपराधिक कांड कराने में सफल रहा. उसके ऊपर ये आरोप लगने लगा कि वो अपराध की कमाई से अपने शुभचिंतकों और क्षेत्रीय लोगों की आर्थिक मदद करने लगा और रोबिनहुड के साथ गरीबों का मसीहा जैसी छवि बना लिया.
योगी सरकार ने की बुलडोजर जैसी सख्त कार्रवाई
जिस माफिया पर एक भी इल्जाम नहीं साबित हुए उस माफिया को उसके गैंग और परिवार के साथ यूपी की योगी सरकार ने बुलडोजर जैसी सख्त कार्रवाई के साथ जेल में मिलने वाली डॉन की सभी सुविधाओं को जेल मैनुअल के तहत कर दिया और मुख्तार अंसारी जिसकी पूर्वांचल के साथ राजनीतिक गलियारों में तूती बोलती थी वो अंत में बिल्कुल कमजोर हो गया और जज से पेशी में शिकायत करने लगा. अंतिम समय में उसने फोन से यही शिकायत बहु निकहत और छोटे बेटे उमर से भी की थी, जो खूब वायरल भी हो रही है. लेकिन 28 मार्च 2024 को मुख्तार के दम तोड़ते ही मुख्तार का नाम इतिहास हो गया. मोहम्मदाबाद क्षेत्र में लोग इस रोबिन हुड की खट्टी मीठी यादों को चट्टी चौराहे पर खूब चर्चा कर रहे हैं.
अफजाल अंसारी को मिल सकता है सहानुभूति वोट
मुख्तार की मौत के बाद अब बड़ा सवाल उठता है कि क्या अफजाल अंसारी और उनके परिवार के राजनीतिक रसूख पर इसका असर पड़ेगा. तो जाहिर है कि सामंतवाद के खिलाफ गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने का दम भरने वाले अंसारी परिवार को मुख्तार के नहीं होने का खामियाजा तो उठाना पड़ेगा लेकिन फिलहाल 2024 के चुनाव में सहानुभूति वोट मिलने की बात को नकारा नहीं जा सकता. मऊ और गाजीपुर के साथ बलिया लोकसभा में मुस्लिम और दलितों के साथ गरीबों के बीच ये परिवार हमेशा अपनी छवि मददगार की बना कर रखता रहा है लेकिन अफजाल अंसारी बसपा के एमपी हैं और बिना इस्तीफा दिए सपा के टिकट पर चुनाव लड़ने लगे तो बसपा का मूल वोटर उनसे थोड़ा नाराज था. जिनकी संख्या यहां काफी थी.
अफजाल अंसारी और उनके समर्थक इस वोट बैंक को किसी तरह से अपने पाले में लाना चाहते थे लेकिन जातिगत व्यवस्था में वोट पैटर्न को मुख्तार के इस निधन का एक सिंपैथी वोट अंसारी को मिल सकता है. हालांकि जानकर ये भी मानते हैं कि मुख्तार पर योगी एक्शन ने अंसारी को पहले ही आर्थिक और सामाजिक रूप से कमजोर कर दिया था. अब मुख्तार की मौत के बाद परिवार सदमे में है और इससे उबरने में उसे जरूर जनता के सामने एड़ी चोटी का जोर लगाना पड़ेगा, जो एक मुश्किल काम होगा. अब ये देखने वाली बात होगी कि अंसारी परिवार मुख्तार के बिना अपनी अगली राजनीतिक पारी कैसे खेलता है.
(कुमार अभिषेक/विनय सिंह की रिपोर्ट)