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जिला प्रशासन और एनजीओ की मदद से घुमंतू जनजाति की महिलाओं को मिल रहा रोजगार का साधन, ई-रिक्शा चलाकर बनाएंगी अपनी पहचान

मंदसौर जिले में एक एनजीओ और प्रशासन के माध्यम से नई शुरुआत की जा रही है. जिसके तहत घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजाति (Nomadic and semi-nomadic tribes) की महिलाओं व युवतियों को ई-रिक्शा दिए जा रहे हैं. ताकि ये सभी युवतियां व महिलाएं समाज की मुख्यधारा से जुड़ पाए.

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हाइलाइट्स
  • कलेक्टर और सामाजिक संगठन की पहल से बदल रहा जीवन

  • एनजीओ बॉम्बे टीम चैलेंज ने महिलाओं को दिए ई-रिक्शा

मंदसौर जिले में एक एनजीओ और प्रशासन के माध्यम से नई शुरुआत की जा रही है. जिसके तहत घुमंतू और अर्ध घुमंतू जनजाति (Nomadic and semi-nomadic tribes) की महिलाओं व युवतियों को ई-रिक्शा दिए जा रहे हैं. ताकि ये सभी युवतियां व महिलाएं समाज की मुख्यधारा से जुड़ पाए.

इस पहल के पीछे का उद्देश्य इन महिलाओं को सशक्त करना है. ताकि वे गांव से निकलकर शहर में पुरुषों से कंधे से कंधा मिलाकर अपनी एक अलग पहचान बना पाए और साथ ही स्वाभिमान और स्वालंबन का जीवन जी पाए. जिले में इस तबके से आने वाले लोग आज भी समाज की मुख्यधारा से दूर लगते है. जिसकी वजह से कई मामलों में  अशिक्षा तथा बौद्धिक पिछड़ापन देखने को मिलता आया है. 

कलेक्टर और सामाजिक संगठन की पहल से बदल रहा जीवन:   

मुम्बई के एक एनजीओ बॉम्बे टीम चैलेंज के सहयोग से 10 इलेक्ट्रिक रिक्शे दिए जा रहे हैं. इन महिलाओं और युवतियों को ई-रिक्शा देने से पहले इनकी ट्रेनिंग और जमीनी स्तर पर सहयोग करने के लिए जिला प्रशासन आगे आया है. 

मंदसौर कलेक्टर गौतम सिंह का कहना है कि यह छोटा सा कदम है लेकिन इसे बड़ा कदम भी मान सकते हैं. क्योंकि सामान्य तौर पर ट्रांसपोर्ट लाइन में पुरुषों का एकाधिकार है. ऐसे में मंदसौर जिले में समाज के पिछड़े वर्ग से 10 बहनें आगे आई हैं और पब्लिक ट्रांसपोर्ट में जुड़ रही हैं. यदि यह योजना सफल हो जाती है तो निश्चित तौर पर हम कल्पना कर सकते हैं कि और भी महिलाएं अलग-अलग क्षेत्रों में आगे आएंगी.

सभी महिलाओं के ट्रेनिंग लाइसेंस आदि की व्यवस्था आरटीओ द्वारा की जा रही है. जो महिलाएं अपने दम पर परिवार चलाना चाहती हैं उनके साथ प्रशासन खड़ा है. सिंह का कहना है कि एक अंतरराष्ट्रीय सर्वे के मुताबिक यह सामने आया है कि महिलाएं ट्रैफिक के रूल्स-रेगुलेशन को ज्यादा फॉलो करती हैं. उनके पास नॉलेज भी ज्यादा रहती है और ट्रैफिक में महिलाएं ज्यादा सेंसेटिव भी रहती हैं. यानी किसी जरूरतमंद को मदद करनी हो तो महिलाएं आगे आती हैं. 

महिलाओं का भी बढ़ रहा है आत्मविश्वास: 

ई-रिक्शा चलाने वाली महिलाओं और युवतियों से जब बात की तो उन्होंने बताया कि इस पहल से उनमें आत्मविश्वास  बढ़ रहा है. इस पहल से यह सभी लोग सीधे समाज के मुख्य धारा से जुड़ेंगे और आय का मजबूत साधन भी उनके पास आ जाएगा. 

कई बार सरकार की योजनाएं आती है लेकिन इन विशेष जनजाति के लोगों तक नहीं पहुंच पाती हैं. यह पहली बार हो रहा है कि अधिकारी सीधे इस तबके के लोगों से बात कर रहे हैं और कहीं ना कहीं एक उम्मीद जग रही है की इनके भविष्य को एक नई दिशा मिलेगी. 

ई रिक्शा चलाने का प्रशिक्षण ले रही जुली परिहार बताती हैं कि उनके समाज के लिए जो अधिकारी कर रहे हैं उससे अब उम्मीद जगी है. कि अब महिलाओं को भी उनकी पहचान मिलेगी. एक और युवती अंजली चौहान भी इसी जनजाति से है और पुलिस परीक्षा की तैयारी भी कर रही हैं. 

अंजलि बताती हैं कि रिक्शा चलाने से उन्हें कॉन्फिडेंस आ रहा है. पढ़ाई के साथ-साथ उन्हें रोजगार का साधन मिल रहा है. वह दो-तीन साल से पुलिस परीक्षा की तैयारी कर रही हैं और कॉलेज के फाइनल ईयर में हैं. 

(मंदसौर से आकाश चौहान की रिपोर्ट)