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महिला किसानों ने पलट कर रख दी गांव की तस्वीर, ज़ीरो बजट फार्मिंग के तर्ज पर खेती कर पूरा गांव बन गया आत्मनिर्भर

नारायणबगढ़ की रहने वाली इन महिलाओं ने आर्गेनिक खेती के लिए आर्गेनिक खाद बनाई है, जिसे ये ज़ीरो बजट फार्मिंग कर रही हैं. इसके अलावा इन्हें रासायनिक खाद से होने वाली स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से भी छुटकारा मिल चुका है.

महिला किसान महिला किसान
हाइलाइट्स
  • रासायनिक खाद से होती सांस की तकलीफ

  • इस खाद में नहीं है कोई मिलावट

ऑर्गेनिक खेती के बारे में तो हम सब जानते हैं. लेकिन उत्तराखंड के नारायण बगड़ के एक छोटे से गांव में ऑर्गेनिक खेती के साथ-साथ ऑर्गेनिक खाद भी बनाया जा रहा है. यानी कि यहां पर पूरी खेती जीरो बजट फार्मिंग पर की जा रही है. आमतौर पर किसानों को फसलों की उपज के लिए बाजार से रासायनिक खाद या कीटनाशक खरीदना पड़ता है, लेकिन नारायण बगड़ की महिला किसानों ने जीरो बजट फार्मिंग के तर्ज पर एक ऐसा खाद तैयार किया है, जिसे वे अपने ही घर पर तैयार कर रही हैं.

रासायनिक खाद से होती सांस की तकलीफ

भरत रावत


इस मिशन की शुरुआत करने वाले भरत रावत बताते हैं कि जब महिलाएं खेत में बाजार से लाए गए खाद का इस्तेमाल करती थी. उनमें केमिकल्स मिले होने के कारण सांस लेने में तकलीफ होती थी. इन रासायनिक खाद का जितनी तेजी से इस्तेमाल हो रहे थे, उससे महिलाओं के सिर में दर्द, सर्दी जुकाम अस्थमा और अन्य कई परेशानियां होती थी. केवल महिलाओं को ही नहीं बल्कि पुरुषों को भी खेत में काम करते वक्त इन सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता था. 

इस खाद में नहीं है कोई मिलावट
लेकिन 100% होममेड खाद से सारी परेशानियां दूर हो चुकी है. क्योंकि इनमें किसी तरह की कोई मिलावट नहीं है. महिलाएं बताती हैं कि महिला किसान होने के नाते उनका दिन खेतों पर ही काम होता है. ऐसे में इस होममेड खाद ने सारी परेशानियों को दूर कर दिया है. आपको बता दें कि यह खाद महिला किसान खुद अपने घर पर बनाते हैं. इसमें गाय का गोबर, गौमूत्र, बेसन गुड़ और मिट्टी का घोल बनाया जाता है और इसी का इस्तेमाल किया जाता है. इससे फसल भी ताज़ी और पौष्टिक पैदा होती है. 

जीरो बजट फार्मिंग कर रही हैं महिलाएं
इसका फायदा यह है कि पहले जो पैसा बाजार से खाद खरीदने में लगता था अब उसकी दर शून्य हो चुकी है. यानी कि यह महिला किसान जीरो बजट फार्मिंग की तर्ज पर काम कर रहे हैं. रावत बताते हैं कि उन्होंने इस मिशन की शुरुआत 200 किसानों के साथ की थी लेकिन आज छः गांव के किसान उनके साथ छोड़ गए है. आगे उनका मिशन ही है कि ज्यादा से ज्यादा लोग जीरो बजट फार्मिंग से जुड़े नेता के केमिकल वाले खाद और खाने से सभी बच सकें.