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Wonder Plant Hemp Part-4: आर्किटेक्ट कपल ने बनाया भांग के पौधे से घर, 1500 साल पहले एलोरा की गुफाओं में भी हुआ था इसी का इस्तेमाल, अपनी तरह का पहला है Hemp House

Hemp House: हेम्प हाउस को अब होमस्टे का रूप दे दिया गया है ताकि पर्यटक भी इसका अनुभव ले सकें. गौरव दीक्षित बताते हैं कि इस घर को बनने में 2 साल का समय लगा है. साल 2021 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने 800 वर्ग फुट में फैले इस घर का उद्घाटन किया था. 

Hemp House Hemp House
हाइलाइट्स
  • अजंता की गुफाओं में हुआ था हेम्प का इस्तेमाल 

  • पर्यावरण अनुकूल हैं हेम्प हाउस  

Hemp House: राजस्थान के रेगिस्तान में मिट्टी के घरों से लेकर पुरानी बीयर की बोतलों से बने घरों तक टिकाऊ घर इन दिनों चर्चा में हैं. लोग आम घरों को बनाने के स्टाइल से हटकर अब दूसरे तरीके अपना रहे हैं. बांस, पुआल की गांठ, रीसाइकल्ड प्लास्टिक, कॉर्क , अपसाइकल की गई लकड़ी और भांग जैसी चीजों का इस्तेमाल अब लोग घर बनाने में कर रहे हैं. जी हां, भांग से भी लोग घर बना रहे हैं. उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले के यमकेश्वर ब्लॉक में भांग (Hemp) से 5 कमरों का एक घर बनाया गया है. आर्किटेक्ट नम्रता कंडवाल (Namrata kandwal) और गौरव दीक्षित (Gaurav Dixit) ने हेम्पक्रीट (Hempcrete) से इस घर को बनाया है. 

यह भारत में अपनी तरह का पहला घर है जिसमें हेम्पक्रीट का इस्तेमाल हुआ है. हेम्पक्रीट कुछ और नहीं बल्कि 'भांग' या भांग के पौधे, नींबू, लकड़ी, मिट्टी, पानी और दूसरे खनिजों के कुछ हिस्सों का मिश्रण है. गौरव दीक्षित ने GNT डिजिटल को बताया कि बाहर के देशों जैसे ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में ये पहले से ही प्रचलित है. साल 2021 में उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने 800 वर्ग फुट में फैले और 30 लाख रुपये की लागत से बने घर का उद्घाटन किया था. 

2 साल में बना हेम्प हाउस

दुनिया को अपने "ऑल-ग्रीन" मैसेज को देने के लिए इन्होंने घर की छत पर 3 किलोवाट का सोलर पैनल और 5,000 लीटर ग्राउंड वाटर स्टोरेज की सुविधा भी रखी है. घर के अंदर के हिस्से को पर्यावरण-अनुकूल (Eco Friendly) चीजों से सजाया गया है. इस घर को अब होमस्टे का रूप दे दिया गया है ताकि पर्यटक भी इसका अनुभव ले सकें. गौरव दीक्षित बताते हैं कि इस घर को बनने में 2 साल का समय लगा है. उन्होंने 2019 में इसे बनाना शुरू किया था. गौरव कहते हैं, “उस वक्त स्वच्छ भारत अभियान के तहत टॉयलेट्स वगेरह बन रहे थे. तब हमारे दिमाग में आया कि क्यों न इसे हेम्प से बना लेें. लेकिन जब हमने उसे बनाया तो वो घर जैसा बन गया. इस प्रोजेक्ट की शुरुआत हमने 2019 में की थी. इस प्रोजेक्ट की हमने शुरुआत ही कि थी कि तबतक लॉकडाउन (Covid-19 Lockdown) हो गया था. जिसमें हमें कुछ 8 महीने लगने थे उसमें कोविड-19 के समय में 2 साल लग गए. लेकिन इस दौरान हमने बहुत कुछ सीखा. इस घर को बनाने में जितने भी समान का इस्तेमाल किया गया है उसमें से 90% मटेरियल हमने लोकल मार्किट (Local Market) और आसपास के 5 किलोमीटर के दायरे से ही ला कर पूरा किया है. 

हेम्पक्रीट से बनी ईटें
हेम्पक्रीट से बनी ईटें

एलोरा की गुफाओं में हुआ था हेम्प का इस्तेमाल 

अगर आपको कभी मुंबई में एलोरा गुफाओं (Ellora Caves Mumbai) घूमने का मौका मिला है तो अपने देखा होगा कि शहर से लगभग 10 किमी दूर 1000 ईस्वी पूर्व की कलाकृति आज भी वैसी ही हैं. इसका कारण है कि उसे बनाने में भांग का इस्तेमाल किया गया है. पुरातत्व विशेषज्ञों ने यूनेस्को (UNESCO) की विश्व धरोहर एलोरा गुफाओं को लेकर हमेशा सवाल किया है कि वे अभी भी इतनी अच्छी स्थिति में कैसे है? क्या इसके पीछे कोई विशेष प्रकार का पत्थर है? या फिर कोई वास्तुकला का प्राचीन सिद्धांत? इसका उत्तर भांग ही है. 2016 में एक अध्ययन में सामने आया था कि एलोरा की गुफाओं में मिट्टी और चूने के प्लास्टर के साथ भांग का मिश्रण है. इस साधारण मिश्रण ने ही  1,500 साल पुरानी गुफाओं को खराब होने से बचाया है.

इसके बारे में भारत का पहला हेम्प हाउस बनाने वाले गौरव कहते हैं, “अधिकतर लोगों को लगता है कि कुछ साल पहले से ही दुनिया में हेम्प हाउस का कॉन्सेप्ट आया है. लेकिन ऐसा नहीं है. हजारों साल पहले भी भांग का इस्तेमाल दीवारों को बनाने के लिए किया जाता रहा है. इसका जीता जागता उदाहरण है एलोरा गुफाएं. दरअसल, अजंता गुफाओं में मौजूद अलग तरह के कीट-पतंगों ने दीवारों पर बनी चित्रकला को खाना शुरू कर दिया था. जिससे वो डैमेज होती चली गईं. इसी से बचने के लिए फिर जब एलोरा गुफाओं को बनाया गया तो  इसमें इन सभी चीजों का ध्यान रखा गया. एलोरा गुफाओं की दीवारों पर हेम्प को मिट्टी और चूने के प्लास्टर को मिलाया गया. इस साधारण मिश्रण ने 1,500 साल पुरानी गुफाओं को आज भी खराब होने से बचा रखा है. इससे पता चलता है कि कई हजारों साल पहले से ही हम घरों की दीवार बनाने के लिए हेम्प या भांग का इस्तेमाल करते आ रहे हैं.”   

बता दें, 2016 में आई एक रिपोर्ट के मुताबिक एलोरा गुफा से जो सैंपल इक्कठा किए गए हैं, उनमें मिट्टी या मिट्टी के प्लास्टर के मिश्रण में कैनाबिस सैटिवा (Cannabis Sativa) का 10 प्रतिशत हिस्सा मिला है. यही कारण है कि एलोरा में कोई कीट-पतंगे नहीं पाए जाते. 

हेम्प हाउस
हेम्प हाउस

पर्यावरण अनुकूल हैं हेम्प हाउस  

गौरव बताते हैं कि उत्तराखंड में किसान बीज निकालने के बाद भांग के रेशे को जला देते थे, लेकिन उन्होंने इसे उनसे खरीदा और इस घर को बनाने में लगभग 3 टन भांग का इस्तेमाल किया. हेम्प के फायदे (Benefits of Hemp) गिनवाते हुए गौरव ने बताया, “भांग से बने घर नमी को सोख लेते हैं और दीवारों पर फफूंदी लगने से बचाते हैं. हेम्पक्रीट में बेहतर कार्बन अब्सॉर्ब (Carbon Absorb) करने की क्षमता होती है, जो प्राकृतिक रूप से घर की हवा को शुद्ध बना देता है.”

गौरव आगे कहते हैं, “जब ये हेम्प हाउस बनकर तैयार हो गया था तो हमने नोटिस किया कि सभी लोग इसे देखना चाहते हैं तो हमने सोचा कि इसे हम लोगों को देखने के लिए बना सकते हैं. इसको बनाने में हमने करीब 30 लाख रुपये लग गए. हमें लगा कि उत्तराखंड सरकार होमस्टे (Uttarakhand Homestay) को काफी प्रोमोट कर रही है ऐसे में हमने भी इसे इसी में कन्वर्ट करना का सोचा. ताकि लोग इसे आकर देख भी सकें और हम इसके माध्यम से कुछ पैसा भी रिकवर कर सकें. इसलिए लोग अब आकर इसमें रह सकते हैं.”

भविष्य की योजनाओं के बारे में बात हुए गौरव बताते हैं कि वे इसे प्रमोट करना चाहते हैं. गौरव कहते हैं, “केवल हेम्प ही नहीं बल्कि जो दूसरी फसल हैं जिनसे घर बनाए जा सकते हैं, हम उन्हें भी इस्तेमाल करने की सोच रहे हैं. गन्ने, गेंहू, तिलहन, चावल का जो बचा हुआ वेस्ट है उससे घर बनाए जा सकते हैं. इसी पर हम एक कंस्ट्रक्शन टेक्नोलॉजी बना सकते हैं. इससे हम 2 इंडस्ट्री को मिला सकते हैं. एग्रीकल्चर (Agriculture Industry) और कंस्ट्रक्शन (Construction Industry) को मिलाकर एक इंडस्ट्री बनाई जा सकती है. 

हेम्प हाउस बनने का प्रोसेस

नई हेम्प पॉलिसी से होगा सभी को फायदा 

गौरतलब है कि उत्तराखंड सरकार ने नई हेम्प पॉलिसी का ड्राफ्ट (New Hemp Policy Draft) जारी कर दिया है. इसे जल्द ही मंजूरी मिलने की उम्मीद है. नई पॉलिसी का जिक्र करते हुए गौरव कहते हैं, “नई पॉलिसी में पारंपरिक बीजों की मंजूरी दी गई है. ये पौधा हिमालय का नेटिव पौधा है. फिर ये यहां से पूरी दुनिया में गया है. नशा हेम्प की प्रकृति है. अब ये आपको देखना है कि उसका इस्तेमाल आप कैसे करना चाहते हैं. पौधे ने आपको नहीं कहा है कि आप नशा करें. ये उसका इम्युनिटी सिस्टम (Immunity System) है. अगर आप इसे ही खत्म कर देंगे तो कैसे चल पाएगा. वो किस जिंदा रहेगा. या वो पौधा को अभी इतने फायदे दे रहा है वो कैसे देगा. हालांकि, नई पॉलिसी को लेकर हम बहुत सकारात्मक हैं. इससे कई लोगों को फायदा मिलने वाला है. ये बढ़ने वाली इंडस्ट्री है. भविष्य में इस इंडस्ट्री (Hemp Industryt) का काफी स्कोप है.”