इस वर्ष भारत की स्वतंत्रता के 75 वर्ष मनाने के लिए आजादी का अमृत महोत्सव पूरे देश भर में मनाया जा रहा है. इसी के तहत भारत की 75 महिलाओं को डब्ल्यूटीआई (WTI)यानी women transforming India के पुरस्कार से नवाजा गया है. ये वो महिलाएं हैं, जिन्होंने अपने पैरों पर खड़े होकर कुछ करने की ठानी और अब बदलाव की नींव रख रही हैं. आज हम आपको मिलवा रहे हैं राजधानी की तीन ऐसी महिलाओं से जिन्हें, वुमन ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया के अवार्ड से सम्मानित किया गया.
इसमें पहला नाम है सविता गर्ग का, जिन्होंने परिवार के कारण नौकरी छोड़ी, निराश हुईं लेकिन, घर से ही काम की शुरुआत की और आज वैश्विक स्तर पर शिक्षा जगत में क्रांति ला रही हैं. सवाई माधोपुर की रहने वालीं सविता पढ़ने-लिखने में अव्वल थीं, लेकिन उनके शहर में सुविधाओं का आभाव था. इसके बावजूद भी उन्होंने ग्रेजुएशन, मास्टर और बीएड तक की पढ़ाई की. वो हमेशा से टीचर बनना चाहती थीं लेकिन, घर परिवार के बीच यह भी संभव नहीं था. अपनी नौकरी और बच्चों की जिम्मेदारी के बीच सामजंस्य बैठाना मुश्किल हो गया. सविता को नौकरी छोड़नी पड़ी.
सविता ने 2015 में किया 'इक्लासोपीडिया' लॉन्च
सविता ने लेकिन हार नहीं मानी और वर्क फ्रॉम होम से एक नई शुरुआत की. उन्होंने ठान ली थी कि वह कुछ शुरू करेंगी और ऑनलाइन क्लास को बच्चों और टीचर्स दोनों के लिए आसान बनाएंगी. साल 2015 में उन्होंने 'इक्लासोपीडिया' लॉन्च किया. यह एक ऐसा ऑनलाइन प्लेटफार्म है, जहां पर छात्रों को ऑनलाइन क्लास दी जाती है. बच्चे अपनी जरूरत के हिसाब से टीचर चुन सकते हैं और उनसे एक डेमो क्लास लेने के लिए अप्लाई कर सकते हैं. इसकी खास बात यह है कि इसमें 90 प्रतिशत से ज्यादा महिला शिक्षक हैं. इसमें ज्यादातर छात्र विदेशों जैसे कि सिंगापुर, कुवैत, यूके, यूएस जैसे देशों से हैं. अलग-अलग विषय के हिसाब से उनकी एक क्लास की फीस 500 रुपये से लेकर 1500 रुपये तक है. एक महीने में टीचर्स 50-100 क्लास लेते हैं और एक स्टूडेंट लगभग आठ से दस महीने तक उनके पास पढ़ता है.
फोर्ब्स अंडर 30 में नाम दर्ज करवा चुकी हैं राधिका
दूसरी महिला डॉ राधिका बत्रा, जोकि अपने सपनों को हमेशा से ही उड़ान देने के सपने देखती थीं. लोगों ने इन्हें शादी करने के लिए ताने मारे, भला-बुरा कहा, लेकिन इन्होंने हार नहीं मानी और आज अपने काम के लिए फोर्ब्स अंडर 30 में अपना नाम दर्ज करवा चुकी हैं. राधिका, भारत में एक बाल रोग विशेषज्ञ और नियोनाटोलॉजिस्ट हैं. वह Every Infant Matters की संस्थापक और अध्यक्ष हैं, जो नवजात से लेकर 5 साल तक के बच्चों के हित के लिए काम करती हैं. इनका काम पोषण में सुधार और विटामिन ए की कमी को पूरा कर बच्चों में अंधेपन को रोकना है. 2017 में अपनी स्थापना के बाद से ईआईएम ने लाखों कुपोषित बच्चों में अंधेपन को सफलतापूर्वक रोका है. इसके अलावा, वे मातृ स्वास्थ्य, बच्चों की डिवर्मिंग, बचपन में अच्छी आदतों के बारे में युवा माताओं को परामर्श देने, लैंगिक समानता को बढ़ावा देने और पिछले कुछ समय से कोरोना को लेकर भी लोगों की मदद कर रही हैं.
डॉ राधिका बताती हैं कि वह 30 साल की हैं लेकिन, अब तक उन्होंने शादी नहीं की है. इतनी कम उम्र में मातृत्व की भावना को समझना मुश्किल तो था लेकिन बच्चों के लिए, उनके हित के लिए कुछ करना था. वे कहती हैं कि जब मैंने अपने करियर की शुरुआत की थी तब मैंने अपनी आंखों के सामने बच्चों को विटामिन ए की कमी से दम तोड़ते हुए देखा. बस उसके बाद मैंने ठान लिया कि मुझे अब इन बच्चों के हित में ही काम करना है.
वेलची की संस्थापक हैं प्रीति
सामाजिक बेड़ियों को तोड़कर आगे बढ़ी, खुद के दम पर रिस्क लिया, अमेरिका में दस साल रहकर भारत आईं, क्योंकि प्रीति राज यहां बदलाव चाहती थीं. प्रीति एक ऐसे परिवार से आती है, जहां पर परिवार की मान, मर्यादा और प्रतिष्ठा सबसे पहले है. उनको हमेशा से ही जिंदगी में कुछ बड़ा करना था लेकिन, उनके पिता चाहते थे कि उनकी 24 वर्ष की उम्र में किसी बड़े बिजनेसमैन से शादी हो जाए. उन्होंने अपने पिता को खूब समझाया और आखिरकार उन्होंने वही किया जो उन्हें करना था.
प्रीति आज वेलजी की संस्थापक और सीईओ हैं और साथ ही साथ वेलजी इंस्टिट्यूट में फैकल्टी भी हैं. प्रीति की कंपनी वेलिजी हेल्थ और वैलनेस पर फोकस करती है. यह उन लोगों को ट्रेनिंग देती हैं, जो स्वस्थ रहना चाहते हैं लेकिन रह नहीं पाते. इनकी कंपनी ग्लोबल लिस्टिंग में 50 सर्वश्रेष्ठ वैलनेस कंपनियों में अपनी जगह बना चुकी है. प्रीति कहती हैं कि कई ऐसी महिलाएं उनके पास आती हैं, जो कहती हैं कि मैं फिट तो रहना चाहती हूं लेकिन, मुझे किसी तरह का कोई मोटिवेशन और कुछ नहीं मिल पा रहा है. ऐसे में प्रीति की कंपनी वेलजी इंस्टीट्यूट ऐसे ही लोगों को लाइफ और हेल्थ कोचिंग देते हैं.
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